World Hindu Federation : शिक्षक दिवस पर बुंदेलखंडी कवि कमल किशोर खरे को विश्व हिंदू महासंघ ने बांदा में सम्मानित किया

दिनांक 5 सितंबर 2025,
- शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर, विश्व हिंदू महासंघ सांस्कृतिक प्रकोष्ठ, उत्तर प्रदेश के तत्वाधान में बांदा में एक मान्यवर और हृदयस्पर्शी आयोजन संपन्न हुआ। इस अद्वितीय कार्यक्रम में बांदा के वरिष्ठ कवि और साहित्यकार कमल किशोर खरे “कमल” को उनके साहित्यिक योगदान को सम्मानित करते हुए, उनके निवास स्थान पर सम्मानित किया गया। यह आयोजन न केवल एक सम्मान समारोह था, बल्कि साहित्य और संस्कृति का उत्सव भी था।
समारोह का प्रवाह:
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संस्कृति और श्रद्धा का आरंभ
कवि सम्मेलन की शुरुआत श्री रामचंद्र भैया जी द्वारा सरस्वती वंदना के मधुर अध्याय से हुई, जिससे आयोजन में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गहराई आई। -
संस्थान की ओर से स्वागत और उद्घोषणा
विश्व हिंदू महासंघ सांस्कृतिक प्रकोष्ठ, उत्तर प्रदेश के महामंत्री रमेश चंद्र सोनी ने उपस्थित कवियों और साहित्यप्रेमियों का स्वागत किया और समारोह का भावुक उद्घाटन करते हुए सांस्कृतिक समरसता पर प्रकाश डाला। -
कवियों का रचनात्मक योगदान
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मिथिलेश कुमार मिश्रा ने अपनी रचना “हिय में हो राम नाम, बिगड़े बनेंगे काम” प्रस्तुत कर श्रोताओं के हृदय को रामभक्ति और साधना की ओर मोड़ा।
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योगेश कुमार जी ने बुंदेलखंडी सोहर गीत “सज गया है गगन खिल उठा है चमन” प्रस्तुत किया—इस गीत के मधुर ताल और क्षेत्रीय सौंदर्य ने सम्मिलितों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
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कीर्ति वाटिका के संचालक, श्री प्रकाश चंद्र सक्सेना जी, ने अपनी हास्यबोधपूर्ण रचना “पेंशन वाले दादी…की घर में रहती पूंछ” के माध्यम से उपस्थित जनों को हँसी और सहानुभूति का अनुभव कराया।
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अजय कुमार शर्मा ने अपनी रचना “गुरु की कृपा से आगे बढ़ता जाता हूँ” प्रस्तुत की, जो प्रेरणा और गुरु‑शिष्य संबंध की विराटता को प्रस्तुत करती है।
World Hindu Federation : शिक्षक दिवस पर बुंदेलखंडी कवि कमल किशोर खरे को विश्व हिंदू महासंघ ने बांदा में सम्मानित किया ?
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सम्मान समारोह
सम्मान का मुख्य आकर्षण कवि कमल किशोर खरे “कमल” को चंदन वंदन, पुष्पमाला और अंगवस्त्र प्रदान करना था। उन्होंने इस सम्मान पर गजल “क्या अंगारों में राख जमी है, फिर भी इनमें वही तपन है” सुनाई, जिसने भावनाओं को गहराई और अर्थ से परिपूर्ण कर दिया। उनकी पत्नी कमला खरे जी और बेटी रूपाली खरे जी ने अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए इस समारोह का सुन्दर समापन किया।
सारांश और सांस्कृतिक मायने:
यह आयोजन न केवल कवि सम्मान का माध्यम था, बल्कि साहित्य और संस्कृति के माध्यम से जन‑मानस को जोड़ने का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी था। कार्यक्रम ने बुंदेलखंड की सांस्कृतिक धरोहर को उजागर किया और स्थानीय कवियों की रचनात्मकता का जश्न मनाया। साहित्यिक व सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति यह समर्पण, शिक्षक दिवस के आदर्शों से मिलते हैं—ज्ञान, गुरु‑भक्ति और साहित्यिक आदर्शों का आदर—जिसने इसे विशेष रूप से यादगार बना दिया।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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