Doesn’t matter : कपड़े तंग नहीं, सोच तंग है, पर समझने वालों को फर्क ही नहीं पड़ता ?

Doesn’t matter : कपड़े तंग नहीं, सोच तंग है, पर समझने वालों को फर्क ही नहीं पड़ता

Doesn't matter : कपड़े तंग नहीं, सोच तंग है, पर समझने वालों को फर्क ही नहीं पड़ता ?
Doesn’t matter : कपड़े तंग नहीं, सोच तंग है, पर समझने वालों को फर्क ही नहीं पड़ता ?

मजबूरी का नाम देवेन्द्र फडनवीस !

  • कई लोग मुख्यमंत्री की पत्नी के कपड़ों को तंग बोल रहे हैं। अरे भाई कपड़े तंग नही देखने वालों की सोच तंग है। ये तो हुई साधारण सी बात। लेकिन ऐसा कोंई नहीं बोल रहा है। क्योंकि जो ये बोलते हैं उन्हें इस मामले से कोंई मतलब नहीं।
  • जिन्हें अंगुली उठाना चाहिए वे कैसे बोले ? अपनी ही जांघ कैसे उघाडे ? कोंई दूसरा होता तो बोलते ! आखिर अपने मुख्यमंत्री से पंगा कौन मोल ले ? सो कुछ दिनों में बात आई गई हो जाएगी।
    लेकिन विषय इतना सरल नहीं कि केवल एक व्यक्ति के बारे में बोलने से बात पूरी हो जायेगी. कुछ आगे सोचते हैं।
    वर्तमान ग्लोबलाइजेशन के युग में ऐसा नही हो सकता कि विदेश से केवल सुविधा के सामान ले लिए जाएँ। ये पैकेज डील होती है. मीठा मीठा गप गप और कड़वा कड़वा थू थू.। ये नही चलता। सुविधा के लिए विदेशी सामान आएगा, भाषा आएगी, संचार माध्यम आयेंगे तो विचार और रहन सहन भी आएगा।
    बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाना चाहते हो तो और चाहते हो अंग्रेजियत न आये …कैसे सम्भव है ? मोबाइल आएगा तो फेसबुक भी आएगी, वाट्सअप भी आएगा, रीलें भी आएंगी। इंग्लिश स्कूल में टाई लगाकर जाते अपने छोटे छोटे बच्चे अच्छे लगते हैं न …. तो उन्हें बड़ा ही मत होने दो … उम्र रोक दो। जैसी चाहते हो पवित्रता बनी रहेगी। लेकिन अगर वो इसी परिवेश में बड़े हुए तो उनके पश्चिमी संस्कार भी तो बड़े होंगे न !
    हाँ, इससे बचने का एक तरीका अवश्य है कि बच्चे जितना समय अंग्रेजी स्कूल में दे रहे है उससे ज्यादा समय हम उन्हें घर पर संस्कारी वातावरण में दें ! पर दिल से पूछो क्या ये कर सकते हो ? यदि नही तो क्यों रोना चिल्लाना ?
    सवाल संघ, पार्टी, राजनीति, धर्म या किसी विचारधारा का नही है,… हमारी मानसिकता का है। अभी कुछ दिन और ये कपड़ों का लफड़ा चलेगा फिर सब सामान्य हो जाएगा। फिर कोंई पहनावे जैसे विषय को गंभीरता से नहीं लेगा.
प्रश्न उठ सकता है कि
  • मुस्लिम लडकिया सिर पर हिजाब लगाती है बाल तक दिखाना नही चाहती और हिन्दू लडकिया सब कुछ भी छिपाना नही चाहती। तो ये भी तो सोचो वो उन्हें पालते किस तरह है ? उनके बच्चे टोपी लगाने में क्यों नही शर्माते क्योंकि उन्होंने बचपन से वही संस्कार दिए जाते हैं हमे ऐसे स्कूल में बच्चों को भेजने में कोई हिचक नही जहां तिलक और मेहंदी तक से परहेज किया जाता है।
    जो भी नंगाई का वातावरण चल रहा है उसमें आज की गलती थोड़े ही है। आजादी के बाद से विकास का यही मॉडल स्वीकार किया था। हमारे ही बाप बूढ़े थे न जो कांग्रेस को न समझ पाए। उनकी शिक्षा पद्धति को नही समझ पाए। चलो मान लिया उस समय सब कुछ षड्यंत्र के तहत छिपा हुआ था। अब तो कुछ भी छिपा नही है न ! सबको पता है अंग्रेजी शिक्षा सब चौपट कर देगी पर क्या अब भी हिम्मत है ?
  • हम यही सोचते हैं न कि अच्छे अंग्रेजी स्कूल में बच्चा नहीं पढ़ेगा तो पिछड़ जाएगा। तो चिंता मत करो वो अंग्रेजी सभ्यता की ओर ऐसा दौड़ेगा कि मां-बाप संस्कार सबको पीछे छोड़कर आगे निकल जायेगा।
    तुम सोचते रहना कि बच्चों को अंग्रेजी में तो पिछड़ने नही देंगे बाद में किसी भी राजनैतिक दल या पैसे की दम पर संस्कार खरीद लेंगे। अरे भाई जब नीव ही गलत है तो जितनी भी मंजिल बनेगी गलत ही होंगी। उसे न साधू सन्त ठीक कर पाएंगे न कोई संघ जैसा संगठन। राजनैतिक दलों की तो बात ही छोड़ दो।

    Doesn't matter : कपड़े तंग नहीं, सोच तंग है, पर समझने वालों को फर्क ही नहीं पड़ता ?
    Doesn’t matter : कपड़े तंग नहीं, सोच तंग है, पर समझने वालों को फर्क ही नहीं पड़ता ?
फिल्मों की नंगाई हो या अमृता फडणवीस के तंग कपड़े,
  • सबके पीछे खुले विचार ही तो हैं। मुख्यमंत्री से क्यों अपेक्षा करते हो कि वो अपनी बीबी पर लगाम लगा ले। उसकी बीबी नीला ड्रम नही खरीद सकती तो क्या हुआ , उसके पास भी कई ऑप्शन हैं. हाँ उसने तो पूरे कपडे पहने हैं न वो तो नंगा नहीं घूम रहा है न। रही बात बीबी की तो वो स्वयं सेविका की तरह शालीन ड्रेस पहनने के लिए उसे मजबूर कैसे किया जा सकता है ?
    अगर उसकी चलती होती तो क्या ये सम्भव था ? और आप अपने दिलों से पूछो कि क्या आपकी बीबियां और बच्चियां आपके बस में हैं ? आप कहेंगे हम मजबूर है तो बेचारा वो भी मजबूर है उसकी बीबी भी उसके बस में नही है। मुख्यमंत्री होने से क्या होता है घर पर तो मजबूर पति ही है न ! उसे भी प्रारम्भ में बीबी को अपने हिसाब से ढालने का समय नही था। इन्होंने धंधा तो किया नही। शुरू में बीबी ने कमाई करके अपने ढंग से घर चलाया। अब क्या हो सकता है या तो तलाक ले लो या रोज का झगड़ा करो !
    उसे भी पता है बाहर या पार्टी में जवाब देना मुश्किल है पर ये भी पता है कि घर पर जवाब देना उससे ज्यादा मुश्किल है। एक भारतीय पति देवेंद्र जी की मजबूरी ज्यादा समझ सकता है। बीबी कोई सेकेट्री या टिकिट के लिए लाइन में खड़ा विधायक तो है नही जो उसकी बात मजबूरी में माने।
  • इसे बड़े रूप में संघ से भी जोड़कर देखा जा सकता है। अब बचपन से संस्कार देने वाली सायं शाखाएं तो है नही । प्रभात शाखाओं की दम पर तथा पुराने बाल स्वयंसेवको की दम पर कुछ दिन और काम चला लो। फिर तो पके ब्रांडेड बर्तनों से ही काम चलाना पड़ेगा।
  • जैसे संघ भाजपाइयों से ये पूछने की हिम्मत नहीं सकता कि कई नेताओं का जब कोंई धंधा नहीं तो फिर इतना पैसा कहाँ से आता है ? जब इस भ्रष्टाचारी नंगेपन पर संघ अपने पुत्र भाजपा से कोंई प्रश्न नहीं पूछ सकता तो एक मजबूर भाजपाई मुख्यमंत्री पति अपनी कमाऊ पत्नी से कैसे पूछ सकता है ?
  • खेर सभी मजबूर हैं… न मजबूर कान्ग्रेस राहुल गांधी से कुछ पूछ सकती है, न मजबूर संघ भाजपा से कुछ पूछ सकता है, न देश की मजबूर जनता नेताओं या अभिनेताओं से कुछ पूछ सकती है सबसे ज्यादा मजबूर तो गांधी था जो नेहरू से कुछ नहीं पूछ सकता था। तो मजबूर देवेन्द्र फडनवीस अपनी बीबी से पहनावे को लेकर कैसे पूछेगा ?
    सब मजबूर हैं जी। दूसरे की क्या कहें…. दुष्परिणाम पता है पर हम भी तो अपनी आदत से मजबूर है !
    बाबा सत्यनारायण जी मौर्य की फेसबुक वाल से सभार।

News Editor- (Jyoti Parjapati)

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