Testimony : गुरु हरगोबिंद सिंहजी से डरा मुगल बादशाह, यह गुरुद्वारा आज भी देता गवाही

6 में गुरु हरगोविंद साहिब जी जो सिकलीगर बिरादरी का नाम रखा गया रखा गया
- कुछ लोग तो ऐसे हैं इनको दबाकर आप खुद आगे आना चाहते हैं सिकलीगर किसको कहा जाता है सिकरीगर जब युद्ध में हथियारों की जरूरत पड़ती थी जो तलवार में शक्ल देखने लगा देते थे उसको शिल्पकार को सीख ली घर कहा जाता है तो इनकी नाश्ता कोई सुनवाई और ना ही कोई उनके बच्चों को कोई पढ़ाई और ना आए कोई सूरत मेडिकल सूरत और ना कोई नौकरी की सफल क्योंकि यह मेहनत करने वाले सिख समुदाय से इन्होंने सरकार से आज तक कोई डिमांड नहीं देती पर अब यह ऑल इंडिया सोसाइटी सिकलीगर बिरादरी बन चुकी है जितनी देर तक सीख ली घर बिरादरी चुप थी चुप थी अब सिकलीगर बिरादरी आगे आ चुकी है इनके प्रदेश अध्यक्ष जिला सिंह जी हैं जिन्होंने सीख ली गैरों के बारे में बताया साथ में पत्रकार जगपाल सिंह बैठकर इनकी इंटरव्यू आओ हम देखते हैं और सुनते हैं जिला सिंह की जवानी जिला सिंह सिकरीगढ़ बिरादरी का नाम कैसेपड़ा
सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंहजी थे। नानक शाही पंचांग के अनुसार
- इस वर्ष गुरु हरगोबिंद जी की जयंती 18 जून को मनाई जाएगी। उन्होंने ही सिख समुदाय को सेना के रूप में संगठित होने के लिए प्रेरित किया था। सिखों के गुरु के रूप में उनका कार्यकाल सबसे अधिक था। उन्होंने 37 साल, 9 महीने, 3 दिन तक यह जिम्मेदारी संभाली थी।हरगोबिंद साहिब जी का जन्म 21 आषाढ़ (वदी 6) संवत 1652 ( 19 जून, 1595) को अमृतसर के वडाली गांंव में गुरु अर्जन देव के घर हुआ था।
- मुगल बादशाह जहांगीर ने उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें व 52 राजाओं को अपनी कैद से मुक्ति दी थी। उनके जन्मोत्सव को ‘ गुरु हरगोबिंद सिंह जयंती ’ के रूप में मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर गुरुद्वारों में भव्य कार्यक्रम सहित गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है। गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन किया जाता है। उनकी जयंती के अवसर पर जानें उनके कारनामे की बेहतरीन कहानी।
जीवन परिचय
- गुरु हरगोबिंद सिंह का जन्म अमृतसर के वडाली गांव में माता गंगा और पिता गुरु अर्जुन देव के यहां 21 आषाढ़ (वदी 6) संवत 1652 को हुआ था। सन् 1606 में ही उन्हें 11 साल की उम्र में गुरु की उपाधि मिल गई। उनको अपने पिता और सिखों के 5वें गुरु अर्जुन देव के द्वारा यह उपाधि मिली थी। गुरु हरगोबिंद सिंह जी को सिख धर्म में वीरता की नई मिसाल करने के लिए भी जाना जाता है। वह अपने साथ सदैव मीरी तथा पीरी नाम की दो तलवारें धारण करते थे। एक तलवार धर्म के लिए तथा दूसरी तलवार धर्म की रक्षा के लिए। मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन सिंह को फांसी दे दी गई तब गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने सिखों का नेतृत्व संभाला। उन्होंने सिख धर्म में एक नई क्रांति को जन्म दिया जिस पर आगे चलकर सिखों की विशाल सेना तैयार हुई।

जोड़ा नया आदर्श
- सन् 1627 में हुई जहांगीर की मृत्यु के बाद मुगलों के नए बादशाह शाहजहां ने सिखों पर और अधिक कहर ढहाना शुरू कर दिया। तब अपने धर्म की रक्षा के लिए हरगोबिंद सिंह जी को आगे आना पड़ा था। सिखों के पहले से स्थापित आदर्शों में से स्थापित आदर्शों में हरगोविंद सिंह जी ने ही यह आदर्श जोड़ा था कि सिखों को यह अधिकार है कि जरूरत पड़ने पर वे अपनी तलवार उठाकर भी अपने धर्म की रक्षा कर सकते हैं।
जहांगीर को सपने में मिला था रिहाई का आदेश
- सिखों द्वारा बगावत किए जाने के बाद मुगल बादशाह जहांगीर ने उन्हें कैद में डाल दिया था। गुरु हरगोबिंद सिंहजी 52 राजाओं समेत ग्वालियर के किले में बंदी बनाए गए थे। इन्हें बंदी बनाने के बाद से जहांगीर मानसिक रूप से परेशान रहने लगा। इसी दौरान मुगल शहंशाहों के किसी करीबी फकीर ने उसे सलाह दी कि वह गुरु हरगोबिंद साहब को तत्काल रिहा कर दें। यह भी कहा जाता है कि जहांगीर को स्वप्न में किसी फकीर से गुरुजी को आजाद करने का आदेश मिला था। जब गुरु हरगोबिंद को कैद से रिहा किया जाने लगा तो वह अपने साथ कैद हुए 52 राजाओं को भी रिहा करने के लिए अड़ गए।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखाया अन्याय, अधर्म से लड़ने की सीख, गीता में भी यही कहा गया
- अपने साथ कराई 52 राजाओं को छुड़ाया:- गुरु हरगोबिंद सिंह के कहने पर 52 राजाओं को भी जहांगीर की कैद से रिहाई मिली थी। जहांगीर एकसाथ 52 राजाओं को रिहा नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने एक कूटनीति बनाई और हुक्म दिया कि जितने राजा गुरु हरगोबिंद साहब का दामन थाम कर बाहर आ सकेंगे, वो रिहा कर दिए जाएंगे। इसके लिए एक युक्ति निकाली गई कि जेल से रिहा होने पर नया कपड़ा पहनने के नाम पर 52 कलियों का अंगरखा सिलवाया जाए। गुरु जी ने उस अंगरखे को पहना, और हर कली के छोर को 52 राजाओं ने थाम लिया और इस तरह सब राजा रिहा हो गए। हरगोबिंद जी की सूझ-बूझ की वजह से उन्हें ‘दाता बंदी छोड़’ के नाम से बुलाया गया।
‘दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा’
- बाद में गुरु हरगोविंद सिंह साहब के इस कारनामे को यादगार बनाए रखने के लिए जिस जगह उन्हें कैद किया गया था, वहां पर एक गुरुद्वारा बनाया गया। उनके नाम पर बना गुरुद्वारा ‘गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़’ के नाम से जाना जाता है। रिहाई के बाद फिर मुगलों के खिलाफ बगावत छेड़ते हुए उन्हें कश्मीर के पहाड़ों में जाकर रहना पड़ा। सन् 1644 में पंजाब के कीरतपुर में उनकी मृत्यु हो गई।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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