Prime Minister Issues : आज के अखबार बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री मुद्दे पर नहीं रहते हैं, आरोप लगाने से पहले जांच भी नहीं करते ?

Prime Minister Issues : आज के अखबार बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री मुद्दे पर नहीं रहते हैं, आरोप लगाने से पहले जांच भी नहीं करते

Prime Minister Issues : आज के अखबार बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री मुद्दे पर नहीं रहते हैं, आरोप लगाने से पहले जांच भी नहीं करते ?
Prime Minister Issues : आज के अखबार बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री मुद्दे पर नहीं रहते हैं, आरोप लगाने से पहले जांच भी नहीं करते ?

समय की जरूरत के अनुसार खबर द टेलीग्राफ में है। इसीलिए मैं उसका पुराना पाठक और प्रशंसक हूं लेकिन अदाणी के विज्ञापनों और प्रचार के लिए दूसरे अखबार देखने पड़ते हैं। द टेलीग्राफ की आज की लीड का शीर्षक है, जीवन बेहद मुश्किल में – प्राकृतिक आपदाएँ, जानवरों से संघर्ष, विस्फोट – हमारी खतरनाक स्थिति। इस मुख्य शीर्षक के तहत तीन खबरों के शीर्षक हैं, अनाथ, अब किशोरावस्था में बेघर। यह खबर दार्जीलिंग डेट लाइन से है और भूस्खलन से बेघर हुए अनाथ बच्चों की कहानी है। दूसरा शीर्षक है, बहराइच के शिकारी: भेड़िये और सरकारी उपेक्षा। यह एक गांव की कहानी है जहां एक भेड़िए ने खेत में काम कर रहे 40 साल के मिल्की राम पर हमला करके घायल कर दिया। तीसरी खबर कानपुर में स्कूटर विस्फोट की है। खबर के अनुसार इसमें आठ लोग घायल हो गए हैं। उत्तर प्रदेश के अखबार अमर उजाला के राजधानी, नई दिल्ली संस्करण में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। आज के अखबारों के पहले पन्ने की खबरों की भूमिका यह बताने के लिए है कि पहले पन्ने की तमाम खबरें कई अखबारों में नहीं होती हैं। इसके लिए कई फर्जी खबरें गढ़ी जाती हैं और कुछ तो प्रचार को भी खबर बना देते हैं। जो खबरें छोड़ दी जाती हैं या छूट जाती हैं उनका उदाहरण टेलीग्राफ की लीड से मिलता है जो अखबारों का काम होना चाहिए था। वैसे भी, पत्रकारिता की शुरुआती जानकारी यही होती है कि जो छिपाई जाए वही खबर है जो बताया जाए वह विज्ञापन है। भारतीय राजनीति की यह विडम्बना ही है कि इमरजेंसी में पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए तन कर खड़ा रहने वाला इंडियन एक्सप्रेस अब जर्नलिज्म ऑफ करेज के टैग लाइन के बावजूद उस खबर को पहले पन्ने की खबर बना रहा है जिसका विज्ञापन उसके पहले पन्ने पर है। इंडियन एक्सप्रेस अमर उजाला हो गया होता या पंजाब केसरी जैसा होता तो मैं इसकी चर्चा नहीं करता। इंडियन एक्सप्रेस की खासियत है कि आज भी वह अपनी एक्सक्लूसिव और खोजी खबरें पहले पन्ने पर छापता है और इस कारण पहले पन्ने की कई खबरें एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर नहीं होती हैं। यह ठीक भी है। लेकिन हवाई अड्डे के उद्घाटन और विज्ञापन की खबर तो रेखांकित करनी ही पड़ेगी। हालांकि, शीर्षक से इसे पहले पन्ने लायक बनाने की कोशिश की गई है। यह पत्रकारिता की विविधता है और जब पत्रकारिता को भी भ्रष्ट कर दिया गया है तो नए आने वाले पत्रकारों को यह सब समझना-जानना चाहिए।

मुंबई हमला या 26 नवंबर 2008 की घटना के बाद तब की सरकार ने क्या किया उसे मुद्दा बनाने की भाजपाई कोशिश, उसमें प्रधानमंत्री के कूदने के असर और उसकी सत्यता तथा संबंधित अन्य तथ्यों की चर्चा से पहले आज यह भी बताना जरूरी है कि प्रधानमंत्री की आज की इस दूसरी खबर या हेडलाइन मैनजमेंट को प्रभावी करने के लिए अखबारों ने किन खबरों को छोड़ दिया है या कम महत्व दिया है। मुख्य खबर और उससे जुड़े मामलों की चर्चा दूसरे हिस्से यानी आखिर में। देश में जब इतने सारे मामले चल रहे हैं। वोट चोरी पर्याप्त महत्वपूर्ण है, एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट और उसकी अंतिम तथाकथित शुद्ध मतदाता सूची की हालत, सुप्रीम कोर्ट में तारीख और उसके आदेश, मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंका जाना, जूता फेंकने वाले का बचाव, उसे मंच और माइक उपलब्ध कराना, मुख्य न्यायाधीश की आलोचना आदि तमाम मुद्दे बताते हैं कि दंगों से लाभ उठाने वाली पार्टी अब सामाजिक कलह से लाभ उठाने की कोशिश कर सकती है। ऐसे में तमाम ऐसी खबरें हैं जिन्हें प्रमुखता मिलनी चाहिए। ऐसे मुद्दे हैं जिनपर चर्चा होनी चाहिए लेकिन हम 2008 के मामले में उलझा दिए गए हैं या उसकी कोशिश चल रही है। आज द हिन्दू में छोटी लेकिन दिलचस्प खबर है, “पश्चिम बंगाल में अराजकता : राज्यपाल ने राष्ट्रपति से मुलाकात की”। राज्यपालों से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रेसिडेशियल रेफ्रेंस और उसकी चर्चा से लगता है कि देश में निर्वाचित सरकार से अलग, राज्यपालों की सत्ता और ताकत भी एक मुद्दा है जो आम जनता के हितों से ज्यादा महत्वपूर्ण बना दिया गया है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के दिल्ली आकर राज्य की शिकायत राष्ट्रपति से करने का मकसद हो सकने वाली एक खबर आज दि एशियन एज में है। इस खबर का शीर्षक है, दीदी ने (अमित) शाह को मीर जाफर कहा, प्रधानमंत्री को उनपर भरोसा नहीं करने की चेतावनी दी

नवोदय टाइम्स की आज की लीड कानपुर में विस्फोट की खबर है। शीर्षक के अनुसार मस्जिद के पास दो धमाके हुए हैं और सीपी ने कहा है कि यह साजिश है अथवा हादसा यह यह जांच के बाद पता चलेगा। आप जानते हैं कि देश में बम लेकर चलने की आजादी नहीं है। और आप थैले में या स्कूटी में बम लेकर वैसे नहीं आ जा सकते हैं जैसे राशन या सब्जी लेकर जाते हैं। अगर विस्फोट हुआ है तो बम ही होगा, नारियल तो खुद फटने से रहा, फिर भी यह जांच के बाद ही कंफर्म होगा कि साजिश है या हादसा। पुलिस के इतना सतर्क रहने के बावजूद या सतर्क रहने से ही हाल में खबर आई थी कि माले गांव विस्फोट के सभी आरोपी बरी हो गए। इनमें से एक को भोपाल की जनता ने बरी होने से पहले ही अपना सांसद चुन लिया था। बाद में मुकदमा सुनने वालों को संदेश मिल गया होगा। सुप्रीम कोर्ट के जजों के बारे में जब चर्चा है कि फैसले कैसे लिए जाते हैं तो निचली अदालतों के बारे में क्या कहा जाए। ऊपर की अदालत में कब अपील करनी है वह सरकार का निर्णय होता है और अक्सर उसमें राजनीति की बू आती है। उसे छिपाया भी नहीं जाता है। देशबन्धु की लीड का शीर्षक है, डबल्यूएचओ ने कफ सिरप पर जवाब मांगा। भारत सरकार से पूछा – किन किन देशों में भेजी गई कोल्डरिफ। मामला यह है कि भारत में बनी इस दवा से सबसे पहले उज्बेकिस्तान में बच्चों की मौत की खबर आई थी। फिर भारत में भी यह हादसा हुआ और अभी तक कोई 20 बच्चों की मौत की खबर है लेकिन भारत के औषधि महानियंत्रक या किसी मंत्री का इसपर कोई बयान नहीं है। खबर को भी पर्याप्त महत्व नहीं मिला। फॉलो अप तो अब होते नहीं हैं। ऐसे में इस खबर का अपना महत्व है लेकिन आज यह खबर भी लीड नहीं है तो कारण बताने की जरूरत नहीं है। दिलचस्प है कि आज ही अमर उजाला में पहले पन्ने पर ही एक खबर है बेबी पाउडर से मौत, जॉनसन एंड जॉनसन को देना होगा 8500 करोड़ का मुआवजा। कानून ऐसे ही होने चाहिए लेकिन यहां जो कानून बने हैं उन्हें हम देख रहे हैं और दवा से मौत का मामला और अखबारों (पत्रकारों) की भूमिका भी। (जारी)

News Editor- (Jyoti Parjapati)

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