Anas is fighting with burning : बुढ़ाना में नई SOG टीम पर गंभीर आरोप अनस जलकर लड़ रहा, कार्रवाई अब भी लंबित

मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना क्षेत्र में हाल के दिनों में पुलिस व्यवस्था और थाने की कार्यप्रणाली को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। इन सवालों के केंद्र में हैं नवागंतुक थानेदार सुभाष अत्री, जो कुछ दिनों पहले ही बुढ़ाना थाने का प्रभार संभालने आए हैं। स्थानीय सूत्रों और क्षेत्र के लोगों के अनुसार, अत्री अपने पिछले कार्यस्थल से तीन सिपाहियों को साथ लाए हैं। यह प्रथा सामान्य परिस्थितियों में असामान्य नहीं समझी जाती, लेकिन थानों की आंतरिक भाषा में इन्हें SOG (स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप) कहा जाता है, और यहीं से विवाद की शुरुआत होती है।
पुलिस महकमे में SOG का गठन विशेष परिस्थितियों और विशेष अभियानों के लिए किया जाता है, लेकिन DGP के स्पष्ट आदेश हैं कि थानों में व्यक्तिगत या स्थायी रूप से किसी भी प्रकार की SOG नहीं होनी चाहिए। इसका उद्देश्य थानों के भीतर मनमानी और शक्ति के केंद्रीकरण को रोकना है ताकि पुलिस व्यवस्था निष्पक्ष और पारदर्शी रहे। लेकिन बुढ़ाना में यह दावा किया जा रहा है कि SSP की जानकारी और देखरेख के बावजूद कुछ “करीबी थानेदार” थानों में अपनी अनौपचारिक SOG टीम बनाए रखते हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि ऐसी टीमें थानेदार के लिए एक तरह की “फील गुड टीम” बन जाती हैं—जो उनको सुरक्षा, प्रतिष्ठा और प्रभाव का एहसास कराती रहती हैं। आरोप हैं कि ऐसे सिपाही थानेदार के इशारों पर काम करते हैं और कई बार उनकी गतिविधियाँ औपचारिक पुलिस प्रक्रिया से बाहर भी चली जाती हैं। हालांकि, इन दावों की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
लेकिन इसी माहौल के बीच एक गंभीर और संवेदनशील घटना सामने आई, जिसने पूरे क्षेत्र को हिला दिया। बुढ़ाना इलाके में मोबाइल की दुकान चलाने वाले युवक अनस को कथित रूप से थाने की एक विशेष टीम उठा ले गई। परिवार और स्थानीय लोगों के अनुसार, अनस को बिना किसी स्पष्ट आरोप या नोटिस के थाने ले जाया गया।
अस्पताल में उपचार के दौरान अनस ने जो बयान दिया, उसके मुताबिक उसे थाने में ले जाकर जमकर पीटा गया। उसने आरोप लगाया कि उसे “फट्टे बजाए गए”, यानी चमड़े के मोटे पट्टों से मारा गया। यह भी कहा गया कि उसके सामने ₹5 लाख की मांग रखी गई। अनस ने बताया कि वह किसी तरह वहां से छूटा या छोड़ा गया, लेकिन मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना इतनी चरम थी कि उसने बेहद खौफ और निराशा में खुद को आग लगा ली।

इस दर्दनाक घटना में अनस 70% तक जल चुका है और दिल्ली के अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है। उसका शरीर गंभीर रूप से झुलस चुका है और डॉक्टर उसकी हालत को अत्यंत नाज़ुक बता रहे हैं। परिवार सदमे में है और स्थानीय लोग बेहद आक्रोशित हैं।
इस मामले ने थानेदार और उनकी तथाकथित SOG टीम की कार्यशैली को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या थाने में ऐसी अनौपचारिक टीमें वास्तव में सक्रिय हैं? क्या किसी निजी उद्देश्य या दबाव में किसी नागरिक को उठाना और प्रताड़ित करना पुलिस प्रक्रिया का हिस्सा हो सकता है? ये सभी सवाल स्थानीय प्रशासन के सामने चुनौती बनकर खड़े हैं।
घटना का वीडियो और अनस के बयान सामने आने के बाद स्थानीय प्रशासन हरकत में आया। SSP ने तुरंत आदेश जारी कर SP देहात को जांच सौंपी है। लेकिन बड़ी बात यह है कि जांच शुरू होने के बावजूद अब तक किसी भी पुलिसकर्मी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। न कोई निलंबन, न पूछताछ की आधिकारिक पुष्टि—कुछ भी नहीं। इससे लोगों में यह धारणा बन रही है कि मामले को दबाने या टालने की कोशिश की जा रही है।
आम जनता के बीच सवाल उठ रहे हैं कि जब एक युवक 70% जल चुका है और उसका बयान गंभीर आरोपों से भरा है, तो फिर कार्रवाई में इतनी देरी क्यों? क्या उच्चाधिकारियों का हस्तक्षेप केवल औपचारिकता है?
स्थानीय नागरिकों, सामाजिक संगठनों और व्यापारी वर्ग ने भी मांग की है कि जांच पारदर्शी हो और यदि प्रताड़ना और धन उगाही के आरोप सही पाए जाएं तो दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाए। यह सिर्फ एक युवक का मामला नहीं है, बल्कि कानून-व्यवस्था पर लोगों का भरोसा बनाए रखने का प्रश्न है।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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