Beautiful confluence : आया सावन झूम के कार्यक्रम में सांस्कृतिक उत्सव और पर्यावरण संरक्षण का सुंदर संगम

1. पारंपरिक उत्सव की अनुपम छटा: कजरी, नृत्य और सावनी फुहार का आयोजन
- वाराणसी में महिला भूमिहार समाज द्वारा सावन के पावन महीने में “आया सावन झूम के” नामक एक रंगारंग और पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होटल अमाया में भव्य रूप से किया गया। यह आयोजन न केवल सावन की उमंग और उत्साह का प्रतीक था, बल्कि महिलाओं को एक मंच पर लाकर उनकी सांस्कृतिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने की एक प्रेरक पहल भी थी।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से की गई, जिससे शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बना। इसके बाद विघ्नहर्ता श्री गणेश की वंदना के मधुर गायन ने सभी को आध्यात्मिक भाव में सराबोर कर दिया। सभी महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में लोकगीतों—विशेष रूप से कजरी—का गायन कर सावन के रंगों को जीवंत कर दिया। पारंपरिक नृत्य की प्रस्तुतियों ने कार्यक्रम को अत्यंत मनोरंजक और भावनात्मक बना दिया, जिससे समस्त उपस्थितगण मंत्रमुग्ध हो उठे।
2. एक वृक्ष मां के नाम: पर्यावरण संरक्षण की अनूठी शपथ
- इस सांस्कृतिक उल्लास के साथ-साथ एक अत्यंत प्रेरणादायक पहल भी देखने को मिली। महिला भूमिहार समाज की सदस्यों ने “एक वृक्ष मां के नाम” अभियान के अंतर्गत वृक्षारोपण किया और पौधों को अपनी मां के रूप में मानकर उनकी देखभाल का संकल्प लिया। यह अनूठा विचार प्रकृति के प्रति संवेदना और मातृत्व की भावना को जोड़ता है। सदस्यों ने कहा कि जिस प्रकार एक मां अपने बच्चों की देखभाल करती है, उसी तरह वे उन पौधों की परवरिश करेंगी। यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक भावनात्मक और स्थायी पहल है, जो समाज को सकारात्मक संदेश देती है। इस अवसर पर पौधे लगाए गए और उनके संरक्षण हेतु व्यक्तिगत जिम्मेदारी ली गई, जिससे कार्यक्रम केवल एक आयोजन न रहकर एक सामाजिक आंदोलन का स्वरूप लेने लगा।
3. मुख्य अतिथियों का मार्गदर्शन: नारी शक्ति और संस्कृति के समन्वय पर बल
- कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. इंदू सिंह और विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. माधुरी राय, नीलम सिंह, डॉ. सुषमा राय और प्रिया उपस्थित रहीं। उन्होंने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे आयोजनों से न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत संरक्षित होती है, बल्कि महिलाओं में आत्मबल, नेतृत्व क्षमता और सामाजिक जागरूकता भी विकसित होती है। डॉ. इंदू सिंह ने कहा कि “जब महिलाएं सामाजिक कार्यों में सक्रिय होती हैं, तो समाज में सकारात्मक परिवर्तन अवश्य आते हैं।” वहीं, प्रो. माधुरी राय ने इस आयोजन को “संस्कृति, सेवा और सशक्तिकरण का त्रिवेणी संगम” बताया। उन्होंने युवतियों से अनुरोध किया कि वे भी अपनी संस्कृति को अपनाएं और साथ ही पर्यावरण की रक्षा में भाग लें। सभी अतिथियों ने समाज की इस पहल की सराहना करते हुए इसे दूसरे संगठनों के लिए अनुकरणीय बताया।
4. डॉ. राजलक्ष्मी राय का संदेश: संस्कृति और समाज सेवा का समन्वय ही भविष्य की राह
- महिला भूमिहार समाज की संस्थापिका डॉ. राजलक्ष्मी राय ने अपने उद्बोधन में कहा कि “हमारा उद्देश्य केवल सांस्कृतिक कार्यक्रम करना नहीं है, बल्कि महिलाओं को सामाजिक बदलाव की मुख्यधारा में लाना है।” उन्होंने आगे कहा कि सावन का महीना प्रकृति और जीवन के उत्सव का प्रतीक है। जब वातावरण हरियाली से सराबोर होता है, तब महिलाओं द्वारा एक वृक्ष मां के नाम लगाना इस बात का संकेत है कि हम प्रकृति को अपनी मां की तरह पूजते हैं और उसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। डॉ. राय ने यह भी कहा कि समाज की महिलाओं को आत्मनिर्भर, शिक्षित और संवेदनशील बनाना ही इस संगठन की प्राथमिकता है। इस दिशा में महिला भूमिहार समाज लगातार कार्य कर रहा है और भविष्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन के क्षेत्र में और अधिक कार्य किए जाएंगे।
- निष्कर्ष:
“आया सावन झूम के” कार्यक्रम महिला भूमिहार समाज द्वारा एक सुंदर प्रयास रहा जिसमें परंपरा, पर्यावरण और नारी सशक्तिकरण को एक मंच पर लाया गया। जहां एक ओर सांस्कृतिक उत्सव ने सभी को भावनात्मक और सामाजिक रूप से जोड़ा, वहीं दूसरी ओर “एक वृक्ष मां के नाम” जैसी पहल ने पर्यावरण संरक्षण को व्यक्तिगत जिम्मेदारी से जोड़ा। यह आयोजन यह सिखाता है कि जब महिलाएं संस्कृति और समाज सेवा के कार्यों में एकजुट होती हैं, तब वे समाज में स्थायी परिवर्तन की वाहक बनती हैं। महिला भूमिहार समाज की यह पहल निश्चित ही आने वाले समय में अनेक लोगों को प्रेरणा देने का कार्य करेगी।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)