Commission game going on in books : किताबो में चल रहा कमीशन का खेल कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग ?

Commission game going on in books : किताबो में चल रहा कमीशन का खेल कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग ?

Commission game going on in books : किताबो में चल रहा कमीशन का खेल कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग ?
Commission game going on in books : किताबो में चल रहा कमीशन का खेल कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग ?

स्कूल खुलते ही बच्चो के परिजनों की जेबों पर डाका..!!*
किताबो में चल रहा कमीशन का खेल कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग..!!
उत्तर प्रदेश जनपद हापुड़

  • हापुड़ में स्कूलों में भी पढ़ाने वाले शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता के कोई मानक तय..!!*
    आज के समय में प्राइवेट स्कूल वोलो ने शिक्षा को व्यवसाय बना दिया.अब बच्चों को पढ़ाना बहुत कठिन हो गया है एक तरफ तो मंहगाई ओर ऊपर से स्कूलों की मन मानी!सरकार भले ही नई शिक्षा नीति से तमाम परिवर्तन का ढिंढोरा पीट रही हो, लेकिन निजी स्कूलों की निगरानी का कोई तंत्र नहीं है.ज्यादातर जगहों पर अभिभावकों को किताबें स्कूल के अंदर से या मनचाही दुकानों पर उपलब्ध कराई जा रही है,अब किताबें बेचने के तरीकों में थोड़ा बदलाव किया गया है।अब यह किताबें मिलने का स्थान स्कूल प्रबंधक खुद बता रहे है।अभिभावक जब बच्चो को दाखिला दिलाने आते है तो ठिकाने की जानकारी दे दी जाती है।ये काम ज्यादातर उन स्कूलों में हो रहा है!प्राइवेट स्कूलों की मनमानी तो यह है कि यह हर वर्ष नए सिलेबस की किताबें लगा रहे है।ऐसे में अगर किसी का बच्चा दूसरी कक्षा में पढ़ता है तो पहली कक्षा वाले बच्चे के काम यह किताबें नही आएंगी,वहीं एक अप्रैल से स्कूलों में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है।स्कूलों में दाखिला प्रक्रिया भी जोरों पर चल रही है।परन्तु अभी तक शिक्षा विभाग ने किसी भी निजी स्कूल पर कार्रवाई नहीं की है! जबकि अधिकारियों को केवल स्कूल में जाकर छापेमारी करनी चाहिए उन्हें किताबों के ढेर मिल जाएंगे!वहीं स्कूलों में भी पढ़ाने वाले शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता के कोई मानक तय नहीं है।यहां कम शैक्षिक योग्यता वाले अप्रशिक्षित युवक-युवतियों को शिक्षण कार्य में लगाया जाता है।इससे इस तरह के शिक्षकों को कम वेतन देकर अधिक मुनाफा कमा लेते हैं! इस कारण इस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है जबकि किताबो में चल रहा है कमीशन का खेल,कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग फेल स्कूल खुलते ही शिक्षा माफियाओं ने बच्चो के परिजनों की जेबों पर डाका डालना शुरू कर दिया है!निजी स्कूलों द्वारा उनके मनचाहे प्रकाशकों की कापी किताबें लेने के लिए परिजनों पर दबाव बनाया जा रहा है!इनमें शहर के अधिकांश स्कूल शामिल है।जिन स्कूलों में बच्चो को एनसीईआरटी की किताबें लगानी चाहिए, व निजी प्रकाशकों की किताबें पढ़ने को मजबूर कर रहे है!क्योंकि प्रकाशकों की और से स्कूलों को मोटा कमीशन दिया जा रहा है। यह कमीशन 30से 50 फीसद है। किताबें कौन से प्रकाशक की लगेगी यह भी कमीशन पर निर्भर है।बल्कि स्कूल में बच्चों को जो किताब 50 रुपये में मिलनी चाहिए उसे प्राइवेट स्कूल 100 लेकर 300 रुपये में देते हैं और फीस मनमानी लेते हैं कुछ स्कूल वाले बिना बताए स्कूल एडमिशन होने के एक महा बाद स्कूल में बच्चों की फीस भी बढ़ा देते हैं अभिभावक अब अपने बच्चों को स्कूल छोड़कर भी जाना चाहे तो कहां जाए मजबूरी में स्कूल वालों की बढी फीस पर ही बच्चों को स्कूल में पढ़ना पड़ रहा है ।इस बात की जांच होनी चाहिए कि प्राइवेट स्कूल बच्चे को किस कीमत पर किताब दे रहे हैं और सरकारी स्कूल में वही किताब किस दर पर मिलती है।आम गरीब को मजबूरी में प्राइवेट स्कूलों में जाना पड़ता है। शिक्षा इतनी महँगी हो गई है कि आम गरीब को कर्जा लेकर अपने बच्चों को पढ़ाना पड रहा है जिला अधिकारी प्रेरणा शर्मा का शिक्षा विभाग को सक्ती से जांच के आदेश करें उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्री भी प्राइवेट स्कूल वालों पर ध्यान नहीं देते हैं इसलिए स्कूल वालों की मनमानी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।।

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