Connection bottleneck : तीतरों वेतन न मिलने पर जेई ने किसान को किया परेशान, ट्यूबवेल कनेक्शन में अड़चन

तीतरों (सहारनपुर)। बिजली विभाग की लापरवाही और आंतरिक प्रशासनिक खींचतान का खामियाजा अब आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। ग्राम ठोल्ला निवासी किसान सिंह राम को चार माह पहले दिए गए ट्यूबवेल कनेक्शन के लिए अभी तक जरूरी उपकरण नहीं मिल पाए हैं, और इसका कारण है तीतरों बिजली घर के जूनियर इंजीनियर (JE) का एक माह का रुका हुआ वेतन।
किसान सिंह राम की आपबीती
किसान सिंह राम ने बताया कि उन्होंने चार महीने पहले अपने खेतों की सिंचाई के लिए ट्यूबवेल कनेक्शन हेतु आवेदन किया था। उन्होंने उत्तर प्रदेश ऊर्जा निगम द्वारा जारी एस्टीमेट की राशि को भी समय से जमा कर दिया और सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली थीं। इसके बावजूद, जब वे बार-बार तीतरों बिजलीघर के जेई अवधेश कुमार के पास जाकर गेट पास की मांग करते हैं, तो उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है।
सिंह राम ने बताया, “मैं पिछले एक महीने से बिजलीघर के चक्कर लगा रहा हूं। जेई साहब हर बार कोई न कोई बहाना बना देते हैं। अब साफ कह रहे हैं कि जब तक उनका वेतन नहीं मिलेगा, तब तक मेरा गेट पास जारी नहीं होगा।”
कर्मचारी की नाराजगी बनी किसान की परेशानी
बिजली घर के जेई अवधेश कुमार ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि उनका जुलाई माह का वेतन गंगोह एसडीओ द्वारा कार्य संतोषजनक न होने के कारण रोक दिया गया है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “जब तक मेरा वेतन नहीं दिया जाता, तब तक मैं बिजलीघर से संबंधित कोई काम नहीं करूंगा। चाहे वह किसान का गेट पास हो या कोई अन्य कार्य।”
यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे विभागीय विवादों और अंदरूनी नाराजगी का सीधा असर आम नागरिकों पर पड़ता है। जहां किसान को अपने खेतों में पानी देने के लिए ट्यूबवेल की जरूरत है, वहीं अधिकारी अपने वेतन की लड़ाई में जनता की जरूरतों को नजरअंदाज कर रहे हैं।
राजनीतिक प्रतिनिधियों की सक्रियता
किसान की शिकायत पर भाजपा किसान मोर्चा के तीतरों मंडल अध्यक्ष अमित गुर्जर ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने जब जेई अवधेश कुमार से इस विषय में बातचीत की तो उन्होंने वही बात दोहराई — “जब तक वेतन नहीं मिलेगा, तब तक कोई कार्य नहीं करूंगा।”
अमित गुर्जर ने इस मामले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि “एक तरफ सरकार किसानों की भलाई और सुविधा की बात करती है, वहीं दूसरी ओर विभागीय कर्मचारियों की यह कार्यशैली किसानों के हितों पर पानी फेर रही है।”
उन्होंने आगे कहा कि वे इस मुद्दे को जिले के उच्च अधिकारियों तक पहुंचाएंगे और मांग करेंगे कि किसान को जल्द से जल्द उसका कनेक्शन और सामान उपलब्ध कराया जाए।
व्यवस्था पर उठते सवाल
यह पूरी घटना स्थानीय बिजली विभाग की लचर कार्यप्रणाली और कर्मचारियों की मनमानी को उजागर करती है। सवाल यह उठता है कि अगर किसी कर्मचारी का वेतन रोका गया है, तो इसका समाधान विभागीय स्तर पर होना चाहिए — न कि आम जनता को इसकी कीमत चुकानी पड़े।
सिंह राम जैसे हजारों किसान सरकारी योजनाओं और सुविधाओं पर निर्भर होते हैं, और जब वे पूरी औपचारिकताएं पूरी कर चुके हों, तो उन्हें इस प्रकार मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जाना कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।
प्रशासन से उम्मीद
अब यह देखना होगा कि ऊर्जा विभाग और जिला प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाते हैं। यदि कर्मचारियों की वेतन संबंधित समस्याएं हैं तो उन्हें विभागीय स्तर पर हल किया जाना चाहिए, ताकि ऐसे मामले दोबारा न हों।
वहीं दूसरी ओर, किसानों और आम नागरिकों को आवश्यक सुविधाएं समय से उपलब्ध कराना प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी है। यदि विभागीय नाराजगी का असर आम जनता तक पहुंचने लगे तो यह सुशासन पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
निष्कर्ष
तीतरों में घटित यह घटना एक छोटा सा उदाहरण है लेकिन यह प्रशासनिक लापरवाही, कर्मचारी असंतोष और सरकारी सेवाओं की जमीनी हकीकत को स्पष्ट करता है। किसान सिंह राम जैसे लोग, जो अपनी मेहनत और भरोसे के साथ सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना चाहते हैं, जब इस तरह की अड़चनों में फंसते हैं तो उनका विश्वास तंत्र पर से उठता है।
अब ज़रूरत है कि जिला प्रशासन इस मामले में संज्ञान लेते हुए न केवल किसान को तत्काल राहत प्रदान करे बल्कि ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश भी जारी करे। इसके साथ ही बिजली विभाग को भी चाहिए कि वह कर्मचारियों की समस्याओं को प्राथमिकता से निपटाए ताकि वे जनता की सेवा में बाधा न बनें।
जनहित और जनसेवा से जुड़े विभागों में कार्यरत कर्मचारियों को यह समझना होगा कि उनके व्यक्तिगत मुद्दों का समाधान आम जनता की सुविधाओं को रोककर नहीं किया जा सकता। तभी एक जवाबदेह और संवेदनशील प्रशासन की परिकल्पना साकार हो सकेगी।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)
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