Crowd of devotees : कार्तिक पूर्णिमा पर गढ़ मेले में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

कार्तिक मास की पूर्णिमा के पावन अवसर पर गढ़ मेले में श्रद्धालुओं की विशाल भीड़ उमड़ पड़ी। यह मेला हर साल कार्तिक मास में आयोजित होता है और इसकी विशेषता है कि इस दिन श्रद्धालु गंगा जी में डुबकी लगाकर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए दीपदान करते हैं। इस वर्ष भी मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे, जिन्होंने भक्ति और श्रद्धा के साथ अपने पितरों को याद किया और उनके लिए गंगा में तुलसी व दीप अर्पित किए। यह मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह श्रद्धालुओं को अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करने और पापों से मुक्ति पाने का अवसर भी प्रदान करता है।
मेला स्थल पर श्रद्धालुओं की भीड़ इतनी अधिक थी कि मेले का प्रबंधन और व्यवस्था बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो गया। इस चुनौतीपूर्ण कार्य में जिला पंचायत की सदस्य रेखा हुड़ ने विशेष भूमिका निभाई। उन्होंने मेले में आए सभी श्रद्धालुओं से शांति बनाए रखने की अपील की और उनके मार्गदर्शन में मेले की व्यवस्थाएं सुचारू रूप से संचालित की गई। रेखा हुड़ के प्रयासों और सतत् निगरानी के कारण मेले का माहौल पूरी तरह से शांतिपूर्वक और सुरक्षित रहा।
इसके अलावा, पुलिस प्रशासन ने भी इस धार्मिक आयोजन में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मेले की सुरक्षा, भीड़ प्रबंधन और यातायात की व्यवस्था में सक्रिय सहयोग प्रदान किया। उनकी तत्परता के कारण मेले में आए लाखों श्रद्धालु बिना किसी बाधा के गंगा स्नान कर सके और अपने पितरों के लिए दीपदान कर सके। पुलिस प्रशासन और जिला पंचायत के संयुक्त प्रयासों ने यह सुनिश्चित किया कि धार्मिक कार्यक्रम सुचारू रूप से संपन्न हो और कोई भी अप्रिय घटना न हो।
गंगा स्नान और दीपदान के अलावा, मेले में अन्य आकर्षण भी उपस्थित थे। इस मेले में खासकर कुमाओं का मेला भी लगता है, जहां घोड़ों की खरीद-बिक्री होती है। मेले में कई लाख रुपये के घोड़े भी खरीदे-बिके और विभिन्न प्रकार के घोड़े देखने को मिले। यह मेला केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और व्यापारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। लोग दूर-दूर से अपने परिवारों के साथ इस मेले में भाग लेने आते हैं और अपने पितरों की स्मृति में दीपदान और तुलसी अर्पित करते हैं।
मेले का प्रमुख आकर्षण गंगा स्नान और दीपदान रहा। श्रद्धालु गंगा जी में डुबकी लगाकर अपने पापों की शांति और पितरों के कल्याण के लिए दीप और तुलसी अर्पित करते हैं। यह दृश्य अत्यंत श्रद्धापूर्ण और मनोहारी होता है। दीपदान के बाद श्रद्धालु मेले का जायजा लेते हैं और अन्य सांस्कृतिक व व्यावसायिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। मेले में आए दूर-दूर के श्रद्धालुओं ने भी पुलिस और प्रशासन द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की और कहा कि उनके कारण मेला शांतिपूर्वक संपन्न हुआ।

इस मेले में बच्चों, युवाओं और वृद्धजन सभी ने हिस्सा लिया। श्रद्धालु अपने परिवारों के साथ आए और उन्होंने अपने पितरों की स्मृति में दीप अर्पित किए। मेले में लगी भीड़ के बावजूद सुरक्षा, व्यवस्था और शांति बनाए रखने में प्रशासन और जिला पंचायत का योगदान अतुलनीय रहा। रेखा हुड़ ने व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक स्थल का निरीक्षण किया और सुनिश्चित किया कि सभी श्रद्धालु आराम और सुरक्षा के साथ अपने धार्मिक कर्तव्य का पालन कर सकें।
इस मेला में न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का महत्व रहा, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा। घोड़ों की खरीद-बिक्री, विभिन्न व्यावसायिक स्टाल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने मेले को और भी जीवंत बना दिया। श्रद्धालुओं ने न केवल गंगा स्नान और दीपदान किया, बल्कि मेले की अन्य गतिविधियों का भी आनंद लिया। इस प्रकार, यह मेला श्रद्धा, भक्ति और सामाजिक सहभागिता का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।
मेला स्थल पर सुरक्षा व्यवस्था और भीड़ प्रबंधन के लिए पुलिस और जिला पंचायत ने मिलकर विशेष प्रबंध किए। इस मेला में आए लाखों श्रद्धालुओं ने इस आयोजन को सफल बनाने में योगदान दिया। प्रशासन और समाज के विभिन्न वर्गों के सहयोग से यह सुनिश्चित किया गया कि मेले का हर कार्यक्रम सुरक्षित और शांतिपूर्वक संपन्न हो। दीपदान और तुलसी अर्पित करने के बाद श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति की कामना करते हैं और अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए गंगा स्नान करते हैं।
इस प्रकार, कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गढ़ मेला धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। लाखों श्रद्धालुओं ने अपनी भक्ति और श्रद्धा से मेले को जीवंत किया, पुलिस प्रशासन और जिला पंचायत के सहयोग से मेले का संचालन सफल रहा, और सभी ने मिलकर इस पावन अवसर को यादगार बनाया। दीपदान और गंगा स्नान का यह अनुभव श्रद्धालुओं के लिए जीवनभर स्मरणीय रहेगा।
गंगा जी में डुबकी लगाकर अपने पितरों के लिए दीप अर्पित करना और तुलसी अर्पित करना इस मेला की मुख्य परंपरा रही। इस धार्मिक आयोजन ने श्रद्धालुओं के मन में आध्यात्मिक शांति और सांस्कृतिक अनुभव का संचार किया। रेखा हुड़ और प्रशासन के प्रयासों से यह मेला न केवल सुरक्षित और व्यवस्थित रहा, बल्कि हर व्यक्ति को भक्ति, श्रद्धा और सेवा का अनुभव प्राप्त हुआ। ऐसे आयोजन समाज में धार्मिकता और मानवता की भावना को मजबूत करते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं।
यदि आप चाहें, तो मैं इसे और भी अधिक रोचक और संपादित संस्करण में बदलकर अखबार की शैली में भी लिख सकता हूँ, जिसमें सभी मुख्य बिंदु जीवंत और पठनीय रूप में प्रस्तुत हों।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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