Did not appear to be : बहुत तलाश किया लेकिन बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी सहाब जैसा कोई नेता नहीं नजर आया ?

Did not appear to be : बहुत तलाश किया लेकिन बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी सहाब जैसा कोई नेता नहीं नजर आया

Did not appear to be : बहुत तलाश किया लेकिन बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी सहाब जैसा कोई नेता नहीं नजर आया ?
Did not appear to be : बहुत तलाश किया लेकिन बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी सहाब जैसा कोई नेता नहीं नजर आया ?

आपका भाव स्पष्ट है और आपकी बातों में एक बेचैनी, एक सच्चाई और एक आह्वान झलकता है। आपने जो मुद्दे उठाए हैं, वो आज के मुस्लिम समाज की राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक स्थिति पर गहराई से टिप्पणी करते हैं। नीचे आपकी भावना को संरचित और विस्तार से 800 शब्दों में लिखा गया है:

“बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी जैसा कोई नहीं” — एक सच्चाई जिसे सुनना बहुतों को पसंद नहीं

  • मैं किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता नहीं हूँ। मैं न तो किसी पार्टी के झंडे तले खड़ा हूँ और न ही वोट मांग रहा हूँ। मैं सिर्फ एक बात कह रहा हूँ – सच और हक़ की। और जब बात सच की होती है, तो चेहरों से नकाब उतरते हैं। उस नकाब के नीचे कई ऐसे लोग होते हैं जो मुसलमानों का वोट तो लेना जानते हैं, मगर उनके लिए बोलने से डरते हैं या मुँह फेर लेते हैं।
  • ऐसे माहौल में जब बहुसंख्यक राजनीति का डर दिखाकर अल्पसंख्यकों को चुप करा दिया जाता है, तब एक शख्स ऐसा है जो संसद में खड़ा होकर साफ-साफ कहता है कि “हम भी इंसान हैं, हमें भी हक़ चाहिए, हमें भी इज्जत चाहिए।”
    वो शख्स हैं बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी
  • कई लोग उन्हें “बी टीम” कहते हैं, लेकिन ये पूछना जरूरी है कि “तुम्हारी ए टीम ने मुसलमानों के लिए अब तक क्या किया?” जब संसद में इकरा हसन जैसी महिला सांसद को अपमानजनक शब्द कहे जाते हैं और कोई नहीं बोलता, तब वो कौन है जो आवाज़ उठाता है? क्या वो “ए टीम” बोलती है? क्या सेक्युलर कहलाने वाले बड़े नेता बोलते हैं? नहीं।
  • जब कोई खुलकर बोले, डरे नहीं, संविधान का हवाला दे और अपने मजहब की बात करे – तो उसे कट्टर कहा जाता है, बी टीम कहा जाता है। मगर जो चुप हैं, जो केवल कुर्सी के लिए मुसलमानों को इस्तेमाल करते हैं, उन्हें “मुख्यधारा” कहा जाता है।

20% मुसलमान 75 सालों में अपनी राष्ट्रीय पार्टी तक नहीं बना पाए।

  • आज जिन राज्यों में 5%, 7%, या 14% मुस्लिम आबादी है, वहाँ की सरकारें उन समुदायों की पार्टियाँ चला रही हैं। तो सवाल यह है कि जब 20% आबादी होते हुए भी हम सियासत में अपनी आवाज़ नहीं बना पाए, तो इसकी वजह क्या है?
  • दरअसल, हमें डराया गया। बताया गया कि “सियासत गंदी चीज़ है”, “मजहब और राजनीति अलग रखो”, “कहीं हिंदू डर न जाएं”, “सेक्युलरिज़्म को बचाओ” – और इसी चक्कर में हम अपने वजूद को बचाना भूल गए
  • आज मुसलमानों की एक ऐसी हालत है कि अपना नाम तक छुपाना पड़ता है, दाढ़ी रखना खतरे का संकेत बन गया है, टोपी पहनना दहशत का प्रतीक बना दिया गया है। अगर आज भी हमने अपनी सियासी पहचान को नहीं बनाया, तो आने वाली नस्लें हमें माफ नहीं करेंगी।
  • हमने कभी यह नहीं कहा कि “तुम ओवैसी को पसंद करो ही करो,” मगर सवाल यह है कि तुम उन्हें नापसंद क्यों करते हो? क्या इसलिए कि वो तुम्हारे लिए बोलते हैं? क्या इसलिए कि वो तुम्हें डर से बाहर निकालना चाहते हैं?
  • सच तो ये है कि ओवैसी अकेले नहीं लड़ सकते। उन्हें आपका साथ चाहिए, आपकी मौजूदगी चाहिए, आपकी आवाज़ चाहिए। जब हम खुद चुप रहते हैं, तब कोई क्यों हमारे लिए बोले?
  • हर मजहब, हर कौम की हिफाजत तभी हो सकती है जब वो खुद अपनी हिफाजत के लिए खड़ी हो। हमने ये नहीं कहा कि हर मुसलमान ओवैसी की पार्टी को वोट दे, मगर अगर आप किसी ऐसे नेता को भी नहीं पहचानते जो आपके लिए सच बोलता है, तो फिर आप सियासत से सिर्फ गुलामी चाहते हैं।
  • सिर्फ चंद दिनों के फायदे के लिए हम उस नेता की बात सुनते हैं जो वोट से पहले हमसे प्यार करता है, और नतीजों के बाद हमें पहचानता भी नहीं।
    लेकिन ये बात याद रखो –
    अगर हमने आज अपनी राजनीतिक पहचान नहीं बनाई, अगर हमने आज भी सच्चाई का साथ नहीं दिया, तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी आने वाली नस्लें अपने नाम तक बदलने को मजबूर होंगी।
  • दाढ़ी रखना गुनाह बन जाएगा, मस्जिद जाना खतरा बन जाएगा, और मुस्लिम पहचान एक बोझ बनकर रह जाएगी।
    हम आजादी के 75 साल बाद भी “तुम तो पाकिस्तान चले जाओ” जैसी बातों से जूझ रहे हैं – और हम अब भी “सेक्युलर” चेहरों को अपना रहनुमा मान रहे हैं जो हमारे लिए संसद में चुप रहते हैं।
  • अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ वोटर नहीं, सियासी किरदार भी बनें।
    हम सिर्फ शिकार नहीं, सवाल बनें।
    हम सिर्फ गिनती नहीं, गूंज बनें।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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