Divine event : नान (हापुड़) में माता रानी का भव्य दरबार एवं जागरण समारोह भक्ति और आस्था से ओतप्रोत एक दिव्य आयोजन

नवरात्रि, जिसे शक्ति की उपासना और भक्ति के पर्व के रूप में जाना जाता है, हर वर्ष न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र होता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता का भी प्रतीक बन जाता है। इसी पावन अवसर पर हापुड़ क्षेत्र के नान गाँव में माता रानी का एक दिव्य एवं भव्य दरबार सजाया गया, जिसने सम्पूर्ण क्षेत्र को भक्तिरस में डुबो दिया। यह आयोजन श्रद्धालु नरेंद्र, पुत्र धर्मवीर, के कर्मकमलों द्वारा संपन्न हुआ, जिन्होंने नवरात्रि के अवसर पर विशाल जागरण एवं भंडारे का सुंदर आयोजन कर जनमानस के बीच धार्मिक ऊर्जा का संचार किया। माँ दुर्गा की आराधना से ओतप्रोत यह आयोजन संपूर्ण क्षेत्र के लिए एक आध्यात्मिक उत्सव बन गया।
विशेष रूप से सजाए गए माता के दरबार में श्रद्धा और विश्वास की छटा स्पष्ट दिखाई दी। द्वार को फूलों, रंग-बिरंगी लाइटों और पारंपरिक सजावट से इस तरह सजाया गया था कि मानो स्वयं माँ दुर्गा साक्षात विराजमान हों। भक्तों की भीड़ माता के दर्शन हेतु देर रात तक उमड़ी रही। भक्तिमय वातावरण, गूंजते जयकारों और लगातार चल रहे भजनों ने आयोजन स्थल को एक अलौकिक आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। गाँव ही नहीं, आसपास के क्षेत्रों से भी श्रद्धालु इस आयोजन में सम्मिलित होने पहुंचे और माता के चरणों में नतमस्तक हुए।
इस जागरण की खास बात यह रही कि इसमें पिलखुवा से आए निरज भाटी पालटी के भजन गायकों ने अपनी सुरीली आवाज़ और हृदयस्पर्शी प्रस्तुतियों से माँ की भक्ति का अद्भुत वातावरण निर्मित कर दिया। भजनों की गूंज से संपूर्ण आयोजन स्थल में दिव्यता फैल गई और हर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गया। “मेरी मैया दे दीदार”, “जय अम्बे गौरी”, “तूने मुझे बुलाया शेरांवालीए” जैसे प्रसिद्ध भजनों से लेकर नवीन रचनाओं तक, हर प्रस्तुति ने भक्तों के मन को छू लिया। गायकों की समर्पण भावना और भक्ति से लबरेज सुरों ने यह सिद्ध कर दिया कि माँ की भक्ति में संगीत भी स्वयं साधना बन जाता है।
इस जागरण में अनेक लोकल और बाहर से आमंत्रित कलाकारों व गायकों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। खास बात यह रही कि सिर्फ भजन गायन ही नहीं, बल्कि आयोजन में नई-नई छाकियाँ (धार्मिक झांकियाँ) भी प्रस्तुत की गईं, जिनमें माता के विभिन्न रूपों का जीवंत चित्रण किया गया। देवी दुर्गा के नौ रूपों को साकार करती इन छाकियों ने श्रद्धालुओं को नवरात्रि के महत्व और माँ के विविध स्वरूपों से अवगत कराया। अखंड जोत की स्थापना और उसके समक्ष श्रद्धालुओं द्वारा की गई साधना ने वातावरण को पूर्णतः आध्यात्मिक बना दिया।
जागरण में शामिल हुए हजारों भक्तों ने भजनों की धुन पर खूब डांस किया और झूम-झूम कर माँ का जयकारा लगाया। विशेषकर युवा वर्ग की उत्साही सहभागिता देखने लायक थी, जो बताता है कि आज की पीढ़ी भी अपनी संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के साथ जुड़ी हुई है। माता के भजनों पर भक्तों की भावभंगिमाएं, उनकी आँखों में श्रद्धा और होठों पर माँ का नाम, इस बात का प्रमाण था कि यह आयोजन मात्र एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक आस्था का ज्वलंत रूप था।

भक्ति के इस भव्य आयोजन के सफल संचालन में कई समर्पित व्यक्तियों की भूमिका रही। राकेश, नरेंद्र, मयंक, हर्ष, गीता, शिवम, बशं, गीता, धर्मवीर व राजवती ने अपने कर्मकमलों द्वारा इस आयोजन को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन सभी के सतत प्रयासों, समर्पण और श्रम ने इस धार्मिक आयोजन को न केवल सफल बनाया, बल्कि अनुकरणीय भी बना दिया। इनके संयोजन में की गई व्यवस्थाएं जैसे—श्रद्धालुओं के लिए बैठने की उचित व्यवस्था, भंडारे का सुव्यवस्थित संचालन, सजावट, प्रकाश व्यवस्था, और सुरक्षा प्रबंधन—हर स्तर पर अनुशासन और सेवा की भावना झलकती रही।
विशेष रूप से आयोजित भंडारा श्रद्धालुओं के लिए एक और पुण्य अवसर बन गया, जहाँ भक्तों ने प्रेमपूर्वक भोजन ग्रहण किया। भंडारे की पूरी व्यवस्था भक्तों के सेवा भाव के साथ संचालित की गई, जिससे यह केवल भोजन का आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, सहयोग और सामूहिक भक्ति का एक जीवंत उदाहरण बन गया। स्थानीय नागरिकों से लेकर दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं तक, सभी ने इस आयोजन की सराहना की और इसे जीवन भर के लिए यादगार बताया।
इस प्रकार, नान गाँव में आयोजित माता रानी का यह जागरण व भंडारा न केवल एक धार्मिक आयोजन था, बल्कि सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक चेतना का संगम भी था। इसने यह सिद्ध कर दिया कि जब श्रद्धा, सेवा और संगठन साथ मिलते हैं, तो कोई भी आयोजन केवल कार्यक्रम नहीं रह जाता, बल्कि एक जनआंदोलन बन जाता है—आस्था का, भक्ति का, और एकता का।
इस आयोजन ने सभी आयु वर्ग के लोगों को जोड़ने का कार्य किया—बच्चे, युवा, महिलाएँ, बुज़ुर्ग सभी ने किसी न किसी रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और माँ के चरणों में अपने कृतज्ञ मन से धन्यवाद अर्पित किया। ऐसे आयोजन समाज को न केवल धर्म से जोड़ते हैं, बल्कि आपसी प्रेम, सौहार्द्र और सहयोग की भावना को भी पुष्ट करते हैं।
अंततः, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नवरात्रि के इस पावन अवसर पर नान गाँव में सजी माँ की महिमा का यह दरबार श्रद्धा, सेवा और भक्ति की त्रिवेणी बन गया। आयोजकों की मेहनत, गायकों की सुर साधना, छाकियों की जीवंतता, और भक्तों की आस्था ने मिलकर इस आयोजन को दिव्यता के उच्चतम शिखर पर पहुँचा दिया। नवरात्रि जैसे पर्व की सार्थकता तब ही सिद्ध होती है जब ऐसे आयोजन समाज को धर्म, संस्कृति और सेवा से जोड़ते हैं, और नान गाँव का यह आयोजन निश्चित ही इसका एक जीवंत उदाहरण बनकर सामने आया।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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