Don’t make weapons : सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी: ED को राजनीतिक हथियार न बनाएं ?

Don’t make weapons : सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी: ED को राजनीतिक हथियार न बनाएं

Don't make weapons : सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी: ED को राजनीतिक हथियार न बनाएं ?
Don’t make weapons : सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी: ED को राजनीतिक हथियार न बनाएं ?

 

  • सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के कामकाज को लेकर एक बार फिर गंभीर चिंता जताई है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती और मंत्री बायरती सुरेश के खिलाफ मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) केस में दायर ED की याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने तीखी प्रतिक्रिया दी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति बी.आर. गवई (CJI) कर रहे थे, ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “ED का इस्तेमाल पूरे देश में राजनीतिक लड़ाइयों के लिए मत कीजिए।”
  • मुख्य न्यायाधीश ने सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) से कहा, “कृपया हमें बोलने पर मजबूर मत कीजिए वरना हमें ईडी पर सख्त टिप्पणी करनी पड़ेगी… महाराष्ट्र का मेरा खुद का अनुभव है।” यह बयान न सिर्फ उस असंतोष को उजागर करता है जो न्यायपालिका में ED की कार्यशैली को लेकर है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अदालतें अब राजनीतिक उद्देश्य से जांच एजेंसियों के इस्तेमाल को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं।

याचिका खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को ठहराया सही

  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ED की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने पहले ही इस मामले में सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती और बायरती सुरेश को राहत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम हाईकोर्ट के फैसले में कोई त्रुटि नहीं देखते। विशेष परिस्थितियों में याचिका खारिज की जाती है।”
  • बेंच ने यह स्पष्ट किया कि सिर्फ राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के खिलाफ केस दर्ज होने का यह मतलब नहीं कि उसे निशाना बनाया जाए। अदालत ने कहा कि कानून का दुरुपयोग करके किसी भी नागरिक, चाहे वह सामान्य हो या राजनीतिक रूप से सक्रिय, को प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
  • सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद एक बार फिर यह बहस तेज हो गई है कि क्या प्रवर्तन निदेशालय जैसी संस्थाएं स्वतंत्र रूप से कार्य कर रही हैं या राजनीतिक दबाव में।

महाराष्ट्र का अनुभव जोड़ते हुए CJI ने जताई व्यक्तिगत चिंता

  • न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने अपनी टिप्पणी में महाराष्ट्र का संदर्भ देकर यह बताया कि यह मामला सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं है। उन्होंने कहा कि उनका स्वयं का अनुभव महाराष्ट्र में ED की कार्रवाई से जुड़ा रहा है, जिससे यह प्रतीत होता है कि सुप्रीम कोर्ट के उच्चतम पद पर बैठे न्यायाधीश भी जांच एजेंसियों के राजनीतिक उपयोग से चिंतित हैं।
  • यह टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के भीतर से आ रही एक आत्मस्वीकृति है कि जांच एजेंसियों की निष्पक्षता अब संदेह के घेरे में है। कई विपक्षी दल पहले से यह आरोप लगाते रहे हैं कि ED और CBI जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए किया जा रहा है। अब जब सुप्रीम कोर्ट भी इसी दिशा में इशारा कर रहा है, तो यह बहस और तीव्र हो सकती है।

विपक्ष को मिला नया मुद्दा, सरकार पर बढ़ा दबाव

  • सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके राजनीतिक प्रभाव भी बड़े पैमाने पर देखने को मिल सकते हैं। विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां, लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का उपयोग विरोधियों को डराने और कमजोर करने के लिए कर रही है। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसी ही आशंका जताई है, तो यह विपक्ष के लिए एक मजबूत तर्क बन सकता है।
  • कांग्रेस नेताओं ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “सुप्रीम कोर्ट की बात हमारे आरोपों की पुष्टि करती है। केंद्र सरकार लोकतंत्र की संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है।” वहीं, भाजपा ने फिलहाल इस पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन माना जा रहा है कि सरकार को ED की कार्यप्रणाली पर जवाब देना पड़ सकता है।

निष्कर्ष:

  • सुप्रीम कोर्ट की ओर से ईडी को लेकर की गई यह टिप्पणी भारतीय लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। अदालत का यह कहना कि “ED का इस्तेमाल राजनीतिक लड़ाइयों के लिए न करें”, आने वाले समय में जांच एजेंसियों की साख और पारदर्शिता पर भी बहस को जन्म देगा। साथ ही, यह एक स्पष्ट संकेत है कि अदालतें अब राजनीतिक प्रतिशोध के औजार के रूप में एजेंसियों का इस्तेमाल नहीं सहेंगी।
  • यह वक्त है जब सभी राजनीतिक दलों और सरकारी संस्थाओं को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जांच एजेंसियों की निष्पक्षता और संवैधानिक मर्यादाएं सुरक्षित रहें। वरना न सिर्फ लोकतंत्र कमजोर होगा, बल्कि जनता का विश्वास भी इन संस्थाओं से उठ जाएगा।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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