Dr. Anurag : इंडियन रेडक्रॉस के सीपीआर अभियान में डॉ. अनुराग ने जीवनरक्षक तकनीक सिखाकर जागरूकता बढ़ाई

इंडियन रेडक्रॉस सोसाइटी के तत्वावधान में एक अत्यंत महत्वपूर्ण सीपीआर जागरूकता अभियान का आयोजन किया गया, जिसका नेतृत्व इंडियन रेडक्रॉस सोसाइटी उत्तर प्रदेश के कार्यकारिणी सदस्य तथा फ़तेहपुर के चेयरमैन डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने किया। इस अभियान का उद्देश्य आमजन को सीपीआर जैसी जीवनरक्षक तकनीक के बारे में शिक्षित करना और उन्हें आपात स्थितियों में त्वरित सहायता देने योग्य बनाना था। यह कार्यक्रम ए.एस. इंटर कॉलेज और निरंकारी बालिका इंटर कॉलेज में क्रमशः आयोजित किया गया, जहाँ सैकड़ों छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि सीपीआर यानी कार्डियक पल्मोनरी रिसससिटेशन एक ऐसी प्राथमिक चिकित्सा तकनीक है जो किसी व्यक्ति की अचानक हृदय गति बंद होने की स्थिति में उसके जीवन को बचाने में अहम भूमिका निभाती है। उन्होंने समझाया कि हृदय का कार्य शरीर में रक्त परिसंचरण को बनाए रखना होता है, और जब यह अचानक रुक जाता है, तो व्यक्ति की मृत्यु कुछ ही मिनटों में हो सकती है। ऐसे में तत्काल सीपीआर करना उसके शरीर में रक्त प्रवाह और ऑक्सीजन की आपूर्ति को कृत्रिम रूप से बनाए रखता है, जिससे उसकी जान बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
प्रशिक्षण सत्र के दौरान डॉ. अनुराग ने सीपीआर की विधि को चरणबद्ध तरीके से व्याख्यायित करते हुए बताया कि एक वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को सीपीआर देने में सबसे पहले उसे पीठ के बल सख्त सतह पर लिटाना चाहिए। इसके बाद उसके सीने के मध्य भाग पर दोनों हाथों को एक के ऊपर एक रखकर 30 बार दबाव (चेस्ट कम्प्रेशन) देना है और फिर दो बार मुंह से सांस (रेस्क्यू ब्रीदिंग) देनी होती है। यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जानी चाहिए, जब तक कि व्यक्ति की सांसें या हृदय गति वापस न आने लगें। उन्होंने जोर देकर कहा कि ये 30 : 2 का अनुपात सीपीआर प्रशिक्षण का मूल आधार है।
इसके साथ ही उन्होंने एक वर्ष से कम आयु के बच्चों को सीपीआर देने की विधि भी विस्तार से बताई। उन्होंने स्पष्ट किया कि बच्चों की शारीरिक संरचना नाजुक होती है, इसलिए उनमें सीपीआर देते समय ताकत का प्रयोग बहुत सावधानी से करना होता है। शिशु को सीपीआर देने में 15 बार हल्का दबाव और दो बार सांस देना शामिल है। यह प्रक्रिया वयस्क सीपीआर से भिन्न होती है, और यही कारण है कि हर व्यक्ति को दोनों प्रकार की तकनीकों का ज्ञान होना चाहिए। कार्यक्रम में उपस्थित छात्रों ने बड़े ध्यान से इन महत्वपूर्ण जानकारियों को सीखा और स्वयं हाथों के अभ्यास मॉडल पर सीपीआर का अभ्यास भी किया।
डॉ. अनुराग ने यह भी बताया कि सीपीआर केवल अस्पतालों या डॉक्टरों की तकनीक नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे कोई भी सामान्य व्यक्ति थोड़े से प्रशिक्षण के बाद सीख सकता है और आपातकाल में किसी की जान बचाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। उन्होंने छात्रों को प्रेरित किया कि वे न केवल इस तकनीक को सीखें, बल्कि अपने परिवार, दोस्तों और समाज में भी इसके प्रति जागरूकता फैलाएँ।

कार्यक्रम में उपस्थित प्रधानाचार्य प्रिया जयंती जायसवाल ने अपने संबोधन में कहा कि ऐसे प्रशिक्षण छात्रों के लिए अत्यंत आवश्यक हैं क्योंकि आपदा या आपातकाल कब और कहाँ आ जाए, इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता। यदि विद्यार्थी इन कौशलों को सीख लेते हैं, तो वे किसी भी संकट की स्थिति में मददगार बन सकते हैं। उन्होंने डॉ. अनुराग श्रीवास्तव का आभार व्यक्त किया कि उन्होंने अपने व्यस्त समय से समय निकालकर बच्चों को इस महत्वपूर्ण कौशल का प्रशिक्षण दिया।
कार्यक्रम में सहयोग देने वाले अन्य शिक्षक एवं अतिथि भी पूरी सक्रियता से मौजूद रहे। अध्यापक धीरज राठौर, जितेंद्र सिंह, अख्तर रज़ा, निधान सिंह, रीता सिंह, शालिनी सिंह, और उषा मौर्य ने आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त प्रमुख सहयोगी सुरेश श्रीवास्तव और अभिनव श्रीवास्तव ने भी सभी व्यवस्थाओं में सहयोग देकर कार्यक्रम को सुचारु रूप से संपन्न कराया।
सीपीआर प्रशिक्षण के इस अभियान ने छात्रों में आत्मविश्वास के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को भी मजबूत किया। छात्रों ने उत्साहपूर्वक प्रशिक्षण में भाग लेकर यह सिद्ध किया कि वे जीवनरक्षक तकनीकों को सीखने के लिए उत्सुक हैं और समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए तैयार हैं। कार्यक्रम के समापन पर डॉ. अनुराग ने सभी उपस्थित लोगों को धन्यवाद देते हुए यह आशा व्यक्त की कि भविष्य में भी ऐसे जागरूकता कार्यक्रम निरंतर आयोजित किए जाएंगे, जिससे अधिक से अधिक लोगों को जीवनरक्षक कौशलों का ज्ञान हो।
यह जागरूकता अभियान न केवल ज्ञानवर्धक रहा, बल्कि यह इस बात का जीवंत उदाहरण भी बना कि समाज में जागरूकता फैलाकर कई जिंदगियों को बचाया जा सकता है। निश्चित रूप से, ऐसे कार्यक्रम समाज को सुरक्षित, जागरूक और मानवीय संवेदनाओं से भरपूर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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