Emotional scene : पितृ अमावस्या पर ब्रजघाट में श्रद्धालुओं का सैलाब: पितरों की विदाई का भावुक दृश्य

पितृ अमावस्या का पर्व हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्व रखता है।
- यह वह दिन होता है जब श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए विशेष पूजा-पाठ, तर्पण, पिंडदान और हवन करते हैं। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के ब्रजघाट पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। पितृ अमावस्या के दिन हज़ारों की संख्या में भक्तों ने ब्रजघाट गंगा तट पर पहुंचकर अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान किया। यह दृश्य अत्यंत भावुक कर देने वाला था जब परिजनों ने गंगा जी के पावन जल में स्नान कर अपने पितरों को याद करते हुए श्रद्धा और भक्ति के साथ सभी विधियों का पालन किया।
ब्रजघाट गंगा नदी का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है,
- जहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, परंतु पितृ अमावस्या के अवसर पर इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है। मान्यता है कि आश्विन माह की अमावस्या को पितरों की आत्माएं अपने घर लौटती हैं और सोलह दिनों तक अपने परिजनों के साथ रहती हैं। इस अवधि को श्राद्ध पक्ष कहा जाता है। पंद्रह दिन तक उनके लिए तर्पण, भोजन और पूजा की जाती है, और अंत में अमावस्या के दिन विशेष रूप से गंगा तट पर जाकर उन्हें पुनः उनके लोक की ओर विदा किया जाता है।
- ब्रजघाट पर श्रद्धालुओं ने विधिवत स्नान कर गंगा जी में डुबकी लगाई और पितरों के नाम से पिंडदान किया। पिंडदान की यह प्रक्रिया अत्यंत पवित्र मानी जाती है, जिसमें कच्चे चावल, तिल, जौ, फूल और जल का प्रयोग कर पितरों को तृप्त किया जाता है। इसके साथ ही अनेक श्रद्धालुओं ने ब्राह्मणों को भोजन करवाया, दान-पुण्य किए और हवन कराकर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
कई श्रद्धालुओं ने बताया कि
- उनका यह विश्वास है कि पितृ अमावस्या के दिन यदि विधिवत श्रद्धा और नियमों के अनुसार पिंडदान किया जाए तो पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे आशीर्वाद देकर अपने वंशजों के जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देते हैं। हज़ारों लोगों ने यह प्रक्रिया पूर्ण श्रद्धा भाव से पूरी की। घाट पर मौजूद पुजारियों और पुरोहितों ने हर श्रद्धालु को विधिवत पूजा करवाई और गंगा जल से पितरों के नाम तर्पण कराते हुए आशीर्वाद दिलवाया।
- पिंडदान के उपरांत श्रद्धालुओं ने घाट पर बैठकर सामूहिक हवन का आयोजन किया, जिसमें हवन कुंड में आहुति देते हुए भगवान से यह प्रार्थना की गई कि वे उनके पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करें और उन्हें सद्गति मिले। साथ ही यह भी प्रार्थना की गई कि वे अपने वंशजों पर कृपा बनाए रखें और उनके जीवन में खुशहाली लाएं।

इसके पश्चात श्रद्धालुओं ने भूखे,
- निर्धन और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दी। इस कार्य को भी विशेष महत्व दिया गया, क्योंकि मान्यता है कि ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराना ही पितरों को भोजन कराने के समान होता है। इस दौरान घाट पर बहुत से सामाजिक संगठनों ने भी प्रसाद और जलपान की व्यवस्था की जिससे श्रद्धालुओं को सहूलियत हो सके।
श्राद्ध पक्ष के इन सोलह दिनों में माना जाता है कि
- पितृलोक से आत्माएं अपने परिजनों के घर आती हैं और वहां के वातावरण, कर्मों और श्रद्धा को देखकर आशीर्वाद देती हैं या नाराज होकर दोष भी देती हैं। इसलिए इन दिनों में अपने कर्म, आहार-विहार और व्यवहार पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता बताई गई है। अंत में पितृ अमावस्या के दिन जब परिजन गंगा जी में स्नान कर, पिंडदान व तर्पण करते हैं तो इसे पितरों की विदाई के रूप में देखा जाता है। श्रद्धालु गंगा मैया के दरबार में विनती करते हैं कि उनके पितरों को सद्गति प्राप्त हो और वे अपने-अपने स्थान को लौट जाएं।
ब्रजघाट पर उपस्थित श्रद्धालुओं ने
- इस अवसर पर भगवान से यह भी प्रार्थना की कि उनके पितर सदा संतुष्ट रहें और उनके परिवार पर कृपा बनाए रखें। हाथ जोड़कर उन्होंने कहा, “हे भगवान! हमारे पितरों की आत्मा को शांति दें, उन्हें मोक्ष दें और हमारे परिवार पर अपने आशीर्वाद बनाए रखें। हम आपके चरणों में नमन करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि हमारे जीवन में शांति, समृद्धि और खुशहाली बनी रहे।”
- ब्रजघाट की पावन धरती पर जब हजारों श्रद्धालु एक साथ अपने पितरों को याद कर गंगा में आस्था की डुबकी लगा रहे थे, तब यह दृश्य अत्यंत भावुक और श्रद्धा से परिपूर्ण था। ढोल-नगाड़ों की आवाज़, मंत्रोच्चार की गूंज और गंगा आरती के पावन क्षणों ने वातावरण को और भी दिव्य बना दिया। पितरों को तृप्त कर विदा करते समय श्रद्धालुओं की आंखों में भावनाओं का सैलाब साफ देखा जा सकता था।
- इस प्रकार पितृ अमावस्या के इस पुण्य अवसर पर ब्रजघाट में उमड़े श्रद्धालुओं ने आस्था, श्रद्धा और पवित्रता के साथ अपने पितरों का स्मरण कर उन्हें सम्मानपूर्वक विदाई दी। यह परंपरा न केवल एक धार्मिक कर्मकांड है, बल्कि यह हमारे पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों की गहराई को दर्शाती है, जिसमें हम अपने पूर्वजों को न केवल याद करते हैं, बल्कि उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए अपने जीवन में उनके द्वारा दिए गए संस्कारों को जीवित रखते हैं।
इस पर्व के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को भी यह संदेश मिलता है कि
- हमारे पूर्वजों का हमारे जीवन में कितना बड़ा योगदान है और उन्हें सम्मान देने का यह तरीका न केवल एक परंपरा है, बल्कि हमारे कर्तव्यों का भी एक महत्वपूर्ण भाग है। पितृ अमावस्या पर किया गया पिंडदान और तर्पण न केवल पितरों को मोक्ष प्रदान करता है, बल्कि हमारे जीवन में आने वाले विघ्नों को भी दूर करता है और सुख-शांति की राह खोलता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान भाव से इस पर्व को मनाना चाहिए।
- ब्रजघाट पर हुए इस विशाल आयोजन ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय संस्कृति में पितरों का स्थान सर्वोपरि है, और उन्हें सम्मान देना हमारी आत्मा की गहराइयों से जुड़ा एक धर्म है, जो हमें जोड़ता है हमारी जड़ों से।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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