Flashes in the mind : देश सेवा व देश प्रेम की जब बात आती है तो एक अविस्मरणीय नाम हमारे जहन में कौंधता है

वह है जनरल एसएचएफजे मानेक शॉ का। इनके देश प्रेम व देश भक्ति का राष्ट्र सदैव ऋणी रहेगा। इनका जन्म 1914 में पंजाब प्रांत के अमृतसर में हुआ। इनकी भूमिका द्वितीय विश्व युद्ध, 1947-48 के जम्मू-कश्मीर अभियान, 1962 भारत-चीन युद्ध और 1965 व 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अतुलनीय रही। इन्होंने भारत सेना में रहते हुए भारतीय सैनिकों के मनोबल में उनके चरित्रिक गुणों के विकास में विशेष तौर से स्त्री शक्ति के सम्मान में बहुत योगदान दिया। बांग्लादेश के युद्ध के दौरान एक उदाहरण विचारणीय है जब सेना ने पाकिस्तानी सेना को हराया और ढाका में प्रवेश किया तो लूटपाट व अन्य घटनाओं से हालात नाजुक हो गए थे। उस समय मानेक शॉ ने भारतीय सैनिकों को महिलाओं के सम्मान को कायम रखने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि जब भी तुम किसी की बेगम को देखो तो अपनी जेब में हाथ डालकर सैम को याद कर लेना।
मानेक शॉ आज हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके आदर्श सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। देश सेवा केवल सेना में जाकर ही नहीं की जा सकती इस देश को भीतर के आतंकवादियों से बचाकर भी कर जा सकती है। आज आतंक की चाहे कोई भी परिभाषा प्रचलित क्यों न हो, लेकिन सबसे बड़ी आवश्यकता है देश के अंदर बढ़ते आतंकवाद को सम्मूल रूप से नष्ट करने की। स्त्री शक्ति की असम्मान, कन्या भ्रूण हत्या, लूटमार, भ्रष्टाचार आदि ऐसे आतंकवादी रावण हैं, जिनसे देश को सबसे बड़ा खतरा है। इनसे इस देश को केवल आज की युवा पीढ़ी ही बचा सकती है। युवा पीढ़ी इस कार्य को तभी कर सकती है जब उनमें व्यक्तित्व के मूलभूत गुणों का विकास हो और विकास संभव है उनके बाल्यकाल की अच्छी संस्कारी शिक्षा से। इन समस्त गुणों के विकास के लिए आवश्यक है हम अपने बच्चों को सही मार्गदर्शन व संस्कार प्रदान करें। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिनसे हमें पता चलता है कि समाज में रहकर भी देश की सेवा के लिए योगदान दिया जा सकता है।

उदाहरण के लिए समाजसेवी ¨ककरी देवी, सुंदर लाल बहुगुणा व नोवेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी तथा मलाला युसुफजई कुछ ऐसी सख्शियतें हैं जो आज के युग में भी प्रासंगिक हैं। इन महान हस्तियों ने समाज में रहते हुए भी देश सेवा के लिए अपना अतुलनीय योगदान दिया और देशवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बने। ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जिनको मद्देनजर रखते हुए हम कह सकते हैं कि देश के अंदर समाज के साथ रहकर भी देश की सेवा की जा सकती है। हम सेना में नहीं हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि देश की सेवा नहीं हो सकती है। देश के भीतर व्याप्त आतंकवाद रूपी बुराइयों को जड़ से उखाड़ व मिटाकर इस देश के बचपन को खुशहाल बनाया सकता है तथा आने वाली पीढ़ी के भविष्य को सुनहरा व उज्जवल रखा जा सकता है। आज नितांत आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने नौनिहालों को हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से परिचित करवाकर उनमें समृद्ध व उच्च कोटी के मानवीय मूल्यों व संस्कारों का सुत्रपात करें। आज के युवा वर्ग को चाहिए कि वह अपनी असीम ऊर्जा के प्रवाह को सकारात्मक रूप से एक सही दिशा में प्रवाहित करे, ताकि उनके सदकार्यो की रोशनी से अंधेरे में व्याप्त समाज भी रोशन हो सके।
स्वरोजगारोमुखी सोच आज की युवा पीढ़ी को समाज व देश की तरक्की व खुशहाली की ओर अग्रसर कर सकती है। इन कार्यो की पूर्ति के लिए माता-पिता के साथ सरकार को भी ऐसी कल्याणकारी नीतियों का क्रियान्वयन करना होगा। जिनसे असंतोषी युवा आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए देश सेवा में योगदान कर सकें। आज कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे कि बहुत से युवा जीवन की राह से भटक गए हैं और गलत कार्यो को ज्यादा तवज्जो देते हैं। उन्हें देश या देश सेवा से कुछ लेना-देना नहीं होता है। वह युवा कुछ गलत लोगों के हाथ की कठपुतली मात्र बनकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। गलत सोच के लोग उन्हें कुछ पैसों का मोह दिखाकर व लोभ में फंसा देते हैं और फिर उनसे भी गलत तरीके से कार्य करवा रहे हैं। ऐसे में युवा पीढ़ी देश की सेवा करने की बजाय देश की बर्बादी की ओर अग्रसर हो रही है। हमें उन तमाम युवाओं को जो गलत राह पर चल रहे हैं उन्हें संस्कार व नैतिक मूल्य तथा सुसंस्कृति का ज्ञान देना होगा ताकि वह सही रास्ते पर आ सकें। यह हम सबकी जिम्मेदारी बनती है। अगर हम भटके हुए युवाओं को सही मार्ग पर ले आने में सफल हो जाते हैं तो वह भी देश सेवा ही होगी।
हमारे संस्कार व नैतिक मूल्य यह सिखाते हैं कि जरूरतमंदों की सहायता करनी चाहिए। लेकिन हम सभी इन संस्कारों को भूल रहे हैं। आज हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि किसी दूसरे के लिए समय ही नहीं है। दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति तड़पता हुआ दम तोड़ देता है, लेकिन कोई उसकी सहायता नहीं करता और वह दम तोड़ देता है। क्या हमारे संस्कार यहीं तक सीमित हो गए हैं। हमारा जमीर मर रहा है। हमें हर समय दूसरों की सहायता करने का पाठ पढ़ाया जाता है। लेकिन हम सहायता करने की बजाय किसी को मरता हुआ छोड़ रहे हैं। हम सभी को हर समय दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। इससे बड़ी देश की सेवा शायद ही कोई और हो। तभी सब सुखी भी रह सकेंगे।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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