Floods : पहले धराली फिर थराली महीने भर के भीतर पहाड़ों पर दूसरी तबाही, जलजले की 10 तस्वीरें

पहले धराली फिर थराली की दोनों घटनाओं ने पहाड़ों की नाजुक हालत को फिर से उभारा है। उत्तराखंड के पहाड़ों पर एक महीने के भीतर आई ये दो प्राकृतिक आपदाएं स्थानीय निवासियों के साथ-साथ पूरे प्रदेश के लिए एक गंभीर चेतावनी बन कर उभरी हैं।
22 अगस्त को देर रात चमोली जिले की थराली तहसील में बादल फटने की घटना हुई। इसमें एक लड़की की मलबे में दबकर मौत हो गई जबकि एक शख्स लापता हो गया। पानी के साथ आए मलबे से दुकान, मकान और गाड़ियों को नुकसान पहुंचा है।
थराली-ग्वालदम और थराली-सागवाड़ा मार्ग मलबे से अवरुद्ध हो गए, जिससे यातायात पूरी तरह ठप हो गया। पिंडर और प्राणमती नदियों का जलस्तर बढ़ने से बाढ़ का खतरा और गहरा गया है।स्थानीय निवासी रमेश सिंह ने बताया, रात को अचानक तेज आवाज के साथ मलबा और पानी आया। हमारी दुकान और घर पूरी तरह तबाह हो गए। ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ खत्म हो गया।
थराली क्षेत्र में देर रात करीब 1:00 से 1:30 बजे के बीच बादल फटने की घटना हुई, जिससे भारी तबाही मची। इस आपदा से थराली बाजार, तहसील परिसर, कोटदीप, राड़ीबगड़, चेपडो और सागवाड़ा गांव जैसे क्षेत्रों में भारी मात्रा में मलबा और पानी बहकर आया, जिससे कई घर, दुकानें और वाहन मलबे में दब गए।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घटना पर दुख जताया और कहा कि प्रशासन, SDRF और पुलिस राहत कार्यों में लगे हैं। उन्होंने स्थिति पर निरंतर निगरानी रखने की बात कही। जिला प्रशासन, पुलिस, SDRF (स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स), और NDRF की टीमें घटनास्थल पर पहुंचकर राहत और बचाव कार्य में जुटी हैं।
टूनरी गदेरा में बादल फटने से भारी मात्रा में मलबा बहकर आया, जिसने थराली कस्बे और आसपास के गांवों में जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। राड़ीबगड़ और चेपडो में कई वाहन मलबे में दब गए, और दुकानों को भी नुकसान पहुंचा। बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) मिंग्गदेरा के पास सड़क खोलने के लिए काम कर रहा है ताकि राहत कार्यों को गति मिल सके।
5 अगस्त को उत्तरकाशी के धराली में दोपहर लगभग 1:25 बजे, खीर गंगा नदी के क्षेत्र में तेज बारिश के कारण बादल फटना शुरू हुआ। नदी ने अचानक तीव्र बहाव पकड़ लिया और भारी मात्रा में मलबा, कीचड़ और पानी गांव में बह निकला।
यह सैलाब कुछ ही सेकंड्स में गांव को बुरी तरह प्रभावित कर गया, घर, होटल, दुकानें, मंदिर और सड़कें मलबे में दब गईं। करीब 68 लोग अभी भी लापता हैं। घटना के बाद 5 लोगों की मृत्यु की पुष्टि हुई थी। करीब चार मंजिल ऊंचे इस मलबे के नीचे दफन लोगों के अब बचने की कोई उम्मीद नहीं है।
लगभग 150 मकान, दुकानें, होटलों का विशाल हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया या बह गया। गांव का बाजार, मंदिर और स्थानीय इंफ्रास्ट्रक्चर भारी टूट-फूट का सामना कर रहा है। भारतीय सेना, ITBP, NDRF और SDRF की टीमों ने तुरंत राहत और बचाव अभियान शुरू किया। कठिन मौसम और भौगोलिक बाधाओं के बावजूद, 190 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाला गया।
प्रारंभ में इसे बादल फटना माना गया था, पर वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियल झील से पानी का अचानक निकलना (GLOF), ग्लेशियर का टूटना या भूस्खलन भी इस घटना के कारण हो सकते हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग ने बताया कि प्रभावित क्षेत्र में बारिश की मात्रा तकनीकी बादल फटने की परिभाषा से कम थी।
मलबा हटाने, राह खुलाने और प्रभावित परिवारों को राहत पहुंचाने के लिए कई दिनों तक अभियान जारी रहा। आसपास के गांवों और यात्रियों को सतर्क किया गया। अभी तक क्षेत्र में अस्थायी झील का निर्माण बन रही हैं। प्रशासन और सरकार लगातार स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं।