Gandhi Family : 154 सीटों की सरकार को अटल ने सम्मान दिया, गांधी परिवार ने मोदी को कभी बधाई नहीं दी

- आपका विषय संवेदनशील और राजनीतिक रूप से तीखा है, जिसमें ऐतिहासिक संदर्भ, समकालीन राजनीतिक व्यवहार और सामाजिक मूल्यों का मिश्रण है। प्रस्तुत है आपके विषय पर एक संतुलित और तथ्यात्मक रूप से सुस्पष्ट लेख, जिसमें भाषा मर्यादित और संवैधानिक गरिमा के अनुरूप रखी गई है:
मनमोहन सिंह का स्वागत: भारतीय लोकतंत्र की एक गरिमामयी मिसाल
- भारतीय राजनीति में कई ऐसे क्षण आए हैं, जब मतभेदों के बावजूद व्यक्तिगत सम्मान और लोकतांत्रिक परंपराओं का पालन करते हुए एक दूसरे को स्वीकार किया गया। ऐसा ही एक दृश्य 2004 में देखने को मिला, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) ने मात्र 154 सीटों पर जीत दर्ज कर केंद्र में सरकार बनाई और डॉ. मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। उस समय नेता प्रतिपक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय में जाकर मनमोहन सिंह को गुलदस्ता भेंट कर शुभकामनाएं दीं।
- यह केवल एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि भारतीय राजनीति में उस उच्च आदर्श और गरिमा का प्रतीक था, जिसमें लोकतंत्र को केवल सत्ता का हस्तांतरण नहीं, बल्कि मूल्य आधारित परंपरा माना जाता था। अटल जी का यह कृत्य दर्शाता है कि भारत की लोकतांत्रिक चेतना में हार-जीत से अधिक अहम है, एक-दूसरे का सम्मान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर विश्वास।
नरेंद्र मोदी के साथ विरोधियों का व्यवहार: बदलती राजनीतिक संस्कृति
- वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में 2014, 2019 और अब 2024 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट जनादेश मिला। यह ऐतिहासिक रहा कि तीन बार लगातार जनता ने मोदी जी को प्रधानमंत्री के रूप में चुना, परंतु विपक्ष के बड़े नेताओं जैसे राहुल गांधी, सोनिया गांधी या प्रियंका गांधी की ओर से औपचारिक सार्वजनिक बधाई का कोई स्पष्ट उदाहरण नहीं देखा गया।
- ऐसा न होना केवल व्यक्तिगत राजनीतिक मतभेदों का परिणाम नहीं माना जा सकता, बल्कि यह एक बदलते राजनीतिक व्यवहार और संवादहीनता की चिंता को भी दर्शाता है। लोकतंत्र की सुंदरता इसी में है कि विचारधाराएं चाहे जितनी विपरीत हों, एक दूसरे के जनादेश और पद की मर्यादा को स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए। यह संवाद की परंपरा को मजबूत करता है और भावी पीढ़ियों के लिए स्वस्थ लोकतंत्र की नींव रखता है।
इतिहास और मतभेद: राजशाही सोच बनाम लोकतांत्रिक मूल्यों का संघर्ष
- भारतीय राजनीति में वंशवाद, परिवारवाद या सत्ता पर स्थायी दावे को लेकर अक्सर कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगते रहे हैं। यह आलोचना नई नहीं है, लेकिन इसे “मुगलिया खानदान”, “गुलाम बनाने”, या “गद्दार” जैसे शब्दों से जोड़ना असंवैधानिक और असंगत है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जहां हर नागरिक को मताधिकार है और हर नेता जनता के वोट से बनता है, किसी ताजपोशी या वंशानुगत अधिकार से नहीं।
- भारत की आज़ादी के बाद नेहरू-गांधी परिवार ने कई बार सत्ता में रहते हुए देश को दिशा दी है, वहीं भाजपा और अन्य दलों ने भी सशक्त विपक्ष और बाद में सत्ता की भूमिका निभाई। लेकिन किसी भी परिवार या दल को गद्दारी, शाही मानसिकता या विदेशी मानसिकता से जोड़ना लोकतांत्रिक विमर्श की मर्यादा का उल्लंघन है। लोकतंत्र में जनता ही राजा है, और उनके मत से कोई भी व्यक्ति प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या सांसद बन सकता है – चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ग या परिवार से आता हो।
निष्कर्ष:
भारतीय लोकतंत्र को यदि हमें जीवंत और संवेदनशील बनाए रखना है, तो विचारों की असहमति को व्यक्तिगत कटुता या जातीय-दुश्मनी में नहीं बदलने देना चाहिए। चाहे अटल जी हों या मोदी जी, या फिर नेहरू जी या मनमोहन सिंह – सभी ने भारत की सेवा की है। हमें जरूरत है उस राजनीति की, जो वैचारिक भिन्नता के बावजूद व्यक्तिगत सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों को सर्वोपरि रखे। यही भारतीयता है, यही लोकतंत्र की आत्मा है।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)