Government Hammer : हैदराबाद की हरियाली पर सरकारी हथौड़ा ?

पेड़ कट रहे हैं, सांसें घट रही हैं — हैदराबाद की हरियाली पर सरकारी हथौड़ा!
विधिक आवाज़ विशेष रिपोर्ट |
विश्वामित्र अग्निहोत्री की कलम से
हैदराबाद:- जिसे कभी हरियाली और जैव विविधता का शहर कहा जाता था, अब बेतहाशा विकास की दौड़ में अपनी आत्मा खोता जा रहा है। जंगलों को काटा जा रहा है, जानवरों के घर उजाड़े जा रहे हैं, और सरकार इसे “प्रगति” का नाम दे रही है। सवाल यह है—क्या यह सच में विकास है या आने वाली पीढ़ियों के लिए विनाश की नींव?
वन कटाई: पर्यावरण का हनन, सत्ता की चुप्पी
हैदराबाद में बीते कुछ महीनों में कई एकड़ जंगल बिना पर्यावरणीय आकलन के काटे जा चुके हैं। वहां के जानवर—हिरण, सियार, और पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियाँ—बेघर हो चुकी हैं। पेड़ जो शहर को सांस देते थे, अब मशीनों की आवाज़ में गिराए जा रहे हैं।
सरकारी मौन और एनजीओ की निष्क्रियता
देशभर में हजारों एनजीओ हैं जो पर्यावरण और जीव-जंतुओं की सुरक्षा की बातें करते हैं, जैसे:
WWF-India (मुख्यालय: नई दिल्ली) – संचालक: Ravi Singh
Greenpeace India (मुख्यालय: बेंगलुरु) – संचालक: Avinash Chanchal
Kalpavriksh (पुणे) – संचालक: Ashish Kothari
Centre for Science and Environment (CSE) – संचालक: Sunita Narain
Bombay Natural History Society (BNHS) – संचालक: Deepak Apte
Wildlife Trust of India (WTI) – संचालक: Vivek Menon
Earth5R – संचालक: Saurabh Gupta
लेकिन जब हैदराबाद के जंगलों पर आरी चलाई गई, तो इन संस्थाओं की आवाज़ नहीं सुनाई दी। क्या वे सिर्फ कॉन्फ्रेंस और फंडिंग के लिए बने हैं, या वास्तव में कोई ज़मीनी लड़ाई लड़ते हैं?
जनता की चुप्पी और ज़िम्मेदारी
प्रश्न यह है कि जब वृक्षों की जगह कंक्रीट उग रही है, जब बच्चों को ऑक्सीजन के लिए पेड़ों की तस्वीरें ही दिखाई जा रही हैं, तब क्या हमारा मौन हमारी सहमति बन रहा है?
आज अगर हम नहीं बोले, तो कल हमारे बच्चों को इतिहास यही पढ़ाएगा कि “जब जंगल रो रहे थे, इंसान सेल्फी ले रहा था।”
एक आह्वान
अब वक्त है कि हम जागें, सवाल करें, सड़कों पर आएं और सरकार से जवाब मांगें—क्यों उजाड़ा जा रहा है हमारा पर्यावरण? क्यों खामोश हैं वे संस्थाएं जो पर्यावरण की रक्षा की शपथ लेती हैं?
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