Hanuman chalisa : बिहार की बेटी आराध्या का अद्भुत कार्य 14 साल की उम्र में 234 भाषाओं में हनुमान चालीसा का अनुवाद

भारत की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर पहुंचाने का संकल्प
भारत की सनातन संस्कृति हजारों वर्षों से अपने आध्यात्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए जानी जाती है। इसी संस्कृति में हनुमान चालीसा का विशेष स्थान है। यह चालीसा न केवल एक धार्मिक पाठ है, बल्कि आत्मबल, भक्ति और संयम का प्रतीक भी है। देश के करोड़ों लोग हर दिन इसकी चौपाइयों से दिन की शुरुआत करते हैं, इसे स्मरण करते हैं, गाते हैं और जीवन में शक्ति प्राप्त करते हैं। ऐसे में जब कोई बालिका, जो अभी किशोरावस्था में है, इस भक्ति गीत को 234 भाषाओं में अनुवाद कर दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने का कार्य करे, तो यह न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि भारतीय संस्कृति के प्रति एक गहरी श्रद्धा का प्रतीक भी है।
बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के बलुआ चौक निवासी मनोज सिंह की 14 वर्षीय पुत्री आराध्या सिंह ने अपनी मेहनत, लगन और भक्ति से जो कार्य किया है, वह आज पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। महज 14 साल की उम्र में, जहां बच्चे सामान्यतः मोबाइल, सोशल मीडिया और खेलों में व्यस्त रहते हैं, वहीं आराध्या ने अपना समय और ऊर्जा इस बात में लगाई कि हनुमान चालीसा का हर भाषा में अनुवाद हो, ताकि दुनिया के हर कोने में बसे लोग, किसी भी भाषा के हों, उसे समझ सकें, गा सकें और अनुभव कर सकें।
234 भाषाओं में किया अनुवाद, अब गिनीज रिकॉर्ड में दर्ज कराने का लक्ष्य
आराध्या सिंह ने अपने अनूठे कार्य में केवल भारतीय भाषाओं को नहीं, बल्कि विदेशी और जटिल भाषाओं को भी शामिल किया है। उन्होंने भोजपुरी, मैथिली, संस्कृत जैसी भाषाओं के साथ-साथ कोरियन, जापानी, लैटिन अमेरिकी, स्पेनिश, जर्मन, तुर्की, अरबी, रूसी, फ्रेंच, स्वाहिली जैसे भाषाओं में भी अनुवाद किया है। इस प्रयास में उन्होंने न केवल टेक्नोलॉजी का उपयोग किया, बल्कि प्रत्येक भाषा की व्याकरण, उच्चारण, अर्थ और संस्कृति को समझते हुए, भावानुवाद पर जोर दिया। यह केवल तकनीकी अनुवाद नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुल का निर्माण है।
आराध्या बताती हैं कि उन्होंने यह कार्य पिछले दो वर्षों में नियमित अध्ययन और साधना से पूरा किया है। स्कूल की पढ़ाई के बाद दिन के 2 से 3 घंटे वह इस कार्य में लगाती थीं। हर भाषा को अलग से सीखने, उसकी लिपि और भाव को समझने के लिए उन्होंने इंटरनेट, शब्दकोश, और कुछ भाषा विशेषज्ञों की मदद ली। यह कार्य इतना सहज नहीं था, लेकिन उनके भीतर एक लक्ष्य स्पष्ट था – “हनुमान चालीसा को हर जुबान तक पहुंचाना।”
अब उनका अगला सपना इस अद्भुत कार्य को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराना है। उन्होंने इसके लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू कर दी है और संबंधित दस्तावेज तैयार कर रही हैं। अगर यह रिकॉर्ड दर्ज होता है, तो यह भारत और विशेष रूप से बिहार के लिए गौरव की बात होगी।

परिवार और समाज से मिला सहयोग, देशभर में हो रही सराहना
आराध्या की इस सफलता में उनके परिवार, शिक्षकों और समाज का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके पिता मनोज सिंह ने शुरू से ही उनकी रुचि को समझा और प्रोत्साहन दिया। उन्होंने बेटी को आवश्यक पुस्तकें, इंटरनेट संसाधन और समय दिया ताकि वह अपने कार्य को पूरे समर्पण के साथ कर सके। आराध्या की मां ने बताया कि आराध्या न केवल पढ़ाई में अव्वल है, बल्कि वह धार्मिक ग्रंथों, भजन और संस्कृत श्लोकों में भी गहरी रुचि रखती है।
उनके इस प्रयास की जानकारी जब सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया में आई, तो जिले से लेकर राज्य और अब पूरे देश में उनकी सराहना की जा रही है। शिक्षा विभाग, धार्मिक संस्थाएं, प्रशासनिक अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि बिहार सरकार भी आराध्या के इस ऐतिहासिक कार्य को सम्मानित और प्रोत्साहित करेगी।
बाल्यावस्था में ही साधना का परिचय, आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा
आराध्या का यह प्रयास यह सिद्ध करता है कि आज की नई पीढ़ी भी अगर सही दिशा में प्रयास करे, तो वह संस्कृति, शिक्षा और तकनीक के अद्भुत संगम से इतिहास रच सकती है। आराध्या केवल एक बच्ची नहीं, बल्कि भारत की सनातन चेतना की एक जीवंत प्रतीक बनकर उभरी हैं। उन्होंने यह दिखाया कि श्रद्धा, लगन और नियमित अभ्यास से कोई भी कार्य असंभव नहीं है।
उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। यह बताती है कि मोबाइल, सोशल मीडिया और व्यस्त दिनचर्या के बावजूद, अगर किसी बच्चे में दृढ़ निश्चय और आध्यात्मिक लगाव हो, तो वह अपने प्रयास से देश और धर्म, दोनों का नाम रोशन कर सकता है।
निष्कर्ष: आराध्या की साधना एक वैश्विक संदेश
आराध्या सिंह का कार्य केवल भाषाई अनुवाद नहीं, बल्कि एक वैश्विक आध्यात्मिक संदेश है। उन्होंने भारत की उस शक्ति को पुनः दिखाया है, जिसमें एक साधारण बालिका भी असाधारण कार्य कर सकती है। जब वह कहती हैं, “अब मैं हर जुबान से हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहती हूं,” तो यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की वह पुकार है जो समस्त विश्व तक पहुंचना चाहती है।
आज की दुनिया को जोड़े रखने के लिए जो तंतु चाहिए — भक्ति, भाषा, संस्कृति और समर्पण — वह सब कुछ आराध्या के इस प्रयास में समाहित है।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)
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