Innocence of children : 25 मुहर्रम के जुलूस में वायरल वीडियो पर माफी: बानिए जुलूस ने बताया बच्चों की नादानी ?

Innocence of children : 25 मुहर्रम के जुलूस में वायरल वीडियो पर माफी: बानिए जुलूस ने बताया बच्चों की नादानी

Innocence of children : 25 मुहर्रम के जुलूस में वायरल वीडियो पर माफी: बानिए जुलूस ने बताया बच्चों की नादानी ?
Innocence of children : 25 मुहर्रम के जुलूस में वायरल वीडियो पर माफी: बानिए जुलूस ने बताया बच्चों की नादानी ?

जौनपुर जिले में 25 मुहर्रम को निकाले गए ताज़ियादारी के जुलूस के दौरान कथित रूप से “शबीह-ए-दफ़न” से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसके बाद धार्मिक और सामाजिक हलकों में मामला गरमा गया। इस वीडियो को लेकर कुछ समुदायों में आक्रोश की स्थिति बनने लगी थी, क्योंकि इसमें मुहर्रम की परंपराओं और धार्मिक प्रतीकों के कथित अपमान का आरोप लगाया जा रहा था। जैसे ही यह वीडियो तेजी से फैलने लगा, प्रशासन और जुलूस आयोजकों ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए तुरंत सक्रियता दिखाई।

वीडियो को लेकर शुरू हुए विवाद के बाद जुलूस के मुख्य बानिए अख़लाक़ हैदर ने सार्वजनिक रूप से मीडिया और आम जनता के समक्ष माफ़ीनामा जारी किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह घटना बच्चों की नादानी का परिणाम थी और इसका उद्देश्य किसी भी धर्म या समुदाय की भावना को ठेस पहुँचाना नहीं था। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जुलूस में शामिल बच्चों ने शौकिया तौर पर जो कुछ किया, वह अनजाने में हुआ और उसमें किसी प्रकार की धार्मिक अवमानना की मंशा नहीं थी। आयोजकों की ओर से पूरी जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने आश्वासन दिया कि भविष्य में ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए विशेष सतर्कता बरती जाएगी।

जुलूस के बानिए द्वारा दिया गया यह स्पष्टीकरण और सार्वजनिक क्षमा-याचना, जौनपुर में धार्मिक सौहार्द्र और साम्प्रदायिक शांति बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह कदम उस वक्त बेहद अहम हो गया था जब सोशल मीडिया के माध्यम से अफवाहें फैलाकर स्थिति को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही थी। कई स्थानों पर ऐसे मैसेज प्रसारित हो रहे थे जो वीडियो को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर रहे थे, जिससे आपसी अविश्वास बढ़ सकता था। मगर आयोजकों की त्वरित प्रतिक्रिया और संयमित भाषा ने स्थिति को नियंत्रण में बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।

माफ़ीनामे के बाद जौनपुर के विभिन्न समुदायों से आए धार्मिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी संयम बरतने की अपील की। उन्होंने कहा कि जुलूस धार्मिक परंपरा का एक हिस्सा है और यदि किसी प्रकार की गलती या लापरवाही होती है, तो उसमें माफी मांगकर सुधार की दिशा में कदम उठाना ही सबसे सकारात्मक उपाय होता है। इसी भावना के साथ जिले के जिम्मेदार नागरिकों और संगठनों ने भी शांति और भाईचारा बनाए रखने की पहल की सराहना की।

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान स्थानीय प्रशासन भी सतर्क रहा। वीडियो वायरल होते ही प्रशासन द्वारा सोशल मीडिया मॉनिटरिंग टीम को अलर्ट किया गया, और अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई। जिला प्रशासन की ओर से यह भी अपील की गई कि लोग किसी भी प्रकार की भ्रामक सूचना पर ध्यान न दें और किसी भी समस्या की स्थिति में सीधे पुलिस या प्रशासन से संपर्क करें। प्रशासन ने यह भी संकेत दिया कि मामले की जांच कर आवश्यकतानुसार कार्रवाई की जाएगी ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

विशेषज्ञों का मानना है कि धार्मिक आयोजनों में जनसंख्या की बड़ी भागीदारी होती है, और इनमें कभी-कभी अनजाने में ऐसी घटनाएं घट जाती हैं, जिनका गलत अर्थ निकालकर सामाजिक तनाव को बढ़ाया जा सकता है। ऐसे में आयोजकों की जिम्मेदारी होती है कि वे न केवल कार्यक्रम की गरिमा बनाए रखें, बल्कि सामाजिक और धार्मिक संवेदनशीलता को भी ध्यान में रखें। अख़लाक़ हैदर और उनकी टीम ने जिस समझदारी के साथ पूरे मामले को संभाला, वह निश्चित रूप से सराहनीय है और अन्य आयोजकों के लिए भी एक उदाहरण है।

जौनपुर में ताज़ियादारी की परंपरा कई वर्षों से शांतिपूर्ण तरीके से चली आ रही है, और इस बार की घटना को एक अपवाद के रूप में देखा जा रहा है। क्षेत्रीय लोगों का भी यही कहना है कि यहां की गंगा-जमुनी तहज़ीब को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा। सभी समुदायों के लोगों ने संयम और समझदारी दिखाते हुए यह साबित किया है कि छोटी-छोटी बातों से समाज को नहीं बांटा जा सकता।

इस पूरे घटनाक्रम का सार यही है कि सोशल मीडिया के इस दौर में एक छोटी सी चूक भी बड़े विवाद का रूप ले सकती है, यदि समय रहते उस पर सही ढंग से प्रतिक्रिया न दी जाए। जौनपुर के इस मामले में जहां एक ओर वायरल वीडियो ने असमंजस की स्थिति पैदा की, वहीं दूसरी ओर आयोजकों की पारदर्शिता और प्रशासन की तत्परता ने यह दिखा दिया कि सामाजिक सौहार्द्र और धर्मनिरपेक्षता आज भी मजबूत स्तंभ की तरह खड़ी हैं। यह मामला न केवल एक सीख है बल्कि एक उदाहरण भी है कि कैसे एक विवाद को सुलझाया जा सकता है—सहनशीलता, माफी और समझदारी के साथ।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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