Islam is to blame : 16 साल की पत्नी से संबंध, रेप नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी, दोषी इस्लाम को कर दिया बरी ?

Islam is to blame : 16 साल की पत्नी से संबंध, रेप नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी, दोषी इस्लाम को कर दिया बरी

Islam is to blame : 16 साल की पत्नी से संबंध, रेप नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी, दोषी इस्लाम को कर दिया बरी ?
Islam is to blame : 16 साल की पत्नी से संबंध, रेप नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी, दोषी इस्लाम को कर दिया बरी ?
लखनऊः
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपहरण, जबरन शादी और नाबालिग बीवी से शारीरिक संबंध बनाए जाने के मामले में सुनवाई करते हुए दोषी को बरी कर दिया. सुनवाई के दौरान अदालत का कहना था कि पीड़िता की शादी 16 साल की उम्र में पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत की गई है, जो कि अमान्य नहीं है.
  • घटना के वक्त कानून के तहत पति-पत्नी के बीच संबंध अपराध नहीं माना जा सकता था. दोषी इस्लाम की याचिका पर सुनवाई करते हुए सिंगल बेंच के जस्टिस अनिल कुमार ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया और फिर इस्लाम को बरी कर दिया. हालांकि ट्रायल कोर्ट ने इस्लाम को आईपीसी की धारा 363, 366 और 376 के तहत सात साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी.
पीड़िता की गवाही के चलते आरोपों से मुक्त हुआ इस्लाम
  • इसके अलावा हाईकोर्ट ने पीड़िता के बयानों का विश्लेषण करते हुए पाया कि दोषी इस्लाम के खिलाफ अपहरण का कोई केस नहीं बनता है क्योंकि एक तरफ जहां लड़की के पिता ने यह आरोप लगाया था कि इस्लाम उनकी बेटी को बहला-फुसलाकर ले गया है. वहीं लड़की ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह अपनी मर्जी से इस्लाम के साथ गई थी. लड़की ने अपनी गवाही में यह भी बताया था कि उन दोनों ने कालपी में निकाह किया और फिर भोपाल में एक महीने तक दोनों पति-पत्नी की तरह रहे भी थे.
    Islam is to blame : 16 साल की पत्नी से संबंध, रेप नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी, दोषी इस्लाम को कर दिया बरी ?
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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हिसाब से उस वक्त वैध थी शादी
  • याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने साल 1973 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ले जाने और साथ जाने देने में कानूनी अंतर होता है. जस्टिस अनिल ने कहा कि ये अलग बात है कि अभियोजन पक्ष (लड़की के पिता) यह साबित करने में विफल रहा कि पीड़िता को अभियुक्त बहका कर या जबरदस्ती ले गया था. इस आधार पर कोर्ट ने आरोपी को धारा 363 और धारा 366 के आरोपों से बरी कर दिया. वहीं जब बात रेप यानी कि धारा 376 की आई तो कोर्ट ने यह भी पाया कि पीड़िता की आयु ऑसिफिकेश टेस्ट के मुताबिक 16 वर्ष से अधिक थी. मुस्लिम पर्सनल लॉ में 15 वर्ष की आयु को विवाह योग्य मानकर बालिग माना जाता है, इसलिए यह विवाह वैध है.

News Editor- (Jyoti Parjapati)

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