Mosquito net program : मीना मंच द्वारा फाइलेरिया जागरूकता कार्यक्रम मच्छरदानी के प्रयोग और स्वच्छता से रोग मुक्त जीवन की ओर सार्थक पहल

फाइलेरिया यानी हाथीपांव एक गंभीर और दीर्घकालिक मच्छर जनित बीमारी है, जो मानव शरीर को कई वर्षों तक प्रभावित कर सकती है। यह रोग सामान्यतः कुलेक्स मच्छर के काटने से फैलता है और इसके लक्षण वर्षों बाद दिखाई देते हैं, जो इसे और अधिक खतरनाक बना देता है। इस बीमारी के प्रति जनजागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से मीना मंच के तत्वावधान में उच्च प्राथमिक विद्यालय माती में एक विशेष स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मीना मंच के मास्टर ट्रेनर नवीन कुमार दीक्षित, डॉ. अर्चना मिश्रा, शर्मिष्ठा मलिक और ऋचा पटेल सहित विद्यालय के शिक्षक व छात्र-छात्राएँ बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ मास्टर ट्रेनर नवीन कुमार दीक्षित द्वारा बच्चों को स्वच्छता शपथ दिलाकर किया गया, जिसमें उन्होंने संकल्प दिलाया कि वे स्वच्छता का पालन करेंगे, मच्छरों से बचाव के लिए आवश्यक उपाय करेंगे और अपने आसपास सफाई बनाए रखेंगे। अपने संबोधन में श्री दीक्षित ने बच्चों को फाइलेरिया से जुड़ी अहम जानकारियाँ देते हुए बताया कि यह बीमारी मच्छर के काटने से 10 से 15 वर्ष के अंतराल के बाद भी हो सकती है, इसलिए इससे बचाव के लिए पहले से सतर्क रहना आवश्यक है। उन्होंने विशेष रूप से मच्छरदानी का नियमित प्रयोग करने की सलाह दी और कहा कि सभी बच्चों को मच्छरदानी में सोना चाहिए, क्योंकि यह एक सरल परंतु प्रभावी उपाय है जिससे मच्छरों के काटने से बचा जा सकता है।
श्री दीक्षित ने यह भी बताया कि फाइलेरिया से बचाव हेतु सरकार द्वारा प्रतिवर्ष नि:शुल्क फाइलेरिया रोधी दवाएँ वितरित की जाती हैं, जिनमें डी.ई.सी., एल्बेण्डाजोल और आइवरमेक्टिन प्रमुख हैं। इन दवाओं का सेवन वर्ष में एक बार अवश्य करना चाहिए, क्योंकि ये शरीर में मौजूद फाइलेरिया के कीटाणुओं को समाप्त कर देती हैं और शरीर को रोग से लड़ने में सक्षम बनाती हैं।

इस अवसर पर मीना मंच की मास्टर ट्रेनर डॉ. अर्चना मिश्रा ने बच्चों को बताया कि “जब एक व्यक्ति बीमार होता है, तो केवल वह अकेला नहीं, बल्कि उसका पूरा परिवार प्रभावित होता है। बीमारी आने से घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगती है, और कई बार परिवार गरीबी रेखा के नीचे चला जाता है।” उन्होंने कहा कि यदि हम केवल थोड़ी सी सावधानी बरतें, जैसे कि स्वच्छता का पालन करना, मच्छरदानी का उपयोग करना और समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण कराना, तो हम न केवल खुद को बल्कि अपने पूरे परिवार को बीमारियों से सुरक्षित रख सकते हैं।
मास्टर ट्रेनर शर्मिष्ठा मलिक ने बच्चों को समझाया कि मच्छर विशेष रूप से गंदे और ठहरे हुए पानी में पनपते हैं, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम अपने घर और उसके आसपास पानी जमा न होने दें। उन्होंने बताया कि टायर, डिब्बे, टूटे हुए बर्तन, कूलर और फूलदान जैसे स्थानों में अक्सर वर्षा जल एकत्र हो जाता है, जो मच्छरों के प्रजनन स्थल बनते हैं। यदि हम इन स्थानों की समय-समय पर सफाई करते रहें और पानी को एकत्र न होने दें, तो मच्छरजनित रोगों से बचाव संभव है।
मास्टर ट्रेनर ऋचा पटेल ने बच्चों को मच्छर जनित रोगों से बचाव के व्यावहारिक उपायों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि “सायंकाल के समय पूरी बांह के कपड़े पहनना, मच्छर भगाने वाली क्रीम या स्प्रे का प्रयोग करना, खिड़कियों में जाली लगवाना और घर में मच्छरदानी का प्रयोग करना अत्यंत आवश्यक है।” साथ ही उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि प्रत्येक व्यक्ति को समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण कराते रहना चाहिए, ताकि किसी भी रोग के प्रारंभिक लक्षणों का पता समय रहते लगाया जा सके और उसका इलाज शुरू किया जा सके।
इस जागरूकता कार्यक्रम के दौरान विद्यालय के शिक्षकगण एवं बच्चों ने भी सहभागिता दिखाई और इस पूरी प्रक्रिया को गंभीरता से समझा। बच्चों ने हाथ उठाकर यह संकल्प लिया कि वे अपने घर और मुहल्ले में सफाई रखेंगे, परिवार को भी जागरूक करेंगे और हर साल फाइलेरिया रोधी दवा का सेवन जरूर करेंगे। शिक्षकों ने भी इस प्रयास की सराहना की और कहा कि ऐसे कार्यक्रम विद्यालयों में नियमित रूप से होने चाहिए, जिससे बच्चों के माध्यम से पूरा समाज जागरूक हो सके।
कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को न केवल फाइलेरिया के लक्षणों और कारणों से अवगत कराना था, बल्कि उन्हें इसके प्रभावी बचाव के उपायों की जानकारी देना भी था। मीना मंच द्वारा चलाई जा रही यह पहल बच्चों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने का एक प्रभावी माध्यम बन रही है। चूंकि बच्चे समाज के भविष्य हैं, अतः उनमें यदि प्रारंभ से ही स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा कर दिया जाए, तो आने वाले समय में एक स्वस्थ और जागरूक समाज की कल्पना की जा सकती है।
निष्कर्षतः, मीना मंच द्वारा आयोजित यह जागरूकता कार्यक्रम बच्चों के स्वास्थ्य और सामाजिक जिम्मेदारी के दृष्टिकोण से अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध हुआ। फाइलेरिया जैसी गंभीर बीमारी से बचाव के लिए यह जानना जरूरी है कि बीमारी से अधिक महत्वपूर्ण उसका समय पर बचाव है। मच्छरदानी का प्रयोग, स्वच्छता का पालन, ठहरे पानी को हटाना और साल में एक बार फाइलेरिया रोधी दवा का सेवन — ये सभी छोटे-छोटे कदम मिलकर न केवल बच्चों को, बल्कि पूरे समाज को इस गंभीर बीमारी से बचा सकते हैं। ऐसे प्रयासों को और व्यापक रूप में स्कूलों, पंचायतों और सामुदायिक स्तर पर लागू करना चाहिए, ताकि “स्वस्थ बच्चा, स्वस्थ समाज” का सपना साकार हो सके।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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