Nuclear Mission : परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भर भारत 22 GW की ओर बढ़ता न्यूक्लियर मिशन

भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया है
- भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह स्वच्छ ऊर्जा और रणनीतिक आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर तेजी से अग्रसर है। हाल ही में केंद्र सरकार ने 10 नए परमाणु रिएक्टरों को मंजूरी दी है, जो देश की ऊर्जा नीति में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। इस महायोजना के माध्यम से भारत न केवल जीवाश्म ईंधनों पर अपनी निर्भरता को कम करेगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी एक बड़ी भूमिका निभाएगा।
- परमाणु ऊर्जा विभाग के अनुसार, इस कदम के साथ भारत की कुल न्यूक्लियर क्षमता वर्ष 2032 तक 22,480 मेगावाट तक पहुंच सकती है। यह लक्ष्य भारत के ऊर्जा भविष्य को स्थिर, स्वच्छ और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।
क्या-क्या शामिल हैं इस महायोजना में?
सरकार द्वारा स्वीकृत इन 10 नए रिएक्टरों की कुल उत्पादन क्षमता 7,000 मेगावाट होगी। ये सभी Pressurised Heavy Water Reactors (PHWRs) होंगे, जो भारत की तकनीकी विशेषज्ञता और स्वदेशी निर्माण क्षमता का प्रमाण हैं। इस परियोजना में शामिल मुख्य रिएक्टर निम्नलिखित हैं:
- काइगा की 5 और 6 इकाई (Karnataka)
- गोरखपुर (GHAVP) की 3 और 4 इकाई (Haryana)
- चुटका की 1 और 2 इकाई (Madhya Pradesh)
- माही-बांसवाड़ा की 1 से 4 इकाइयाँ (Rajasthan)
इन रिएक्टरों के अलावा, भारत में पहले से निर्माणाधीन 8 अन्य रिएक्टर हैं, जिनकी कुल क्षमता 6,600 मेगावाट है। ये रिएक्टर आने वाले वर्षों में चालू होंगे और भारत की न्यूक्लियर उत्पादन क्षमता को अभूतपूर्व रफ्तार देंगे।
परमाणु ऊर्जा: स्वच्छ और दीर्घकालिक समाधान
भारत जैसे देश के लिए, जहां ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है, परमाणु ऊर्जा एक सस्टेनेबल और लो-कार्बन विकल्प प्रदान करती है। यह ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जो कोयला या गैस आधारित बिजली संयंत्रों की तुलना में कहीं अधिक पर्यावरण-अनुकूल है।
- परमाणु ऊर्जा उत्पादन में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नगण्य होता है।
- एक रिएक्टर 24×7 बेसलोड पावर प्रदान कर सकता है, जो सौर या पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों की तुलना में ज्यादा स्थिर है।
- परमाणु संयंत्रों का जीवनकाल लंबा होता है और उनमें ऊर्जा घनत्व भी अधिक होता है।
इसलिए, भारत जैसे विकासशील देश के लिए परमाणु ऊर्जा एक आदर्श विकल्प बनती जा रही है।
भारत का तीन-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम: आत्मनिर्भरता का विज़न
भारत की परमाणु नीति विश्व में अद्वितीय मानी जाती है। डॉ. होमी जहांगीर भाभा द्वारा परिकल्पित तीन-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम इस दृष्टिकोण का आधार है, जो भारत को दीर्घकालिक ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर ले जाता है।
पहला चरण: Pressurised Heavy Water Reactors (PHWRs)
इसमें यूरेनियम-235 ईंधन का उपयोग किया जाता है, जिससे प्लूटोनियम-239 प्राप्त होता है। भारत ने इस तकनीक में पूरी तरह आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है।
दूसरा चरण: Fast Breeder Reactors (FBRs)
यह चरण प्लूटोनियम-239 और थोरियम मिश्रण से संचालित होता है। भारत का पहला प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) कलपक्कम में लगभग तैयार है।
तीसरा चरण: Thorium-based Reactors
भारत के पास थोरियम के विशाल भंडार हैं। इस चरण में थोरियम-232 को यूरेनियम-233 में परिवर्तित कर ऊर्जा उत्पन्न की जाएगी। यह भविष्य में भारत को परमाणु ऊर्जा के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर बना सकता है।
स्वदेशी निर्माण और ‘मेक इन इंडिया’ का योगदान
- इन नई परियोजनाओं में एक विशेष बात यह है कि अधिकतर रिएक्टरों का निर्माण स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। भारत की कंपनियाँ जैसे NPCIL (Nuclear Power Corporation of India Limited), BHEL, L&T, और Walchandnagar Industries इन परियोजनाओं में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। यह “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” अभियानों को भी ऊर्जा क्षेत्र में मजबूती प्रदान करता है।
क्या होगा इन योजनाओं से लाभ?
- ऊर्जा सुरक्षा: भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए न्यूक्लियर पावर एक स्थायी समाधान है।
- स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य: भारत के 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य में परमाणु ऊर्जा अहम भूमिका निभाएगी।
- रोज़गार सृजन: इन परियोजनाओं से हज़ारों इंजीनियरों, वैज्ञानिकों, तकनीशियनों और श्रमिकों को रोज़गार मिलेगा।
- टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता: भारत अब कई रिएक्टरों को डिजाइन और निर्माण करने की स्थिति में है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हो गई है।
- रणनीतिक बढ़त: परमाणु ऊर्जा भारत को वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार, तकनीकी रूप से सक्षम और स्वावलंबी राष्ट्र के रूप में स्थापित करती है।
चुनौतियाँ भी कम नहीं
हालांकि ये योजनाएं महत्वाकांक्षी हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन में कुछ चुनौतियाँ भी हैं:
- परमाणु कचरे का निपटान: दीर्घकालिक और सुरक्षित प्रबंधन की जरूरत।
- सुरक्षा और जन स्वीकृति: फुकुशिमा जैसी घटनाओं के बाद लोगों की चिंता बनी हुई है।
- लाइसेंसिंग और नियामक मंजूरी में विलंब: इससे परियोजनाएं समय पर पूरी नहीं हो पातीं।
इन चुनौतियों के समाधान के लिए सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और नागरिक समाज को मिलकर कार्य करना होगा।
निष्कर्ष
- भारत का न्यूक्लियर मिशन केवल ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह एक आत्मनिर्भर, पर्यावरण अनुकूल और तकनीकी रूप से उन्नत भारत की परिकल्पना का हिस्सा है। 22 GW की ओर बढ़ते कदम इस बात का संकेत हैं कि भारत आने वाले दशकों में न केवल अपने ऊर्जा संकट को दूर करेगा, बल्कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों में भी एक निर्णायक भूमिका निभाएगा।
- परमाणु ऊर्जा के इस शक्तिशाली मिशन से जुड़ी उम्मीदें बड़ी हैं—और अगर सही दिशा में प्रयास जारी रहे, तो यह मिशन भारत के ऊर्जा इतिहास में एक सुनहरा अध्याय लिखेगा।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)
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