Pledge of service : रक्षाबंधन कार्यक्रम महिला सम्मान, राष्ट्र रक्षा और सेवा का संकल्प

परिचय: रक्षाबंधन का सामाजिक महत्व
- रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक पावन त्योहार है, जो भाई-बहन के प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यह पर्व केवल पारिवारिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी गहरा संदेश देता है। इसी भावना को सजीव करते हुए कलेक्ट्रेट परिसर में एक विशेष रक्षाबंधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें स्वयं सहायता समूह (SHG) की दीदियाँ, स्कूल की बालिकाएँ (बच्चे), महिला शिक्षकगण, प्रशासनिक अधिकारी एवं पुलिस कर्मी शामिल हुए।
कार्यक्रम की विशेषता और सहभागिता
- इस विशेष कार्यक्रम की एक अनूठी बात यह रही कि इसमें समाज के विभिन्न वर्गों की सहभागिता सुनिश्चित की गई। स्वयं सहायता समूह की दीदियों ने पारंपरिक भावना के साथ इस कार्यक्रम का नेतृत्व किया। उनके साथ विद्यालयों की छात्राएँ, महिला शिक्षक तथा प्रशासनिक अधिकारी – सभी इस आयोजन में सक्रिय रूप से जुड़े। इस अवसर पर जिलाधिकारी डॉ. दिनेश चंद्र एवं मुख्य विकास अधिकारी श्री ध्रुव खाड़िया विशेष रूप से उपस्थित रहे।
रक्षा सूत्र: स्वावलंबन और सृजनशीलता का प्रतीक
- इस कार्यक्रम में एक और महत्वपूर्ण पहल यह रही कि राखियाँ अर्थात ‘रक्षा सूत्र’ स्वयं सहायता समूह की दीदियों द्वारा तैयार की गई थीं। ये राखियाँ न केवल भारतीय परंपरा की सुंदरता को दर्शा रही थीं, बल्कि स्वावलंबन और महिला उद्यमिता का प्रतीक भी बनीं। इन रक्षा सूत्रों के माध्यम से महिलाओं ने यह संदेश दिया कि वे केवल पारंपरिक भूमिकाओं में ही नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
प्रशिक्षु पुलिस कर्मियों को राखी बाँधने का आयोजन
- रिक्रूटमेंट ट्रेनिंग सेंटर में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे पुलिस कर्मियों की कलाई पर जब बालिकाओं और दीदियों ने राखी बाँधी, तो यह एक भावनात्मक और प्रेरणादायक क्षण बन गया। यह न केवल पारंपरिक रक्षाबंधन की भावना को जीवंत करता है, बल्कि सुरक्षा कर्मियों और समाज के बीच आत्मीय संबंध को भी सुदृढ़ करता है। यह संदेश देता है कि देश की रक्षा करने वाले जवानों के साथ समाज का हर वर्ग जुड़ा हुआ है।
महिला सम्मान और राष्ट्र सेवा का संकल्प
- इस अवसर पर जिलाधिकारी डॉ. दिनेश चंद्र ने उपस्थित जनसमूह को महिला सम्मान, राष्ट्र रक्षा और अनवरत देश सेवा का संकल्प दिलाया। उनका यह आह्वान अत्यंत प्रेरणादायक रहा, जिससे उपस्थित सभी लोगों के मन में देशभक्ति और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना प्रबल हुई। संकल्प ने यह सुनिश्चित किया कि यह आयोजन केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन का प्रारंभ बन सके।
सांस्कृतिक और भावनात्मक समरसता का प्रतीक
- इस कार्यक्रम ने एक ओर जहां रक्षाबंधन की सांस्कृतिक गरिमा को बढ़ाया, वहीं दूसरी ओर समाज में आपसी सहयोग, सद्भाव और सशक्तिकरण की भावना को भी मजबूती दी। यह आयोजन उन सामाजिक पहलुओं को उजागर करता है, जहाँ महिलाएँ, छात्राएँ और शिक्षक मिलकर सामाजिक चेतना को जागृत कर सकते हैं।
समूह दीदियों की भूमिका और सशक्तिकरण का संदेश
- स्वयं सहायता समूह की दीदियाँ इस कार्यक्रम की रीढ़ रही हैं। उनका यह प्रयास न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता का उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की महिलाएँ एक साथ मिलकर समाज में जागरूकता और सहयोग की मिसाल कायम कर सकती हैं। राखी निर्माण और आयोजन में उनकी सक्रिय भूमिका ने यह भी साबित किया कि सशक्त महिला समाज का आधार बन सकती है।
बालिकाओं और बच्चों की सहभागिता: नई पीढ़ी का योगदान
- विद्यालयों की बालिकाओं (और कुछ बच्चों) ने इस आयोजन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। यह उनके लिए न केवल एक सांस्कृतिक अनुभव था, बल्कि उनके अंदर देशभक्ति, भाईचारे और सेवा की भावना को विकसित करने का एक अवसर भी था। इस तरह के कार्यक्रमों के माध्यम से नई पीढ़ी को सामाजिक मूल्यों से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है।
महिला शिक्षकों की भागीदारी: शिक्षा और संस्कृति का संगम
- महिला शिक्षकों ने इस आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि शिक्षा केवल पाठ्यक्रमों तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक मूल्यों की स्थापना और संस्कारों के निर्माण में भी शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्होंने बालिकाओं का मार्गदर्शन करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाया और इसे एक सीखने योग्य अनुभव में परिवर्तित कर दिया।
समापन: एक प्रेरणादायक पहल की शुरुआत
- यह रक्षाबंधन कार्यक्रम केवल एक परंपरा का निर्वहन नहीं था, बल्कि सामाजिक सशक्तिकरण, महिला सम्मान और राष्ट्र सेवा की दिशा में एक सार्थक कदम था। स्वयं सहायता समूह की दीदियों, बच्चों, शिक्षकों और अधिकारियों की संयुक्त भागीदारी से यह कार्यक्रम एक प्रेरणा स्रोत बन गया।
इस आयोजन ने यह सन्देश दिया कि जब समाज के विभिन्न घटक एक साथ मिलकर कार्य करते हैं, तो एक सकारात्मक परिवर्तन संभव है। रक्षाबंधन के इस पावन पर्व ने रक्षा, प्रेम, सेवा और सम्मान की भावना को नया अर्थ और नई दिशा दी।
निष्कर्ष
- रक्षाबंधन के इस कार्यक्रम ने समाज को यह सिखाया कि परंपरा और प्रगति साथ-साथ चल सकती हैं। महिला सशक्तिकरण, बालिकाओं की सहभागिता, और राष्ट्र के प्रति सेवा का संकल्प – ये सब मिलकर एक नए भारत की कल्पना को साकार करने की दिशा में एक मजबूत कदम हैं। ऐसे आयोजनों को निरंतरता दी जानी चाहिए ताकि समाज में जागरूकता और सहयोग की भावना हमेशा बनी रहे।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)
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