PM Modi : कृषि कानूनों की वापसी से टूट गया ‘मजबूत सरकार’ का तिलिस्म, नेता मोदी जीत गए, पीएम मोदी हार गए ?

PM Modi : कृषि कानूनों की वापसी से टूट गया ‘मजबूत सरकार’ का तिलिस्म, नेता मोदी जीत गए, पीएम मोदी हार गए

PM Modi : कृषि कानूनों की वापसी से टूट गया 'मजबूत सरकार' का तिलिस्म, नेता मोदी जीत गए, पीएम मोदी हार गए ?
PM Modi : कृषि कानूनों की वापसी से टूट गया ‘मजबूत सरकार’ का तिलिस्म, नेता मोदी जीत गए, पीएम मोदी हार गए ?

नई दिल्ली

  • हमारी तपस्या में शायद कमी रह गई, हमारी नीयत साफ थी लेकिन हम समझा नहीं पाए…मैंने जो कुछ किया वह किसानों के लिए था और अब मैं जो कुछ कर रहा हूं वह देश के लिए है…विवादित तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने जो कुछ कहा, उसका सार यही है। नोटबंदी जैसे फैसले का बचाव करते आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार किसी मुद्दे पर माफी मांगी। राष्ट्र के नाम संबोधन में उन्होंने देश से माफी मांगी कि कृषि कानूनों को लेकर उनकी सरकार कुछ लोगों को समझा नहीं पाई। लेकिन पीएम मोदी और बीजेपी के सामने अब नई चुनौती है। एक नई तरह की तपस्या करनी होगी।कृषि कानूनों के कथित फायदों को आंदोलनकारी किसानों को न समझा पाने वाली मोदी सरकार और बीजेपी क्या अब पार्टी काडर से इतर अपने समर्थकों को समझा पाएगी कि क्यों कानूनों को वापस लेना जरूरी था। उन समर्थकों को जो इस फैसले से निराश हैं और जिन्हें विरोधियों के चुभते तानों का सामना करना पड़ रहा है। अगर 300 से ज्यादा सीटें जीतकर आने वाली मोदी की ‘मजबूत सरकार’ कृषि सुधारों पर अडिग नहीं रह सकी, तो भविष्य में कौन सी सरकार सुधारों के लिए डट सकेगी? इतना साफ है कि इस फैसले से ‘मजबूत सरकार’ की जिस छवि पर नरेंद्र मोदी इतराते थे, वह एक झटके में छिन्न-भिन्न होती दिख रही है। आंदोलनकारी किसानों ने यह दिखा दिया कि मोदी सरकार भी झुक सकती है, बस झुकाने वाला चाहिए।

मजबूत सरकार का तिलिस्म टूटा

  • नरेंद्र मोदी:- सरकार की छवि कड़े फैसले लेने वाली सरकार की रही है। तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक को खत्म करने की बात हो या फिर अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे के खात्मे का ऐतिहासिक फैसला या तमाम विरोध-प्रदर्शनों को दरकिनार कर सीएए-एनआरसी पर कदम पीछे नहीं खींचना…इन तमाम फैसलों से ‘मजबूत सरकार’ की छवि और मजबूत हुई है। लेकिन कृषि कानून के खिलाफ किसान आंदोलन ने इस तिलिस्म को तोड़ दिया है। ऐसा पहली बार नहीं है जब मोदी सरकार अपने किसी अहम फैसले से पीछे हटी है। पहले कार्यकाल में भी मोदी सरकार इसी तरह झुकी थी। तब भी मुद्दा किसानों का ही था। 2014 में सत्ता में आने के कुछ महीने बाद ही मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के लिए अध्यादेश लाई। जमीन अधिग्रहण के लिए 80 प्रतिशत किसानों की सहमति के प्रावधान को समाप्त कर दिया। विपक्षी दलों और किसानों ने इसका जोरदार विरोध किया। आखिरकार इस पर एक के बाद एक कुल 4 बार अध्यादेश लाने वाली मोदी सरकार को झुकना पड़ा। 31 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कानून वापस लेने का ऐलान किया। तब ऐलान के लिए ‘मन की बात’ को चुना गया था अबकी बार ‘राष्ट्र के नाम’ संबोधन जरिया बना।

कृषि कानून वापसी पर प्रतिक्रिया

  • कृषि कानूनों की वापसी पर सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। कुछ इसे मोदी का ‘मास्टर स्ट्रोक’ बता रहे थे तो कुछ इसे किसान आंदोलन और ‘लोकतंत्र’ की ऐतिहासिक जीत जिसने एक ‘तानाशाह’ सरकार को झुकने पर मजबूर किया। इन दोनों तबकों से इतर एक तबका ऐसा भी है जो इस फैसले से मायूस है। इस तबके में कृषि सुधारों के पैरोकारों से लेकर ‘कड़े फैसलों से न हिचकने वाले नेता’ नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं। इस तबके में कोई इसे ’56 इंची सीने’ का भ्रम टूटना बता रहा है तो कोई ‘शाहीन बाग’ मॉडल के सामने सरकार का सरेंडर जो ‘अराजकता’ को हौसला देगा कि अनिश्चित काल तक सड़कों की नाकेबंदी करके सरकार को झुकाया जा सकता है। मोदी सरकार के सामने अब इसी तबके को समझाने की चुनौती है। कृषि कानूनों की वापसी मोदी सरकार के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकती है।
    PM Modi : कृषि कानूनों की वापसी से टूट गया 'मजबूत सरकार' का तिलिस्म, नेता मोदी जीत गए, पीएम मोदी हार गए ?
    PM Modi : कृषि कानूनों की वापसी से टूट गया ‘मजबूत सरकार’ का तिलिस्म, नेता मोदी जीत गए, पीएम मोदी हार गए ?

क्या कद में पिता महेंद्र टिकैत के बराबर पहुंचे राकेश टिकैत?

  • कृषि कानूनों की वापसी से निश्चित तौर पर किसान आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे राकेश टिकैत का कद बढ़ा है। उनकी तुलना उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत से होने लगी है। मौजूदा किसान आंदोलन की तुलना महेंद्र टिकैत की अगुआई में 1988 में दिल्ली में हुई ऐतिहासिक बोट क्लब किसान पंचायत से होने लगी है जिसने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को झुका दिया था और खुद प्रधानमंत्री को बिजली दरों को घटाने समेत किसानों की 35 सूत्री मांगों को मानने का आश्वासन देना पड़ा था। हालांकि, यहां यह बात गौर करने वाली है कि महेंद्र टिकैत ने कभी भी किसी राजनीतिक दल को अपने मंच भारतीय किसान यूनियन का इस्तेमाल नहीं करने दिया। यहां तक की किसानों के मसीहा कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की मौत के बाद एक बार उन्होंने उनकी पत्नी गायत्री देवी और बेटे अजित सिंह को बड़ी विनम्रता से अपने मंच पर आने से रोक दिया था। उन्होंने उनसे हाथ जोड़कर कहा कि हम अपने मंच पर किसी सियासतदान को नहीं आने देते। दूसरी तरफ, मौजूदा किसान आंदोलन के नेता पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में खुलकर एक पार्टी के पक्ष में रैलियां करते दिखें। खुद राकेश टिकैत नंदीग्राम में एक पार्टी की चुनावी सभा को संबोधित किया। जाहिर है, सिद्धांतों के मामले में राकेश टिकैत अपने पिता के आस-पास भी नहीं ठहरते।

किसान आंदोलन का महिमामंडन : आधी हकीकत, आधा फसाना

  • कृषि कानूनों की वापसी निश्चित तौर पर आंदोलनकारी किसानों की बड़ी जीत है, जिन्होंने सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया। सोशल मीडिया पर इसे आजाद भारत के सबसे संगठित और अहिंसक आंदोलन की जीत भी बताया जा रहा है। हालांकि, यह पूरा सच नहीं है। गणतंत्र दिवस के मौके पर इस साल 26 जनवरी को किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान देश की राजधानी दिल्ली जिसका गवाह बनी, वह अहिंसा तो कतई नहीं है। अभी उन तस्वीरों की यादें ताजा हैं जब लाल किले के पास दंगाइयों से जान बचाने के लिए पुलिसकर्मियों को गहरी खाई में कूदना पड़ा था। जब दंगाइयों को रोकने की कोशिश में तमाम पुलिसकर्मी लहूलुहान हुए थे। जब आंदोलन स्थल पर बंगाल की एक युवती की रेप के बाद हत्या हो गई और किसान नेता इस पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहे। किसान आंदोलन की आड़ में कुछ बीजेपी नेताओं के कपड़े फाड़कर नंगा दौड़ाया गया। कुछ नेताओं को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया।दिल्ली की दहलीज पर पंजाब के एक दलित लखबीर सिंह के साथ तालिबानी बर्बरता को भला कौन भूल सकता है। कुंडली बॉर्डर पर उसके पैर तोड़ दिए गए, कलाई काट दी गई, वह दर्द से मुक्ति के लिए गर्दन काट देने की गुहार लगाता रहा लेकिन उसे तड़पा-तड़पाकर मारा गया। पुलिस बैरिकेड पर उसे उल्टा लटका दिया गया। तिल-तिलकर मरने के बाद उसके शव को नुमाइश के लिए पुलिस बैरिकेड पर लटका दिया गया। बगल में कट चुकी कलाई को टांग दिया गया। देश की राजधानी की दहलीज पर यह बर्बरता का अट्टहास था। युवक पर धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी का आरोप था। यूपी के लखीमपुर में 4 किसानों समेत 8 की मौत की घटना को भी ज्यादा दिन नहीं हुए। बीजेपी नेता के काफिले की गाड़ियों ने 4 किसानों को रौंद डाला। मुख्य आरोपी मोदी सरकार में मंत्री अजय मिश्र टेनी का बेटा है। आक्रोशित किसानों ने तब बीजेपी के 4 समर्थकों को पीट-पीटकर मार डाला। ये घटनाएं बताती हैं कि किसान आंदोलन अहिंसक तो कतई नहीं है। हालांकि, जिस तरह झुलसाती गर्मी, हाड़कंपाऊ ठंड और बारिश के बावजूद सालभर से लगातार आंदोलन चल रहा है, इस दौरान कई किसानों की मौतें भी हुईं लेकिन आंदोलनकारी डटे रहे, यह जज्बा वाकई लोहा मानने वाला है।

प्रधानमंत्री मोदी की हार, राजनीतिज्ञ मोदी की जीत!

  • जिन कानूनों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजादी के बाद के सबसे बड़े कृषि सुधारों का दर्जा देते नहीं अघाते थे, उन्हीं कानूनों को वापस लेने के लिए उन्हें मजबूर होना पड़ा। पीएम भले ही इसे देश के लिए लिया गया फैसला बता रहे हों लेकिन हकीकत यही है कि चुनावों में नुकसान के डर से सरकार को झुकना पड़ा। बीजेपी को पश्चिमी यूपी में अपना जनाधार दरकने का डर था। हरियाणा में मुश्किल से बनाई सियासी जमीन को खोने का डर था। अकाली दल का साथ छूटने के बाद बीजेपी पंजाब में अपने लिए नए सिरे से सियासी जमीन तलाशने की कोशिश में है। लेकिन कृषि कानूनों की वजह से पंजाब में बीजेपी को अपने बचे-खुचे वोट बैंक को सहेजकर रखना तो दूर, उसके नेताओं का क्षेत्र में घूमना-फिरना भी दूभर हो गया था। कृषि कानूनों की वापसी का यह ‘मास्टर स्ट्रोक’ राजनीतिज्ञ नरेंद्र मोदी की भले ही जीत हो, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हार है जो कथित कृषि सुधारों पर अडिग नहीं रह पाए। सरकार के यू-टर्न के पीछे चुनावी नफा-नुकसान का गणित तो है ही, साथ में यह किसान आंदोलन के जरिए मोदी सरकार पर ‘जिद्दी’, ‘अड़ियल’, ‘तानाशाह’ होने के लगाए जा रहे ठप्पे को नाकाम कर उदारवादी छवि पेश करने की कोशिश है।

News Editor- (Jyoti Parjapati)

सभी समाचार देखें सिर्फ अनदेखी खबर सबसे पहले सच के सिवा कुछ नहीं ब्यूरो रिपोर्टर :- अनदेखी खबर ।

YouTube Official Channel Link:
https://youtube.com/@atozcrimenews?si=_4uXQacRQ9FrwN7q

YouTube Official Channel Link:
https://www.youtube.com/@AndekhiKhabarNews

Facebook Official Page Link:
https://www.facebook.com/share/1AaUFqCbZ4/

Whatsapp Group Join Link:
https://chat.whatsapp.com/KuOsD1zOkG94Qn5T7Tus5E?mode=r_c

अनदेखी खबर न्यूज़ पेपर भारत का सर्वश्रेष्ठ पेपर और चैनल है न्यूज चैनल राजनीति, मनोरंजन, बॉलीवुड, व्यापार और खेल में नवीनतम समाचारों को शामिल करता है। अनदेखी खबर न्यूज चैनल की लाइव खबरें एवं ब्रेकिंग न्यूज के लिए हमारे चैनल को Subscribe, like, share करे।

आवश्यकता :- विशेष सूचना
(प्रदेश प्रभारी)
(मंडल प्रभारी)
(जिला ब्यूरो प्रमुख)
(जिला संवाददाता)
(जिला क्राइम रिपोर्टर)
(जिला मीडिया प्रभारी जिला)
(विज्ञापन प्रतिनिधि)
(तहसील ब्यूरो)
(प्रमुख तहसील संवाददाता

Check Also

Officers present : 25.08.2025 को डीएम हापुड़ की अध्यक्षता में जिला सड़क सुरक्षा समिति बैठक हुई, कई अधिकारी उपस्थित ?

Officers present : 25.08.2025 को डीएम हापुड़ की अध्यक्षता में जिला सड़क सुरक्षा समिति बैठक हुई, कई अधिकारी उपस्थित ?

Officers present : 25.08.2025 को डीएम हापुड़ की अध्यक्षता में जिला सड़क सुरक्षा समिति बैठक …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *