Raised voice : पत्रकारों पर हमले और प्रशासन की भूमिका पर सवाल: 7 नंबर थाना लुधियाना में पत्रकार सुनील मचान ने उठाई आवाज

लुधियाना, 7 नंबर थाना से रिपोर्ट
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन जब इस स्तंभ को ही कमजोर करने की कोशिश की जाए, तो सवाल उठता है – क्या सच दिखाना गुनाह है? लुधियाना के 7 नंबर थाने में हाल ही में ऐसा ही एक मामला सामने आया, जहां वरिष्ठ पत्रकार सुनील मचान और प्रवासियों से जुड़ी एक घटना को लेकर बहस हुई। यह बहस केवल व्यक्तिगत विवाद तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसने एक बड़ा मुद्दा उठा दिया – पत्रकारों की सुरक्षा और उनके अधिकारों का संरक्षण।
घटना का विवरण: बहस से उठी आवाज
लुधियाना के सक्रिय पत्रकार सुनील मचान, जो सामाजिक मुद्दों और ज़मीनी सच्चाइयों को सामने लाने के लिए जाने जाते हैं, एक रिपोर्टिंग के सिलसिले में 7 नंबर थाना पहुंचे थे। वहां प्रवासी श्रमिकों को लेकर किसी मसले पर रिपोर्टिंग कर रहे थे, तभी हालात बिगड़े और पुलिस की मौजूदगी में बहस छिड़ गई।
इस दौरान उनके साथ कैमरामैन संदीप कौर भी मौजूद थीं। बहस इतनी गंभीर हो गई कि स्थिति तनावपूर्ण बन गई। इसे देखते हुए ब्यूरो चीफ जगपाल सिंह और सभी पत्रकारों का भाईचारा एकजुट होकर थाने में पहुंचे और पूरे मामले पर अपनी एकता का प्रदर्शन किया।
पत्रकारों की एकजुटता: भाईचारा की मिसाल
घटना के बाद जो दृश्य सामने आया, वह पंजाब की पत्रकारिता में एकता की मिसाल बन गया। शहर के तमाम पत्रकार बिना किसी राजनीतिक रंग के, केवल अपने पेशे और अपने साथी के लिए खड़े हुए। यह पत्रकारों के बीच मजबूत भाईचारे और परस्पर सहयोग की भावना को दर्शाता है।
सुनील मचान ने स्पष्ट कहा कि यह केवल उनका निजी मामला नहीं है, बल्कि यह हर उस पत्रकार की आवाज है जो सच्चाई दिखाने की कोशिश करता है और बदले में हमले सहता है। उन्होंने बताया कि यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी कई बार पत्रकारों को दबाया गया, धमकाया गया या बदनाम करने की कोशिश की गई।
प्रवासी मजदूरों से जुड़ा विवाद या पत्रकारों को डराने की साजिश?
इस मामले की पृष्ठभूमि में प्रवासी मजदूरों से जुड़ी कोई रिपोर्टिंग या घटना है, जिसकी वजह से पुलिस और पत्रकार के बीच टकराव की स्थिति बनी। हालांकि स्पष्ट रूप से सामने नहीं आया कि बहस का मूल कारण क्या था, लेकिन यह बात साफ है कि पत्रकारिता के मूल उद्देश्यों को लेकर अवरोध उत्पन्न हुआ।
यह सवाल भी खड़ा करता है कि कहीं प्रशासन की ओर से सच को दबाने या छिपाने की कोशिश तो नहीं हो रही? क्या पत्रकारों को उनकी ड्यूटी निभाने से रोकने की कोशिश की जा रही है?

सुनील मचान की भावनात्मक अपील
थाने के बाहर मीडिया से बातचीत करते हुए पत्रकार सुनील मचान ने बेहद भावुक लहजे में कहा:
“हम अपनी जान जोखिम में डालकर सच्चाई जनता के सामने लाते हैं। हमें न तो किसी से डर है, न किसी लालच की परवाह। लेकिन जब हमें ही रोका जाए, धमकाया जाए, और हमारे साथ दुर्व्यवहार हो, तो ये लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत हैं। मैं प्रशासन से इंसाफ की मांग करता हूं।”
उनकी यह अपील उन हजारों पत्रकारों की आवाज बन गई है जो छोटे शहरों और कस्बों में दिन-रात बिना सुरक्षा, बिना संसाधनों के सच्चाई की लड़ाई लड़ रहे हैं।
प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल
लुधियाना प्रशासन की भूमिका इस पूरे घटनाक्रम में संदेह के घेरे में आ गई है। अगर पत्रकार अपनी ड्यूटी निभाते समय थाने में बहस और दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं, तो यह संकेत करता है कि प्रशासन पत्रकारों को सहयोग नहीं कर रहा, बल्कि उनके मार्ग में बाधा बन रहा है।
प्रेस की आजादी और सुरक्षा को लेकर मौजूदा हालात को देखकर ज़रूरी है कि:
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प्रशासन पारदर्शिता से मामले की जांच करे।
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पत्रकारों को रिपोर्टिंग के दौरान पूरा सहयोग मिले।
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हर थाने में पत्रकारों से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए।
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पत्रकार सुरक्षा कानून को प्राथमिकता दी जाए।
पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग फिर ज़ोर पकड़ती
इस घटना ने एक बार फिर “पत्रकार सुरक्षा कानून” की मांग को जीवित कर दिया है। कई राज्यों में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून लागू करने की मांग वर्षों से चल रही है, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
अगर पत्रकारों को ही सच्चाई दिखाने के लिए थाने के चक्कर काटने पड़ें, धमकियां सहनी पड़ें, तो यह साफ संदेश है कि लोकतंत्र खतरे में है।
संपादकीय नजरिया: क्या यह एक नया मोड़ है?
इस घटना के बाद पत्रकार समुदाय पहले से ज्यादा सजग और एकजुट हो गया है। ब्यूरो चीफ जगपाल सिंह, कैमरामैन संदीप कौर और अन्य सहयोगियों की तत्परता ने दिखा दिया कि अब पत्रकार चुप नहीं रहेंगे। अगर कोई पत्रकार पर हमला करेगा, तो पूरा समुदाय उसके साथ खड़ा होगा।
यह केवल सुनील मचान की लड़ाई नहीं, बल्कि हर उस आवाज की लड़ाई है जो सच के लिए उठती है। यह घटना पत्रकारिता की नई दिशा और चेतना को जन्म देती है।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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