Responsibility : जौनपुर की टूटी सड़कों और टूटी व्यवस्था की कहानी कब मिलेगी जिम्मेदारी

जौनपुर शहर
- जिसकी ऐतिहासिक पहचान और सांस्कृतिक विरासत की मिसाल दी जाती है, आज बदहाल सड़कों और अधूरे विकास कार्यों के कारण चर्चा में है। यह वही जौनपुर है, जो कभी सुंदर गलियों और व्यवस्थित जीवनशैली के लिए जाना जाता था, लेकिन आज हालात इतने खराब हो चुके हैं कि लोग घर से निकलने में डरते हैं। शहर की सड़कों की बदहाली अब किसी से छिपी नहीं है। सड़कों पर जगह-जगह गड्ढे, अधूरी खुदाई, सीवर लाइन की उखड़ी हुई ज़मीन, बारिश के पानी से लबालब भरे गड्ढे—ये सब मिलकर शहरवासियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं।
कौन है जिम्मेदार?
- यही सबसे बड़ा सवाल है। लेकिन अफ़सोस कि इस सवाल का आज तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल सका है। जब स्थानीय पत्रकार या जागरूक नागरिक किसी अधिकारी से सवाल करते हैं तो जो जवाब मिलते हैं, वे कुछ इस प्रकार होते हैं:
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“यह सड़क एनटीपीसी परियोजना के अंतर्गत आती है, इसलिए वही देखेगा।”
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“लोक निर्माण विभाग को सूचना दे दी गई है।”
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“नगर पालिका परिषद की ओर से सफाई का कार्य किया जा रहा है।” इन गोलमोल बयानों से स्थिति की गंभीरता और प्रशासन की असंवेदनशीलता साफ झलकती है। जब सभी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ेंगे, तो सुधार की आशा कैसे की जा सकती है?
सीवर लाइन: समस्या की जड़ या बहाना?
- शहर के कई हिस्सों में खुदाई का कार्य महीनों से अधूरा पड़ा है। अधिकारियों का कहना है कि सीवर परियोजना के तहत खुदाई की गई थी। लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि मरम्मत और पुनर्निर्माण की योजना क्यों नहीं बनाई गई? क्या यह सोचकर कार्य शुरू किया गया था कि जनता यूं ही बदहाल सड़कों से जूझती रहेगी? सीवर लाइन की आड़ में लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी का खेल खुलेआम चल रहा है। जनता को सिर्फ खुदाई और गड्ढों की सौगात मिली है, सुधार की कोई योजना नजर नहीं आ रही।
स्थानीय लोगों की पीड़ा
- स्थानीय नागरिकों की ज़िंदगी अब सड़क पर चलने से पहले दुआ मांगने तक पहुंच चुकी है। शहर के कई इलाकों में बारिश होते ही सड़कें नदियों में तब्दील हो जाती हैं। पानी भरने से गड्ढे और भी खतरनाक हो जाते हैं, और दुर्घटनाएं आम बात हो चुकी हैं। एक महिला ने रोते हुए बताया, “हम रोज़ बच्चों को स्कूल भेजते हैं, लेकिन हर दिन डर बना रहता है कि कहीं गड्ढे में गिर न जाएं। किस सरकार, किस नेता से उम्मीद करें अब?” इसी तरह एक दुकानदार का कहना है, “ग्राहक आते हैं तो गाड़ी खड़ी करने की जगह नहीं, सड़कों की हालत देख वापस लौट जाते हैं। व्यापार भी ठप हो रहा है।”
राजनीतिक चुप्पी और प्रशासनिक निष्क्रियता
- जौनपुर सदर विधानसभा क्षेत्र से जो विधायक चुने गए हैं, वे लंबे समय से मंत्री पद पर भी हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब आपके पास सरकार में पद और शक्ति दोनों हैं, तो विकास कार्यों की इस दुर्दशा पर चुप्पी क्यों? क्या शहर की जनता की परेशानी अब प्राथमिकता में नहीं रही? जनप्रतिनिधि विकास के नाम पर वोट मांगते हैं, पर जब काम की बात आती है तो जिम्मेदारी किसी और पर डाल दी जाती है।
यूपी सरकार की प्राथमिकताएं बनाम ज़मीनी हकीकत
- उत्तर प्रदेश सरकार लगातार दावे करती है कि सड़क, पानी और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं को प्राथमिकता दी जा रही है। लेकिन जौनपुर जैसे शहरों में हालात ये हैं कि:
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सड़कें: टूटी हुई, गड्ढों से भरी, कहीं-कहीं तो पूरी तरह धंसी हुई
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नालियाँ: जाम, महीनों से सफाई नहीं हुई
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सीवर लाइन: अधूरा काम, धंसी सड़कों का मुख्य कारण अगर यही प्राथमिकता है, तो आम जनता को मिल क्या रहा है? हर नागरिक का ये जानना जरूरी है कि घोषणाएं और जमीनी सच्चाई में कितना अंतर है।
जवाबदेही की जरूरत
- अब वक्त है कि ज़िम्मेदार अधिकारियों और नेताओं से स्पष्ट जवाब मांगा जाए। जवाबदेही तय करना बेहद जरूरी हो गया है, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही दोहराई न जाए। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को मिलकर इन तीन बिंदुओं पर तत्काल ध्यान देना होगा:
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विभागीय जिम्मेदारी तय की जाए: किस इलाके की सड़क, नाली, सीवर किस विभाग के अंतर्गत आती है, ये सार्वजनिक किया जाए।
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पारदर्शिता लाएं: पिछले तीन वर्षों में किन प्रोजेक्ट्स पर कितना पैसा खर्च हुआ, और उस पैसे से क्या काम हुआ – इसकी सार्वजनिक रिपोर्ट जारी हो।
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समयबद्ध कार्य योजना बनाएं: सड़कों, नालियों और सीवर मरम्मत के लिए तय समयसीमा के साथ एक ठोस योजना घोषित की जाए।
जनता को जागना होगा
- यह केवल एक पत्रकार की आवाज नहीं है, बल्कि हर नागरिक की लड़ाई है। जब तक जनता सवाल नहीं पूछेगी, जब तक लोग अपने हक के लिए आवाज़ नहीं उठाएंगे, तब तक जिम्मेदारी यूं ही गड्ढों में दबी रहेगी।
- याद रखिए – जो जनता सवाल नहीं पूछती, उसे जवाब नहीं मिलते। यदि आप भी जौनपुर के निवासी हैं और इस समस्या से प्रभावित हैं, तो अपनी आवाज़ उठाइए। प्रशासन और नेताओं से जवाब मांगिए। सोशल मीडिया, समाचार पत्र, स्थानीय चैनल—हर माध्यम से इस मुद्दे को उठाइए। यह आपके शहर की, आपकी सुरक्षा की और आपके बच्चों के भविष्य की बात है। क्योंकि चुप रहना अब खतरे से खाली नहीं।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)
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