Shocking negligence : RTPS पोर्टल पर डॉग बाबू का प्रमाण पत्र मसौढ़ी प्रशासन की चौंकाने वाली लापरवाही

बिहार के मसौढ़ी से सामने आए एक हैरान कर देने वाले मामले
- बिहार के मसौढ़ी से सामने आए एक हैरान कर देने वाले मामले ने राज्य की प्रशासनिक कार्यप्रणाली और डिजिटल गवर्नेंस की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। RTPS (Right to Public Services) पोर्टल से जारी एक आवासीय प्रमाण पत्र में लाभार्थी का नाम ‘डॉग बाबू’, पिता का नाम ‘कुत्ता बाबू’ और माता का नाम ‘कुतिया बाबू’ दर्ज किया गया है। इस प्रमाण पत्र में एक असली कुत्ते की फोटो भी चस्पा है और सबसे हैरत की बात यह है कि इसे मसौढ़ी अंचल कार्यालय के राजस्व पदाधिकारी की डिजिटल सिग्नेचर के साथ आधिकारिक रूप से वैध प्रमाण पत्र माना गया है।
प्रशासनिक लापरवाही या सिस्टम की चूक?
- यह मामला जितना हास्यास्पद प्रतीत होता है, उतना ही प्रशासनिक तौर पर चिंताजनक भी है। RTPS पोर्टल बिहार सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसके तहत नागरिकों को जाति, निवास, आय, चरित्र आदि प्रमाण पत्र ऑनलाइन तरीके से दिए जाते हैं। इस प्रणाली को पारदर्शिता, त्वरित सेवा और भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन के उद्देश्य से लागू किया गया था। लेकिन इस तरह का मजाक न सिर्फ इस योजना की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि सरकारी सिस्टम की कमजोरी और लापरवाही को भी उजागर करता है। ‘डॉग बाबू’ नामक लाभार्थी का यह प्रमाण पत्र सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिससे लोगों में हंसी के साथ-साथ आक्रोश भी फैल गया। आम नागरिकों ने सवाल उठाया कि अगर एक जानवर के नाम से भी प्रमाण पत्र बन सकता है, तो असली जरूरतमंद नागरिकों को उचित समय पर दस्तावेज क्यों नहीं मिलते? यह घटना साफ दर्शाती है कि प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में कोई फिल्टर या मानवीय सत्यापन मौजूद नहीं है, या फिर वह केवल दिखावे भर के लिए रह गया है।
SIR दस्तावेज़ अभियान की साख पर भी सवाल
- यह पूरा मामला उस वक्त सामने आया है जब बिहार सरकार द्वारा ‘SIR दस्तावेज़ अभियान’ चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य दस्तावेजों को डिजिटल माध्यम से सरलता से नागरिकों तक पहुँचाना और गलतियों को सुधारा जाना है। इस अभियान की साख और उद्देश्य पर भी इस मामले ने सवाल खड़े कर दिए हैं। मसौढ़ी अंचल कार्यालय की यह लापरवाही यह दर्शाती है कि स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी दस्तावेज बिना किसी उचित जांच-पड़ताल के जारी किए जा रहे हैं। जब एक कुत्ते के नाम से भी आवासीय प्रमाण पत्र जारी हो सकता है, तो फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग भी एक गंभीर चिंता का विषय बन जाता है। प्रशासनिक अधिकारी भले ही इसे एक “टेक्निकल गलती” करार देकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करें, लेकिन सच्चाई यही है कि जब तक सत्यापन प्रणाली को मजबूत नहीं किया जाएगा, तब तक इस तरह की घटनाएं सरकारी व्यवस्था की खिल्ली उड़ाती रहेंगी।
डिजिटल गवर्नेंस की विश्वसनीयता पर गहरा असर
- भारत सरकार और राज्य सरकारें डिजिटल इंडिया के तहत ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दे रही हैं। RTPS पोर्टल जैसे प्लेटफॉर्म इसी प्रयास का हिस्सा हैं। लेकिन इस प्रकार की घटनाएं आम जनता के मन में डिजिटल सेवाओं को लेकर अविश्वास पैदा करती हैं। एक ओर जहाँ लाखों युवा प्रमाण पत्र के लिए महीनों इंतजार करते हैं, वहीं एक कुत्ते के नाम से जारी आवासीय प्रमाण पत्र यह दर्शाता है कि सिस्टम को मजाक बनाना बेहद आसान हो गया है। यह घटना एक उदाहरण है कि कैसे सरकारी डेटा को मज़ाक में बदल दिया जा सकता है। इससे उन ईमानदार अधिकारियों और कर्मचारियों की मेहनत पर भी पानी फिर जाता है जो इस प्रणाली को सफल बनाने में दिन-रात प्रयासरत हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस दस्तावेज़ के बाद राज्य के राजस्व विभाग और IT विभाग पर भी जांच और जिम्मेदारी तय करने का दबाव बन गया है। लोगों की यह भी मांग है कि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले व्यक्तियों की पहचान कर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई भी सरकारी सिस्टम का मजाक न बना सके।
- निष्कर्ष: बिहार के मसौढ़ी में RTPS पोर्टल से जारी ‘डॉग बाबू’ के नाम का प्रमाण पत्र प्रशासनिक लापरवाही का शर्मनाक उदाहरण है। यह घटना डिजिटल गवर्नेंस की कमजोरियों को उजागर करती है और राज्य सरकार के अभियानों की साख पर सवाल खड़े करती है। समय आ गया है जब राज्य सरकार को ई-गवर्नेंस सिस्टम में सख्त सत्यापन तंत्र लागू करने की जरूरत है ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हो और आम नागरिकों का सरकारी सिस्टम में विश्वास बना रहे।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)