Sitting on a dharna : बिना सूचना बंद किए गए बस डिपो, कर्मचारियों की हालत बदतर, वेतन और हक़ की लड़ाई के लिए बैठे धरने पर

दिल्ली:- से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जहाँ राजधानी के कलेक्टर बस डिपो समेत राजघाट और सीमापुरी डिपो को अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के बंद कर दिया गया है। इस कदम से सैकड़ों कर्मचारियों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। ना तो उन्हें पहले से कोई नोटिस मिला, ना ही बंद होने की वजह की स्पष्ट जानकारी दी गई। अब जब डिपो बंद हो चुके हैं, तो कर्मचारी बेरोजगार और बेसहारा हो गए हैं। न तो उन्हें उनकी बकाया सैलरी मिल रही है और न ही बोनस, ग्रैच्युइटी या अन्य वैधानिक भुगतान दिए जा रहे हैं।
डिपो बंद, न नौकरी बची, न अधिकार मिले
- दिल्ली के इन डिपो में काम करने वाले सभी कर्मचारी – चाहे वह स्थायी हो या अनुबंध पर, सभी इस समय बेहद कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। कंपनी द्वारा अचानक बिना अनुमति और जानकारी के डिपो बंद करने से सभी कर्मचारी सदमे में हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि न ही कंपनी ने तीन महीनों की बकाया तनख्वाह दी है, और न ही वे लीगल फायदे जैसे ग्रैच्युइटी, पीएफ, बोनस आदि देने को तैयार है। कर्मचारियों का कहना है कि डिपो में वर्षों से कार्यरत मजदूरों को इस तरह से बाहर कर देना, न केवल अन्याय है बल्कि मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। कुछ कर्मचारियों ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन के 20-25 साल इन डिपो में काम करते हुए बिता दिए और अब अचानक से उन्हें दरकिनार कर दिया गया है, जैसे उनका कोई अस्तित्व ही नहीं।
राजघाट डिपो में धरने पर बैठे कर्मचारी, सरकार से न्याय की गुहार
- इस अन्याय और अनदेखी के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए राजघाट डिपो के सभी कर्मचारी धरने पर बैठ गए हैं। सीमापुरी और अन्य डिपो के कर्मचारियों ने भी समर्थन जताते हुए प्रदर्शन में हिस्सा लिया है। वे मांग कर रहे हैं कि उन्हें जल्द से जल्द उनका बकाया वेतन दिया जाए, और सभी वैधानिक अधिकार जैसे कि ग्रैच्युइटी, पीएफ, बोनस आदि तत्काल प्रभाव से भुगतान किए जाएं। धरने पर बैठे कर्मचारियों ने मीडिया से अपील की है कि वे उनकी आवाज़ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक पहुँचाएं। इन मज़दूरों का कहना है कि वे किसी राजनीतिक लड़ाई का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि सिर्फ अपने अधिकार और हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके परिवार भूखमरी के कगार पर हैं, बच्चों की पढ़ाई रुक गई है और दवाइयों के पैसे भी नहीं हैं।
कर्मचारियों का दर्द – “कंपनी ने धोखा दिया”
- धरने पर बैठे कई कर्मचारियों ने अपनी व्यथा साझा करते हुए बताया कि उन्हें कंपनी पर पूरा भरोसा था। उन्होंने निष्ठा और मेहनत से काम किया, लेकिन कंपनी ने उन्हें एक झटके में बाहर कर दिया। कुछ कर्मचारियों ने बताया कि कंपनी द्वारा वादे किए गए बोनस और ग्रैच्युइटी तक रोक ली गई है। न कोई नोटिस, न चर्चा – सीधे ताले लगा दिए गए। एक कर्मचारी ने रोते हुए बताया – “मैंने 18 साल सेवा दी है, अब जब मेरी उम्र नौकरी बदलने लायक नहीं रही, तो मुझे एक दिन कहा गया कि काम खत्म हो गया है। न तनख्वाह मिली, न हिसाब। घर पर बीमार पत्नी है, बच्चों की फीस देना बाकी है – अब कहाँ जाऊं?”
मजदूरों की अपील – सरकार और मीडिया से उम्मीद
- कर्मचारियों की एक ही मांग है कि दिल्ली सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे और उन्हें उनका हक दिलवाए। वे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और परिवहन विभाग से अपील कर रहे हैं कि डिपो को फिर से चालू किया जाए या उन्हें वैकल्पिक रोजगार दिया जाए। साथ ही, उनका बकाया वेतन और अन्य लाभ तत्काल प्रभाव से दिया जाए। मीडिया से भी अपील की गई है कि वह इस मसले को प्रमुखता से उठाए ताकि मजदूरों की आवाज़ उन तक पहुंचे जो निर्णय ले सकते हैं। यदि यह मुद्दा अनदेखा रहा, तो आने वाले दिनों में सैकड़ों परिवार भुखमरी की स्थिति में आ जाएंगे।
- निष्कर्षतः, यह मामला सिर्फ वेतन या डिपो बंद होने का नहीं है, बल्कि यह सैकड़ों परिवारों की जीविका और मानवीय अधिकारों की रक्षा का मामला है। एक ओर सरकार “श्रमिकों के कल्याण” की बात करती है, वहीं दूसरी ओर राजधानी में ही मजदूर बेसहारा होकर सड़कों पर बैठने को मजबूर हो गए हैं। अब ज़रूरत है कि मीडिया, प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व इन आवाज़ों को गंभीरता से लें और तत्काल न्यायसंगत समाधान करें।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)