Sterilization Failure : लीलावती बनाम सीएमओ मामला: नसबंदी विफलता के बाद क्षतिपूर्ति नहीं मिलने पर कोर्ट सख्त ?

Sterilization Failure : लीलावती बनाम सीएमओ मामला: नसबंदी विफलता के बाद क्षतिपूर्ति नहीं मिलने पर कोर्ट सख्त

Sterilization Failure : लीलावती बनाम सीएमओ मामला: नसबंदी विफलता के बाद क्षतिपूर्ति नहीं मिलने पर कोर्ट सख्त ?
Sterilization Failure : लीलावती बनाम सीएमओ मामला: नसबंदी विफलता के बाद क्षतिपूर्ति नहीं मिलने पर कोर्ट सख्त ?

1. नसबंदी विफल, दो साल बाद हुआ प्रसव, नहीं मिली क्षतिपूर्ति

  • अंबेडकरनगर जिले के कटेहरी विकास खंड के लाखीपुर मिश्रौली गांव की रहने वाली लीलावती द्वारा दायर एक पुराने मामले में न्यायालय ने मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। मामला वर्ष 2010 का है जब लीलावती ने 5 मार्च को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, कटेहरी में नसबंदी कराई थी। डॉक्टरों की टीम ने उन्हें पूरी तरह आश्वस्त किया था कि अब उन्हें अगला गर्भधारण नहीं होगा। लेकिन नसबंदी असफल रही और 4 अगस्त 2012 को लीलावती ने एक पुत्री को जन्म दिया। इस अवधि में उन्होंने कई बार सरकारी अस्पतालों में जांच कराई, फिर भी उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया।
  • नसबंदी की विफलता के कारण मानसिक, आर्थिक और शारीरिक परेशानियों से गुजर रही लीलावती ने आखिरकार वर्ष 2012 में जिला उपभोक्ता फोरम में डॉ. मुकेश चंद्र मिश्रा और अन्य के खिलाफ वाद संख्या 16/2012 के तहत मामला दायर किया। 28 दिसंबर 2013 को लोक अदालत में तत्कालीन सीएमओ ने लीलावती को क्षतिपूर्ति देने की सहमति भी दी थी। परंतु यह सहमति केवल कागजों में रह गई और लीलावती को आज तक क्षतिपूर्ति की राशि नहीं दी गई।

2. सीएमओ की गैरहाजिरी पर कोर्ट नाराज, वारंट जारी

  • लीलावती की पीड़ा यहीं खत्म नहीं हुई। उन्होंने कई बार सीएमओ कार्यालय का चक्कर लगाया लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन मिला, कार्रवाई नहीं। इससे आहत होकर उन्होंने न्यायालय की शरण ली। इस मामले की सुनवाई के दौरान जब सीएमओ बार-बार न्यायालय में अनुपस्थित रहे, तो कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए उनके खिलाफ वारंट जारी किया। कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि सीएमओ की उपेक्षा न केवल न्यायालय की अवमानना है, बल्कि यह एक पीड़िता के साथ अन्याय भी है, जिसे क्षतिपूर्ति की कानूनी तौर पर पूरी हकदारी है।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि सरकारी अधिकारी न्यायिक आदेशों का पालन नहीं करेंगे, तो यह न्याय व्यवस्था पर सीधा प्रहार है। वारंट जारी करने के साथ-साथ न्यायालय ने इस मामले में पुलिस प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठाया है, क्योंकि पूर्व में जारी वारंट की तामीला नहीं कराई गई और उसे वापस भी कर दिया गया।

3. सीओ पर जांच के आदेश, अगली सुनवाई 6 अगस्त को

  • पूर्व में जारी वारंट का अनुपालन न कराने और उसे वापिस लौटाने को लेकर न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाते हुए क्षेत्राधिकारी (सीओ) के खिलाफ जांच का आदेश भी दिया है। न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक (एसपी) को निर्देशित किया है कि वह इस मामले की गंभीरता को समझते हुए सीओ की भूमिका की जांच कर रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करें। इससे साफ है कि अब प्रशासनिक लापरवाही और न्यायिक आदेशों की अवहेलना को कोर्ट बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है।
  • इस मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त को निर्धारित की गई है। कोतवाल श्रीनिवास पांडेय ने मीडिया को जानकारी दी कि कोर्ट के आदेश पर सीएमओ के खिलाफ वारंट जारी किया गया है और उच्च अधिकारियों के निर्देश पर उसका अनुपालन पूरी गंभीरता से किया जाएगा।

  • निष्कर्ष:
    लीलावती का यह मामला सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की लापरवाही, न्यायिक आदेशों की अवहेलना और प्रशासनिक निष्क्रियता का प्रतीक बन चुका है। अब देखना यह होगा कि क्या पीड़िता को वर्षों बाद न्याय मिलेगा या फिर वह एक बार फिर व्यवस्था की चक्की में पिसकर रह जाएगी। न्यायालय की सख्ती ने जरूर एक उम्मीद की किरण जगाई है।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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