Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट इज़ प्रोटेक्टर ऑफ द कांस्टीट्यूशन ?

सुप्रीम कोर्ट इज़ प्रोटेक्टर ऑफ द कांस्टीट्यूशन! प्लीज़ माइंड इट।
हमारा संविधान हमें मौलिक अधिकार दिया है। उसी संविधान ने मौलिक अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को दिया है। ( अनुच्छेद 32 में लिखा है कि मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में कोई भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। अनुच्छेद 226 के तहत वो हाईकोर्ट भी जा सकता है।)
– संविधान के अनुच्छेद 13 में लिखा है कि संसद और विधानसभा द्वारा बनाया गया कोई भी क़ानून जो संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ होगा, वह अमान्य और अवैध होगा। कोई क़ानून मौलिक अधिकारों के खिलाफ है यह कौन तय करेगा , यह सुप्रीम कोर्ट तय करेगा।
– किसी क़ानून को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों में विसंगति है तो केंद्र का कानून मान्य होगा। (अनुच्छेद 251/254)। विवाद और विसंगति का निर्धारण कौन करेगा, सुप्रीम कोर्ट करेगा!
– संसद से पारित कोई क़ानून संविधान के आधारभूत ढांचे के खिलाफ़ होगा तो वह क़ानून असंवैधानिक होगा। कोई क़ानून आधारभूत ढांचे के ख़िलाफ़ है इसका निर्धारण कौन करेगा, सुप्रीम कोर्ट करेगा!
कुल मिलाकर हमारे मौलिक अधिकारों और देश के संविधान की रक्षा करने की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट की है। और कहा जा रहा है कि तुम चुप रहो! सुप्रीम कोर्ट का काम क़ानून बनाना नहीं है। लेकिन कोई क़ानून संविधान सम्मत है या नहीं, यह देखना तो सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है और यह जिम्मेदारी संविधान ने दी है।
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