System fails : 15 वर्षों में विकास फेल, पानी निकासी व्यवस्था नाकाम ?

System fails : 15 वर्षों में विकास फेल, पानी निकासी व्यवस्था नाकाम

आपका भावपूर्ण और आक्रोश से भरा संदेश एक बहुत ही गंभीर और ज्वलंत समस्या को उजागर करता है, जो केवल एक शहर या क्षेत्र की नहीं, बल्कि देश के कई हिस्सों की साझा पीड़ा है। यह विडंबना ही है कि जिस “विकास” की बात हम आए दिन सुनते हैं, वह कागजों, घोषणाओं और नारों में तो लहलहाता दिखाई देता है, लेकिन धरातल पर केवल जलभराव, गड्ढे, टूटी सड़कों और नारकीय जीवन का अनुभव कराता है। यहां हम इस पूरी परिस्थिति का एक वस्तुनिष्ठ और विस्तृत विश्लेषण करेंगे, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि आखिर यह सब हो क्यों रहा है, और हम इससे कैसे बाहर निकल सकते हैं।

System fails : 15 वर्षों में विकास फेल, पानी निकासी व्यवस्था नाकाम ?
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15 वर्षों का शासन – लेकिन बुनियादी सुविधा नहीं

  • जब कोई एक ही पार्टी या व्यक्ति लंबे समय तक किसी नगर निकाय या नगरपालिका पर राज करता है, तो जनता को यह उम्मीद होती है कि कम से कम बुनियादी समस्याओं – जैसे जल निकासी, सड़कें, साफ-सफाई और स्वास्थ्य – का हल हो जाएगा। लेकिन 15 वर्षों तक नगर पालिका पर भाजपा का शासन और दो-दो कलेक्टरों की प्रशासनिक जिम्मेदारी के बावजूद यदि शहर जलमग्न हो रहा है, तो यह सीधा प्रशासनिक और राजनीतिक असफलता का प्रमाण है। 200 करोड़ रुपए विकास कार्यों के नाम पर खर्च किए जा चुके हैं – यह रकम छोटी नहीं होती। इतने पैसे में एक शहर की सूरत बदली जा सकती थी। लेकिन परिणाम? हर वर्ष की तरह इस बार भी बारिश ने सबकी पोल खोल दी है।

शहर की जल निकासी व्यवस्था – एक मजाक बनकर रह गई है

  • पानी का निकास नहीं होना यह दर्शाता है कि नगर नियोजन में गंभीर खामियां हैं। यह केवल एक बारिश की बात नहीं है; यह उस लापरवाही, भ्रष्टाचार और अदूरदर्शिता का परिणाम है जो वर्ष दर वर्ष जमा होती चली आ रही है। नालियों की नियमित सफाई नहीं होती, सीवरेज सिस्टम जर्जर या अस्तित्वहीन है, और बरसाती पानी की निकासी के लिए कोई समुचित योजना नहीं बनाई जाती। ऐसे में स्वाभाविक है कि हर बारिश शहर के लिए त्रासदी बन जाए।

विरोध प्रदर्शन – जब जनता का धैर्य टूटता है

  • सड़क के गड्ढों में धान रोपना एक प्रतीकात्मक और शक्तिशाली विरोध है। यह केवल एक व्यंग्य नहीं है, बल्कि एक चीख है – उन लाखों नागरिकों की जो रोज़ाना इसी टूटी सड़कों से होकर गुज़रते हैं, दुर्घटनाएं झेलते हैं, और बदले में कोई सुनवाई नहीं पाते। जिला विकास समिति द्वारा यह प्रदर्शन पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग) और ठेकेदारों के खिलाफ किया गया, जो सीधे तौर पर इन खस्ताहाल सड़कों के जिम्मेदार हैं। सवाल यह है – क्या इस विरोध का कोई असर होगा? या फिर यह भी मीडिया की सुर्खियों में दो दिन रहकर भुला दिया जाएगा?
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ठेकेदारों की मनमानी – गुणवत्ता की बलि

  • भारत में सड़क निर्माण और मरम्मत कार्यों में भ्रष्टाचार आम बात हो गई है। ठेकेदारों को भारी रकम दी जाती है, लेकिन वे सस्ती सामग्री और अधूरी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। नतीजा – एक बारिश में ही करोड़ों की सड़कें उखड़ जाती हैं। इसके बावजूद कोई कड़ी कार्रवाई नहीं होती। न ब्लैकलिस्ट, न जुर्माना, न एफआईआर। कारण? ठेकेदारों के और नेताओं के बीच का गठजोड़, जो जनता की गाढ़ी कमाई का मज़ाक उड़ाता है।

विभागों की उदासीनता – समन्वय का अभाव

  • शहर के 18 वार्डों में पानी भर जाना यह दर्शाता है कि नगर पालिका, पीडब्ल्यूडी, जल संसाधन, राजस्व और स्वच्छता विभाग – सभी ने मिलकर जनता को असहाय छोड़ दिया है। कहीं कोई समन्वय नहीं, कोई इमरजेंसी प्लान नहीं, कोई जवाबदेही नहीं जो अफसर बाढ़ से पहले घूम-घूमकर “तैयारी” दिखाते हैं, वही बारिश आते ही नदारद हो जाते हैं।

राजनीतिक असंवेदनशीलता – “सब चुप हैं”

  • सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जो नेता चुनावों में घर-घर दस्तक देते हैं, वे इस समय गायब हैं। नगर पालिका अध्यक्ष हों या स्थानीय विधायक, सभी विकास कार्यों का श्रेय लेने के लिए तो तत्पर रहते हैं, लेकिन संकट के समय यह जिम्मेदारी उनकी नहीं मानी जाती। न जनता के बीच आना, न सोशल मीडिया पर कोई बयान, न राहत कार्य। केवल “अभी स्थिति कंट्रोल में है” जैसे रटे-रटाए जुमले। यह असंवेदनशीलता लोगों को और अधिक नाराज़ करती है।

समाधान क्या हो?

इस हालात से बाहर निकलने के लिए केवल आलोचना काफी नहीं है। नीचे कुछ सुझाव दिए गए हैं जो वास्तविक और स्थायी समाधान की दिशा में ले जा सकते हैं:

i. नगर नियोजन में विशेषज्ञों की नियुक्ति:

नगरपालिकाओं में योग्य सिविल इंजीनियर, टाउन प्लानर और वाटर मैनेजमेंट विशेषज्ञों की स्थायी नियुक्ति अनिवार्य होनी चाहिए।

ii. जवाबदेही तय हो:

ठेकेदारों और अधिकारियों की जवाबदेही कानूनी तौर पर तय की जाए। खराब निर्माण पर कड़ी सज़ा और जुर्माना हो।

iii. RTI और सोशल ऑडिट को बढ़ावा:

जनता को यह अधिकार हो कि वह हर विकास कार्य का सोशल ऑडिट कर सके। RTI (सूचना का अधिकार) के तहत नागरिक काम की गुणवत्ता और बजट की जानकारी ले सकें।

iv. वार्ड स्तर पर निगरानी समितियाँ:

स्थानीय नागरिकों, समाजसेवियों और इंजीनियरों की टीम वार्ड स्तर पर कामों की निगरानी करे।

v. आपदा प्रबंधन की तैयारी:

हर शहर में आपदा प्रबंधन केंद्र सक्रिय हो, जो वर्षा के समय तुरंत जल निकासी, राहत और बचाव कार्य कर सके।

मीडिया और जनसंवाद की भूमिका

  • आज का मीडिया यदि ईमानदारी से काम करे, तो ऐसे मुद्दों को लगातार प्रमुखता दे सकता है। जनता को भी सोशल मीडिया, जन याचिका, और जन जागरूकता अभियानों से अपनी बात को मुखरता से रखना चाहिए।

निष्कर्ष:

  • आपका आक्रोश जायज़ है। 15 वर्षों तक एक ही दल और प्रशासनिक मशीनरी का एकछत्र राज होने के बावजूद यदि शहर की ये हालत है, तो यह “विकास” शब्द की सबसे बड़ी विडंबना है। यह केवल राजनीति का नहीं, बल्कि पूरे तंत्र के पतन का प्रमाण है। अब वक्त है कि जनता सिर्फ चुनाव के समय नहीं, हर दिन जवाब मांगे। क्योंकि असली लोकतंत्र केवल वोट देने से नहीं, सवाल पूछने से चलता है।

“विकास की गंगा” बह तो रही है – पर अफ़सोस, सड़क नहीं, घरों में।
अब सवाल यह है कि क्या यह गंगा कभी थमेगी?

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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