Titanic : जब टाइटैनिक उत्तरी अटलांटिक के बर्फीले पानी में डूब रहा ?

जब टाइटैनिक उत्तरी अटलांटिक के बर्फीले पानी में डूब रहा था।
चारों ओर डर और अफरातफरी का माहौल था।
तभी जहाज़ के नीचे के हिस्से से एक शांत और स्थिर चेहरा सामने आया:
जहाज़ का हेड बेकर, चार्ल्स जोगिन।
उसके पास कोई यूनिफॉर्म नहीं थी,
न कोई अधिकार, न ही कोई सीटी जिससे भीड़ को नियंत्रित कर सके।
उसके पास था तो बस दूसरों की परवाह करने की आजीवन आदत।
जब घबराए यात्री जीवनरक्षी नौकाओं की ओर भाग रहे थे,
चार्ल्स ने रोटियों के ढेर इकट्ठे किए और उन्हें डेक पर कांपती औरतों और बच्चों में बाँटता गया।
उसने डर रहे लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, और जितनी नावें लोड कर सका, करता गया।
जब आख़िरी लाइफबोट रवाना हो गई, तो उसने खुद उसमें जगह बनाने की कोशिश नहीं की।
बल्कि अपना मौका छोड़ दिया, और डूबते जहाज़ पर ही रह गया।
अपने केबिन में जाकर उसने एक बड़ा पैग व्हिस्की पिया… और इंतज़ार किया।
रात 2:20 बजे, विशाल स्टील का जहाज़ सागर में समा गया।
चार्ल्स अब ठंडे, अंधेरे पानी में अकेला था।
फिर भी, दो घंटे से ज़्यादा वक़्त तक वह जीवित तैरता रहा…
जब तक बचाव नहीं आ गया।
बाद में उसने कहा कि उसे न डर याद है, न घबराहट।
और ठंड? वो तो जैसे एक धुंध सी थी।
ये व्हिस्की का असर नहीं था क्योंकि शराब तो हाइपोथर्मिया को और तेज़ करती है।
जो उसे बचाए रखे थे, वो थे:
उसकी स्थिरता, उसका अडिग हौसला, वर्षों की शारीरिक सहनशक्ति, और हार न मानने की ज़िद।
उस रात उसने कोई भाषण नहीं दिया,
कोई शोहरत नहीं चाही।
उसने बस वही किया जो हमेशा करता आया था दूसरों की चिंता।
क्योंकि सबसे अंधेरी घड़ियों में
हमें बचानेवाली आवाज़ ज़रूरी नहीं कि सबसे ऊँची हो —
कभी-कभी वो बस एक शांत हाथ होता है, जो अपना काम करता रहता है।
सच्चे हीरो हर बार चिल्लाते नहीं…
कभी-कभी वो बस सबको तैरते रहने में मदद करते हैं।
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