Until modernity : रक्षाबंधन के बदलते मायने परंपरा से आधुनिकता तक ?

Until modernity : रक्षाबंधन के बदलते मायने परंपरा से आधुनिकता तक

Until modernity : रक्षाबंधन के बदलते मायने परंपरा से आधुनिकता तक ?
Until modernity : रक्षाबंधन के बदलते मायने परंपरा से आधुनिकता तक ?

भारत विविधताओं से भरा देश है

  • भारत विविधताओं से भरा देश है, जहां हर त्यौहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों को भी मजबूत करता है। इन्हीं में से एक विशेष पर्व है — रक्षाबंधन, जो भाई-बहन के रिश्ते की मिठास, प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक है। लेकिन बदलते समय, समाज, तकनीक और सोच के साथ-साथ रक्षाबंधन के मायने भी बदल रहे हैं। यह बदलाव केवल रस्मों तक सीमित नहीं है, बल्कि इस पर्व की आत्मा, इसके उद्देश्य और इसके सामाजिक संदर्भ में भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। रक्षाबंधन की जड़ें भारतीय इतिहास, पौराणिक कथाओं और सामाजिक परंपराओं में गहराई से जुड़ी हैं। द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कथा हो या रानी कर्णावती द्वारा हुमायूं को भेजी गई राखी, यह पर्व सदा से रक्षक और संरक्षित के बीच एक नैतिक संकल्प का प्रतीक रहा है। पहले के समय में राखी केवल भाई-बहन के खून के रिश्ते तक सीमित थी। बहन भाई की कलाई पर राखी बाँधती थी और भाई जीवनभर उसकी रक्षा करने का वचन देता था। यह रिश्ता स्नेह, विश्वास और समर्पण से भरा होता था।
  • अब रक्षाबंधन का दायरा केवल खून के रिश्तों तक सीमित नहीं रहा। आज कई महिलाएं अपने दोस्तों, सहकर्मियों, शिक्षकों, सैनिकों और यहां तक कि प्रकृति को भी राखी बाँधती हैं। यह दर्शाता है कि “रक्षा” अब केवल एक व्यक्ति विशेष का दायित्व नहीं, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक संबंधों की व्यापक जिम्मेदारी बन चुका है। इसका सबसे सुंदर उदाहरण है कि अब बहनें भी अपने छोटे भाइयों को कहती हैं — “मैं भी तेरी रक्षा करूँगी।” यानी सुरक्षा का रिश्ता अब एकतरफा नहीं रहा, यह परस्पर बन गया है।
    तकनीक ने आज रिश्तों के समीकरण ही बदल दिए हैं। पहले जहां राखी भेजने के लिए डाकघर जाना पड़ता था, अब एक क्लिक में डिजिटल राखियाँ, वीडियो कॉल, ऑनलाइन गिफ्टिंग और वर्चुअल सेरेमनी हो रही हैं। विदेशों में बसे भाई-बहन अब भले दूर हों, लेकिन वीडियो कॉल पर राखी बाँधने की परंपरा, स्क्रीन पर तिलक और डिजिटल मिठाई ने एक नई तरह की जुड़ाव की भावना पैदा की है। कुछ लोग भले इसे भावनाओं की कमी कहें, लेकिन सच्चाई यह है कि तकनीक ने दूरी को पाटने का जरिया भी दिया है।
    पहले रक्षाबंधन पर भाई बहन को मिठाई और उपहार देता था। यह एक तरह से प्रेम की अभिव्यक्ति थी। लेकिन अब कई बहनें कहती हैं — “भैया, गिफ्ट नहीं चाहिए, थोड़ी सी फुर्सत चाहिए, समय चाहिए, समझ चाहिए।” आज की बहन आत्मनिर्भर है। वह भावनात्मक सुरक्षा, मानसिक सहयोग और बराबरी की भागीदारी चाहती है। उपहार की जगह अब रिश्तों में पारदर्शिता, संवाद और समय की मांग अधिक हो गई है। पुराने जमाने में रक्षाबंधन का अर्थ था — “भाई बहन की रक्षा करेगा।” परंतु आज यह परिभाषा बदल रही है।
    लड़कियाँ भी आज आत्मनिर्भर हैं, अपने भाइयों की मदद कर रही हैं, उन्हें मानसिक और आर्थिक संबल दे रही हैं। रक्षाबंधन अब यह नहीं कहता कि केवल भाई ही रक्षक होगा, बल्कि यह दर्शाता है कि भाई और बहन दोनों एक-दूसरे की ज़िंदगी में सुरक्षा, समर्थन और प्रेरणा बन सकते हैं। आज के समय में रक्षाबंधन केवल भाई-बहन का पर्व नहीं रहा, यह प्रकृति की रक्षा, सामाजिक सौहार्द और समानता का प्रतीक भी बन चुका है। कई स्थानों पर पेड़ों को राखी बाँधने की परंपरा चल पड़ी है — “वृक्ष-रक्षा बंधन”। बच्चें और महिलाएं वृक्षों को राखी बाँधकर यह संदेश दे रही हैं कि हम केवल मानव की नहीं, प्रकृति की भी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।
    इसी तरह से सैनिकों को राखी भेजना यह बताता है कि देश की रक्षा करने वाले वीरों के साथ भी हम भावनात्मक रूप से जुड़े हैं। बहनें अब केवल रक्षा की याचक नहीं, बल्कि स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर और संवेदनशील भी हैं। कई परिवारों में बहनें ही भाइयों की आर्थिक, शैक्षणिक या सामाजिक मदद कर रही हैं। यह बदलाव यह संकेत करता है कि रक्षाबंधन अब पौरुष और स्त्रीत्व के सांचे से बाहर निकल कर इंसानी मूल्यों और बराबरी के धरातल पर खड़ा हो रहा है।
    आज के इस व्यस्त जीवन में भावनाओं की अभिव्यक्ति के तरीके भले बदल गए हों, लेकिन उनकी अहमियत कम नहीं हुई है। भाई-बहन अब केवल राखी के दिन नहीं, सालभर एक-दूसरे के जीवन में सहयोगी बने रहते हैं। रक्षाबंधन एक बहाना है उन रिश्तों को फिर से जीने का, जिनमें कभी झगड़े थे, कभी मिठास, कभी नाराज़गी और कभी अपार स्नेह। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि रिश्ते बनाए नहीं जाते, निभाए जाते हैं।
    आज रक्षाबंधन केवल हिंदू धर्म या भारतीय संस्कृति तक सीमित नहीं रहा। यह पर्व अब सांप्रदायिक सौहार्द, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी बन चुका है। कई जगह मुस्लिम लड़कियाँ हिंदू भाइयों को राखी बाँधती हैं, ईसाई बच्चे सैनिकों को राखी भेजते हैं — यह सब इस बात का संकेत हैं कि रक्षा का संकल्प मानवता का संकल्प है, न कि केवल किसी धर्म, जाति या समुदाय का। रक्षाबंधन के बदलते मायने हमें यह समझाते हैं कि त्योहार केवल रस्में नहीं होते, वे विचार होते हैं, भावना होते हैं।
    आज का रक्षाबंधन हमें यह सीख देता है: कि रक्षा एकतरफा नहीं, परस्पर होती है। कि रिश्ते खून से नहीं, भावना से बनते हैं। कि प्रकृति, समाज और देश भी हमारी रक्षा के हकदार हैं। और यह कि महिला केवल संरक्षित नहीं, संरक्षक भी हो सकती है। रक्षाबंधन अब केवल एक पर्व नहीं, एक दार्शनिक दृष्टिकोण है — जो कहता है कि प्रेम, समर्पण और समानता से ही समाज और रिश्ते टिक सकते हैं।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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