What is seen in this : यह राजनीति है साहब, इसमें जो दिखता है, वास्तव में वह होता नहीं है  ?

What is seen in this : यह राजनीति है साहब, इसमें जो दिखता है, वास्तव में वह होता नहीं है

What is seen in this : यह राजनीति है साहब, इसमें जो दिखता है, वास्तव में वह होता नहीं है  ?
What is seen in this : यह राजनीति है साहब, इसमें जो दिखता है, वास्तव में वह होता नहीं है  ?

नेपाल में जेन जी आंदोलन के बीच बनी विषम परिस्थितियों के बीच यहां के खेतों में लहलहाती फसल और अन्नदाता किसानों की कहानी अलग है। अन्नदाता नेपाल की किसानी में लगे भ्रष्टाचार के कीड़े का अंत चाहते।

किसान जेनजी आंदोलन के दौरान सरकारी संस्थानों पर की गई आगजनी में सरकारी दस्तावेजों को जलाए जाने की घटना को भ्रष्टाचार का सबूत मिटाने की साजिश करार देते हैं। कहते हैं-हमारी हाय आखिरकार भ्रष्टाचारियों को लगी। नई पीढ़ी ने हमें नई उम्मीद दी है …।

यह ठीक उसी प्रकार से है, जैसे खेतों में रसायन डाल कीड़े मार देते हैं वैसे ही नेपाल का जेनजी आंदोलन भ्रष्टाचार समाप्त कर देश का कायाकल्प करेगा। यहां के किसान कुछ इस तरह से भ्रष्टाचार का रक्त चरित्र की कहानी समझा रहे।

वीरगंज के वार्ड संख्या- 17 के निवासी नीरज कुमार उपाध्याय ‘ब्राह्मण’ कहते हैं- जरा समझिए इस बात को जहां कोई शहर नहीं है। गांव हैं, खेत और खेती है। वैसे इलाके महानगरपालिका का हिस्सा बन गए। खेती की जमीन पर शहर जैसा टैक्स लगा और सुविधाएं …! हमारे खेतों में धान, मक्का, सब्जी … की फसल लहला तो रही है, लेकिन उन्हें कीड़े चाट रहे।

सोहनी हो रही। फसल पर लगे कीड़ों को मारने के लिए रसायनिक खाद की जरूरत है और खाद मिल नहीं रहा। माना अभी आंदोलन है, लेकिन इसके पहले तो सबकुछ ठीक था फिर खाद नहीं मिला। सात रुपये का यूरिया 25 सौ में खरीदना पड़ रहा।

इसका कारण ऊपर से नीचे तक कायम बिचौलिया राज। कोई किसी की सुनता है साहब। वार्ड सदस्य को खाद आवंटन की सूचना आती। खाद आने के बाद पहले वो अपना पेट भरते, फिर अपने लोगों का फिर चहेतों का, अंत वास्तविक अन्नदाता।

अभी तीन दिनों से बारिश हो रही, लेकिन हम अपने खेतों की हरियाली खुली आंखों से जाता देख रहे। जेनजी आंदोलन के कारण अब नेपाल में अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने की कवायद चल रही। उम्मीद है भ्रष्टाचार का कीड़ा मारा जाएगा।

What is seen in this : यह राजनीति है साहब, इसमें जो दिखता है, वास्तव में वह होता नहीं है  ?
What is seen in this : यह राजनीति है साहब, इसमें जो दिखता है, वास्तव में वह होता नहीं है  ?
भ्रष्टाचारी घुसपैठिया जला देलख सरकारी दस्तावेज
  • पर्सा जिले के अठराहा टोल निवासी शिवशंकर साह उर्फ बिकाऊ की बात- ‘खाद-बीज में बहुत भ्रष्टाचार बा। पहिले नेता के आदमी के मिलल ओकरे बाद गरीबन के। तीन-चार दिन लाइन में खड़ा भइला के बाद भी ना मिलल। वार्ड सदस्य लोग अपना टीम में खाद रख लेलख। आंदोलन के बाद सुधार के उम्मीद जागल बा। भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक फैलल बा। एही कारण जेनजी आंदोलन में घुसल घुसपैठिया भ्रष्टाचारी सरकारी आफिस के कागज जला देहल ह। कागज ना रही त भ्रष्टाचारी नेता के भ्रष्टाचार ना पकड़ा पाई। इस आंदोलन से भ्रष्टाचारी नेता लोग के मन में डर समाई तबे किसान आत्मनिर्भर होई, ना त ई लोग …! बहुअरवा पचरुखा के किसान शशिकांत मिश्रा सवाल के साथ जवाब देते हैं- अभी दुकानें बंद हैं।
  • पहले तो खुली थीं। ये आंदोलन जरूरी था। यहीं रास्ता था। पाप का घड़ा भर चुका था। इस मौसम में यूरिया जैसे खाद का नहीं मिलना भ्रष्टाचार नहीं तो क्या है। सिंचाई के साधन अतिक्रमित हो गए। दबंगों का कब्जा है। सिंचाई के किसानों के पास अतिरिक्त पैसा खर्च करने के अलावा कोई चारा नहीं रहता। किसान जब नेताओं के पास अपनी समस्या बताते हैं तो वो किसानों की जुबान दबा देते थे। आज हमारे देश की नई पीढ़ी हमारी आवाज बनकर उभरी है। उम्मीद है कि देश की राजनीति में स्वच्छता का वास होगा।
लगातार बढ़ता गया मालगुजारी टैक्स
  • अलउ गांव के वयोवृद्ध 90 वर्षीय सत्यनारायण साह कहते हैं किसान मालगुजारी टैक्स के बढ़ने से परेशान होते रहे और सरकार अपनी धुन में लगी रही। जो मालगुजारी पहले एक कट्ठे में सात रुपये लगती थी। अब बढ़कर 114 रुपये धूर हो गई। अब अंदाजा लगा लीजिए कैसे किसान परेशान हो रहे। सरकार में बैठे लोगों ने जब गांवों का शहरीकरण किया तो भूमि का वर्गीकरण ऐसे किया कि जिस जमीन का टैक्स बिगहा में जाता था अब धूर में जा रहा। यहीं तो भ्रष्टाचार है। इसी का तो अंत जरूरी है।
वक्त पर नहीं जाता आर्डर, नहीं मंगाई जाती खाद
  • किसानों का सीधा आरोप व्यवस्था पर – वक्त पर सरकार में बैठे लोग करीब एक करोड़ की संख्या वाले किसानों के लिए खाद व कृषि यंत्रों का आर्डर भारत सरकार को नहीं भेजते। नेपाल में रसायनिक खाद का उत्पादन नहीं होता, सो मित्र देश पर निर्भरता है। यदि वक्त पर खाद आ भी गया तो नेताओं ने उसे बिचौलियों के हवाले कर दिया और खाद वास्तविक किसानों के पास पहुंचा नहीं। किसान कालाबाजार की दौड़ लगाते रहे और बिचौलिए माला-माल होते रहे।

News Editor- (Jyoti Parjapati)

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