Who will take responsibility : शिक्षक की कमी से बेहाल कमेला कॉलोनी का उच्च प्राथमिक विद्यालय छोटी कक्षाओं में आए दिन घायल हो रहे मासूम, जिम्मेदारी कौन लेगा

सहारनपुर, 28 अक्टूबर 2025।
“शिक्षा का अधिकार” आज़ादी के बाद से हर बच्चे का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन सहारनपुर के कमेला कॉलोनी स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थिति इस दावे को चुनौती देती नज़र आ रही है। विद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी के कारण छोटे बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा दोनों ही खतरे में हैं।
यहाँ कक्षा पाँच के बच्चे शिक्षक की अनुपस्थिति में अक्सर बिना निगरानी के रहते हैं। परिणामस्वरूप वे खेलते-कूदते या आपसी झगड़ों में घायल हो जाते हैं। पिछले कुछ हफ़्तों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें बच्चों को सिर, हाथ और घुटनों पर चोटें आई हैं। अभिभावक चिंतित हैं कि आखिर इतनी छोटी उम्र के बच्चों को विद्यालय में बिना निगरानी के कैसे छोड़ दिया जाता है।
स्थायी शिक्षक नहीं, बच्चों की सुरक्षा पर संकट
अभिभावकों और स्थानीय निवासियों ने आरोप लगाया है कि आठवीं तक संचालित इस विद्यालय की कक्षा पाँच में कोई स्थायी सरकारी शिक्षक नहीं है। स्कूल में कार्यरत अन्य शिक्षकों पर पहले से ही ऊँची कक्षाओं की जिम्मेदारी है, जिससे वे छोटी कक्षाओं पर ध्यान नहीं दे पाते। इस वजह से छोटे बच्चों की देखरेख अधूरी रह जाती है।
स्थानीय निवासी राजीव कुमार का कहना है, “हमारे बच्चे पढ़ने जाते हैं, लेकिन शिक्षक न होने से उनका समय खेल-कूद में निकल जाता है। कई बार बच्चे चोटिल होकर घर लौटते हैं। क्या यह शिक्षा का अधिकार है या बच्चों के साथ खिलवाड़?”
स्कूलों के विलय से बढ़ा बोझ, नहीं बढ़ी नियुक्तियाँ
जानकारी के अनुसार, शिक्षा विभाग द्वारा पिछले वर्षों में कई सरकारी विद्यालयों को बंद या मर्ज (विलय) कर दिया गया है। इससे एक ही परिसर में अधिक बच्चों की भीड़ बढ़ गई है, लेकिन शिक्षकों की संख्या उसी अनुपात में नहीं बढ़ाई गई।
कमेला कॉलोनी के इस उच्च प्राथमिक विद्यालय में भी यही स्थिति है। यहाँ छात्रों की संख्या तो लगभग दोगुनी हो गई है, लेकिन शिक्षकों की संख्या सीमित ही रही। अनुपात बिगड़ने के कारण विद्यालय प्रबंधन बच्चों पर प्रभावी नियंत्रण और शिक्षण व्यवस्था बनाए रखने में असमर्थ हो गया है।
अभिभावकों में रोष, विभाग पर लापरवाही का आरोप
अभिभावकों ने शिक्षा विभाग पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि बार-बार शिकायत के बावजूद न तो अतिरिक्त शिक्षक भेजे गए और न ही बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था में सुधार किया गया।
माता-पिता संघ की सदस्य शबाना बेगम ने बताया, “हमने कई बार खंड शिक्षा अधिकारी और बीएसए दफ्तर में शिकायत दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हमारे बच्चे चोट खा रहे हैं और शिक्षा विभाग चुप है।”
प्रिंसिपल की भूमिका पर भी उठे सवाल
स्थानीय लोगों ने यह भी कहा कि विद्यालय के प्रधानाध्यापक को स्वयं जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जब शिक्षक अनुपस्थित हों तो छोटी कक्षाओं का दौरा करना और देखरेख सुनिश्चित करना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। लेकिन फिलहाल ऐसा कोई प्रयास विद्यालय स्तर पर दिखाई नहीं दे रहा।
बच्चों की पढ़ाई और मानसिक स्थिति पर असर
शिक्षक की कमी न केवल सुरक्षा की दृष्टि से बल्कि बच्चों की शैक्षिक गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव डाल रही है। बिना शिक्षक के बच्चे पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं, उनमें अनुशासन की कमी देखी जा रही है और कई बच्चे स्कूल जाने से कतराने लगे हैं।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद त्यागी का कहना है, “सरकार ने ‘हर बच्चे को शिक्षा’ का नारा दिया, लेकिन बिना शिक्षक के यह नारा अधूरा है। बच्चे स्कूल में समय बिताने जा रहे हैं, सीखने नहीं।”

शिक्षा विभाग से जवाबदेही की मांग
अब स्थानीय नागरिकों और अभिभावकों ने बेसिक शिक्षा विभाग से तत्काल संज्ञान लेने की मांग की है। वे चाहते हैं कि कक्षा पाँच समेत अन्य छोटी कक्षाओं में जल्द से जल्द स्थायी शिक्षक तैनात किए जाएँ, ताकि बच्चों की पढ़ाई के साथ उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके।
बीएसए कार्यालय के सूत्रों के अनुसार, शिक्षक की कमी की समस्या केवल इस स्कूल तक सीमित नहीं है, बल्कि जिले के कई विद्यालय इससे प्रभावित हैं। विभाग ने उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट भेजी है और अगले सत्र में नई नियुक्तियों की संभावना जताई है। हालांकि अभिभावकों का कहना है कि समस्या तत्काल समाधान की मांग करती है, क्योंकि यह बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है।
सरकार के दावों पर सवाल
राज्य सरकार जहाँ एक ओर “हर हाथ में किताब, हर घर में शिक्षा” का नारा दे रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत इससे उलट दिखाई देती है। कमेला कॉलोनी का विद्यालय इस बात का उदाहरण है कि शिक्षा की नीतियाँ कागज़ों पर ही सीमित हैं, जबकि बच्चों की वास्तविक समस्याएँ अनसुलझी पड़ी हैं।
बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सर्वोच्च प्राथमिकता
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षकों की कमी केवल शैक्षणिक नुकसान नहीं पहुँचाती, बल्कि यह बाल-सुरक्षा कानूनों का भी उल्लंघन है। छोटे बच्चों को बिना निगरानी के छोड़ना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
यदि समय रहते इस पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह लापरवाही किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती है। शिक्षा विभाग को चाहिए कि ऐसे विद्यालयों की सूची तैयार कर प्राथमिकता से शिक्षक तैनात करे और प्रधानाध्यापकों की जवाबदेही तय करे।
संक्षेप में:
कमेला कॉलोनी के उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थिति यह बताती है कि शिक्षकों की कमी केवल एक प्रशासनिक समस्या नहीं बल्कि समाज के भविष्य से जुड़ा सवाल है। नौनिहालों की सुरक्षा और शिक्षा के अधिकार की रक्षा तभी संभव है जब सरकार और विभाग दोनों ज़मीनी स्तर पर सक्रिय होकर ठोस कदम उठाएँ।
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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