Impressive presence : गुलामी और हिस्सेदारी में फर्क देखिए तेलंगाना की सियासत में AIMIM की प्रभावशाली मौजूदगी ?

Impressive presence : गुलामी और हिस्सेदारी में फर्क देखिए तेलंगाना की सियासत में AIMIM की प्रभावशाली मौजूदगी

Impressive presence : गुलामी और हिस्सेदारी में फर्क देखिए तेलंगाना की सियासत में AIMIM की प्रभावशाली मौजूदगी ?
Impressive presence : गुलामी और हिस्सेदारी में फर्क देखिए तेलंगाना की सियासत में AIMIM की प्रभावशाली मौजूदगी ?

भारतीय राजनीति में अक्सर सत्ता की भागीदारी और प्रभाव

भारतीय राजनीति में अक्सर सत्ता की भागीदारी और प्रभाव को केवल सरकार में शामिल होने या मंत्री पद पाने तक सीमित कर दिया जाता है। लेकिन तेलंगाना में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की भूमिका यह दिखाती है कि सियासत में ताकत केवल कुर्सी से नहीं, ज़मीन से भी आती है। हाल ही में एक सार्वजनिक मंच पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी द्वारा AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी को बराबरी से मंच साझा करने का मौका देना इस बात का उदाहरण है कि AIMIM, सरकार में शामिल न होने के बावजूद भी सियासी हिस्सेदारी रखती है — और वह भी सम्मानजनक रूप में।

AIMIM: सत्ता से बाहर, लेकिन प्रभाव के केंद्र में

AIMIM फिलहाल तेलंगाना की सरकार का औपचारिक हिस्सा नहीं है। न तो वह कांग्रेस की सहयोगी पार्टी है, और न ही उसने सरकार में किसी मंत्री पद की मांग की है। बावजूद इसके, AIMIM की हैदराबाद में राजनीतिक उपस्थिति इतनी मजबूत है कि कोई भी दल — चाहे वह कांग्रेस हो या इससे पहले की टीआरएस (अब BRS) — इस पार्टी को नजरअंदाज नहीं कर सकता।

हैदराबाद AIMIM का गढ़ माना जाता है। यहां पार्टी का संगठनात्मक ढांचा मजबूत है, जमीनी कार्यकर्ता सक्रिय हैं और मतदाता आधार वफादार है। यह एक ऐसी स्थिति है जहां किसी भी सरकार को AIMIM के प्रभाव को मान्यता देना मजबूरी नहीं, बल्कि राजनीतिक चतुराई बन जाती है।

Impressive presence : गुलामी और हिस्सेदारी में फर्क देखिए तेलंगाना की सियासत में AIMIM की प्रभावशाली मौजूदगी ?
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रेवंत रेड्डी और ओवैसी भाइयों का साझा मंच

तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी द्वारा ओवैसी भाइयों को एक सरकारी मंच पर बराबरी से बैठाना एक मामूली घटना नहीं है। भारतीय राजनीति में यह प्रतीकात्मकता गहरे संदेश लिए होती है। यह न केवल AIMIM की राजनीतिक ताकत का सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया जाना है, बल्कि यह कांग्रेस की ओर से एक रणनीतिक संकेत भी है कि वह भविष्य में AIMIM के साथ बेहतर संबंध बनाए रखना चाहती है।

यह किसी गुलामी का नहीं, बल्कि हिस्सेदारी का उदाहरण है। अगर कोई सरकार किसी पार्टी को सम्मान देती है और मंच पर जगह देती है, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह दबाव में है, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि वह उस पार्टी की ताकत और उसके प्रभाव को समझती है और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने की मंशा रखती है।

AIMIM की जमीनी पकड़: कुर्सी से बड़ी ताकत

AIMIM की असली ताकत संसद या विधानसभा की सीटों से नहीं, बल्कि उसकी जमीनी पकड़ से आती है। पार्टी का ध्यान उन क्षेत्रों पर है जहां वह दशकों से सामाजिक, धार्मिक और स्थानीय मुद्दों पर सक्रिय रही है। चाहे मोहल्ले का सीवर लाइन का मसला हो या किसी गरीब परिवार को न्याय दिलाने की लड़ाई — AIMIM का कार्यकर्ता हर जगह मौजूद रहता है।

यह सामाजिक भागीदारी और जमीनी जुड़ाव ही AIMIM को ‘ताकतवर विपक्ष’ नहीं, बल्कि ‘शक्तिशाली विकल्प’ के रूप में पेश करता है। और यही कारण है कि AIMIM को सत्ता में न होते हुए भी बराबरी का सम्मान मिलता है।

सवाल: कांग्रेस को बहुमत होने पर भी क्यों अहमियत?

यह सवाल जायज़ है कि जब कांग्रेस को हैदराबाद में स्पष्ट बहुमत मिला हुआ है, तो वह AIMIM को क्यों अहमियत दे रही है? इसका उत्तर सादा है: राजनीतिक दूरदर्शिता। राजनीति केवल आज की स्थिति नहीं, बल्कि आने वाले कल की तैयारी का नाम है। कांग्रेस यह भलीभांति जानती है कि अगर उसे मुस्लिम समुदाय और शहरी क्षेत्रों में स्थायी आधार बनाना है, तो AIMIM जैसे प्रभावशाली दल से भिड़ने की जगह सामंजस्य बेहतर विकल्प हो सकता है।

इसके अलावा, AIMIM की भूमिका राष्ट्रीय राजनीति में भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। असदुद्दीन ओवैसी न केवल तेलंगाना, बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी अपनी पार्टी का विस्तार कर चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस AIMIM से टकराव के बजाय सह-अस्तित्व का रास्ता अपनाकर ज्यादा फायदे में रह सकती है।

राजनीति में सम्मान और ताकत: कुर्सी से परे

भारतीय राजनीति में अक्सर यह भ्रम होता है कि ताकत सिर्फ सरकार में होने से मिलती है। लेकिन AIMIM का उदाहरण बताता है कि ताकत समाज में जगह बनाने से आती है, लोगों के बीच काम करने से आती है, और ज़मीन से जुड़कर अपने अधिकारों की बात करने से आती है।

यह वह स्थिति है जब कोई पार्टी भले ही सत्ता में न हो, लेकिन सरकार उसके बिना कोई अहम निर्णय नहीं ले सकती। यह गुलामी नहीं, सच्ची हिस्सेदारी है — वो भी बिना सत्ता की लोभ में पड़े।

निष्कर्ष: AIMIM का मॉडल — ज़मीन से सत्ता तक

तेलंगाना में AIMIM ने यह साबित किया है कि एक पार्टी यदि जनता के बीच लगातार संवाद बनाए रखे, उनकी समस्याओं के समाधान में लगे रहे और सामाजिक स्तर पर सक्रियता दिखाए — तो वह सत्ता में न होते हुए भी प्रभावशाली बन सकती है। रेवंत रेड्डी द्वारा ओवैसी भाइयों को सार्वजनिक मंच पर सम्मान देना उसी प्रभाव की स्वीकृति है।

यह एक स्पष्ट संकेत है कि भारतीय राजनीति अब केवल संख्या की नहीं, बल्कि प्रभाव और संबंधों की भी राजनीति बन चुकी है। AIMIM आज उस जगह पर है जहां वह सत्ता से बाहर होते हुए भी सत्ता के समीकरणों का हिस्सा बनी हुई है — और यही राजनीति की असली सफलता है।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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