Birth of Ganapati : वेद-पुराणों में गणपति के जन्म और स्वरूप की विविध कथाएं उनके चरित्र दर्शाती हैं

।।श्री हरि: ।।
श्रीमन्नमहागणपति जी महाराज श्री के संदर्भ में पुराणों और वेदों में गणपति केपुराणों और वेदों में गणपति के जन्म और उनके स्वरूप को लेकर कई अलग-अलग कथाएं मिलती हैं, जो उनके विविध और विशिष्ट चरित्र को दर्शाती हैं।
वेदों में गणपति
वेदों में गणपति को ‘गणपति’ या ‘ब्रह्मणस्पति’ के नाम से जाना जाता है। ऋग्वेद में एक मंत्र है:
“गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणाम् ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीदसादनम् ।।”
(ऋग्वेद 2.23.1)
इस मंत्र में ब्रह्मणस्पति (गणपति) को ‘गणानां गणपतिं’ (गणों के अधिपति), ‘कविं कवीनाम्’ (कवियों में कवि) और ‘ज्येष्ठराजं ब्रह्मणाम्’ (मंत्रों के अधिपति) कहा गया है। हालांकि, यह स्पष्ट रूप से उनके जन्म की कथा नहीं बताता, बल्कि उनके महत्व और स्थान को दर्शाता है। वेदों में गणेश का स्वरूप पौराणिक कथाओं जैसा नहीं है, बल्कि वे एक दिव्य शक्ति के रूप में वर्णित हैं।
पुराणों में गणपति जन्म की कथाएं
विभिन्न पुराणों में गणपति के जन्म की कई रोचक और अलग-अलग कथाएं मिलती हैं। सबसे प्रचलित और प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं:
1. शिव पुराण की कथा (उबटन से जन्म)
यह गणेश जी के जन्म की सबसे प्रसिद्ध कथा है।
एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। उन्होंने द्वार पर किसी को पहरा देने के लिए नहीं पाया।
इसलिए उन्होंने अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण फूँक दिए।
उन्होंने उस बालक को निर्देश दिया कि जब तक वह स्नान कर रही हैं, तब तक किसी को भी भीतर न आने दे।
कुछ समय बाद भगवान शिव आए और भीतर जाने लगे। बालक ने उन्हें रोका।
शिव ने बालक को समझाया कि वे पार्वती के पति हैं, लेकिन बालक ने आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें अंदर नहीं जाने दिया।
इस पर क्रोधित होकर शिव ने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
जब पार्वती को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित और दुखी हुईं।
पार्वती का क्रोध शांत करने के लिए शिव ने अपने गणों को निर्देश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाएं और सबसे पहले जो भी प्राणी मिले, उसका सिर ले आएं, जिसकी माता उसकी ओर पीठ करके सो रही हो।
गणों को एक हाथी का बच्चा मिला, जिसकी माता उसी स्थिति में सो रही थी। वे उस हाथी का सिर ले आए।
शिव ने उस हाथी के सिर को बालक के धड़ से जोड़ा और उसे पुनः जीवित कर दिया।
इसके बाद सभी देवताओं ने बालक को प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया और वे गणेश, गजानन, विनायक और गणपति कहलाए।
2. ब्रह्म वैवर्त पुराण की कथा (श्री कृष्ण के अंश से जन्म)
यह कथा शिव पुराण की कथा से भिन्न है।
इस कथा के अनुसार, माता पार्वती ने एक पुत्र की प्राप्ति के लिए एक वर्ष तक पुण्यक व्रत किया।
इससे प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में प्रकट होंगे।
एक दिन जब पार्वती स्नान कर रही थीं, तब बालक गणेश उनके पास प्रकट हुए।
भगवान शिव ने इस बालक के दर्शन के लिए सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शनिदेव अपनी वक्र दृष्टि के कारण बालक को देखने से मना कर रहे थे।

पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर शनिदेव ने जैसे ही बालक की ओर देखा, उसकी वक्र दृष्टि से बालक का सिर धड़ से अलग होकर गोलोक चला गया।
तब भगवान विष्णु ने गरुड़ पर बैठकर हाथी का सिर लेकर आए और उसे बालक के धड़ से जोड़ दिया। इस प्रकार गणेश जी का नाम गजानन पड़ा।
3. वराह पुराण की कथा (शिव द्वारा निर्माण)
इस कथा के अनुसार, देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे एक ऐसे देवता का निर्माण करें, जो उनके कार्यों में आने वाली बाधाओं को दूर करे।
भगवान शिव ने पंचतत्वों से मिलकर एक ऐसे विशिष्ट बालक का निर्माण किया जो अत्यंत रूपवान था।
उस बालक के रूप को देखकर सभी देवता भयभीत हो गए कि कहीं वह सभी का ध्यान अपनी ओर न खींच ले।
देवताओं के भय को जानकर शिवजी ने स्वयं बालक के पेट को बड़ा कर दिया और उसके सिर को गज का रूप दे दिया। इस प्रकार वे गणेश कहलाए।
4. लिंग पुराण की कथा (वरदान से जन्म)
इस कथा में बताया गया है कि देवताओं ने भगवान शिव की उपासना की और उनसे सुरद्रोही दानवों के कार्यों में विघ्न उत्पन्न करने का वर मांगा।
शिव ने ‘तथास्तु’ कहकर देवताओं को संतुष्ट किया और समय आने पर गणपति का प्राकट्य हुआ।
उनका मुख हाथी के समान था और वे त्रिशूल और पाश धारण किए हुए थे। इस प्रकार वे विघ्नहर्ता और विघ्नकर्ता दोनों के रूप में जाने गए।
5. महाभारत की कथा (वेदव्यास और लेखन कार्य)
यह कथा गणेश जी के जन्म की बात नहीं करती, बल्कि उनके स्वरूप और कार्य को दर्शाती है।
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना करने का निर्णय लिया, लेकिन उन्हें एक ऐसे लेखक की आवश्यकता थी जो उनके मुख से निकलने वाले श्लोकों को बिना रुके लिख सके।
उन्होंने गणेश जी से प्रार्थना की। गणेश जी ने एक शर्त रखी कि वे बिना रुके लिखेंगे, और वेदव्यास भी बिना रुके बोलेंगे।
इस प्रकार, गणेश जी ने महाभारत का विशाल महाकाव्य लिखा। इस दौरान गणेश जी के शरीर का तापमान बढ़ने लगा, जिसे शांत करने के लिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप लगाया।
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जब लेखन कार्य समाप्त हुआ और लेप सूख गया, तो गणेश जी का शरीर अकड़ गया। इसलिए उनका एक नाम ‘पार्थिव गणेश’ भी पड़ा। जन्म और उनके स्वरूप को लेकर कई अलग-अलग कथाएं मिलती हैं, जो उनके विविध और विशिष्ट चरित्र को दर्शाती हैं।
*वेदों में गणपति
वेदों में गणपति को ‘गणपति’ या ‘ब्रह्मणस्पति’ के नाम से जाना जाता है। *ऋग्वेद में एक मंत्र है:
“गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।*
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणाम् ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीदसादनम् ।।* ”
(ऋग्वेद 2.23.1)*
इस मंत्र में ब्रह्मणस्पति (गणपति) को ‘गणानां गणपतिं’ (गणों के अधिपति), ‘कविं कवीनाम्’ (कवियों में कवि) और ‘ज्येष्ठराजं ब्रह्मणाम्’ (मंत्रों के अधिपति) कहा गया है। हालांकि, यह स्पष्ट रूप से उनके जन्म की कथा नहीं बताता, बल्कि उनके महत्व और स्थान को दर्शाता है। वेदों में गणेश का स्वरूप पौराणिक कथाओं जैसा नहीं है, बल्कि वे एक दिव्य शक्ति के रूप में वर्णित हैं।
पुराणों में गणपति जन्म की कथाएं
विभिन्न पुराणों में गणपति के जन्म की कई रोचक और अलग-अलग कथाएं मिलती हैं। सबसे प्रचलित और प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं:
1. शिव पुराण की कथा (उबटन से जन्म)
यह गणेश जी के जन्म की सबसे प्रसिद्ध कथा है।
एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। उन्होंने द्वार पर किसी को पहरा देने के लिए नहीं पाया।
इसलिए उन्होंने अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण फूँक दिए।
उन्होंने उस बालक को निर्देश दिया कि जब तक वह स्नान कर रही हैं, तब तक किसी को भी भीतर न आने दे।
कुछ समय बाद भगवान शिव आए और भीतर जाने लगे। बालक ने उन्हें रोका।
शिव ने बालक को समझाया कि वे पार्वती के पति हैं, लेकिन बालक ने आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें अंदर नहीं जाने दिया।
इस पर क्रोधित होकर शिव ने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
जब पार्वती को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित और दुखी हुईं।
पार्वती का क्रोध शांत करने के लिए शिव ने अपने गणों को निर्देश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाएं और सबसे पहले जो भी प्राणी मिले, उसका सिर ले आएं, जिसकी माता उसकी ओर पीठ करके सो रही हो।
गणों को एक हाथी का बच्चा मिला, जिसकी माता उसी स्थिति में सो रही थी। वे उस हाथी का सिर ले आए।
शिव ने उस हाथी के सिर को बालक के धड़ से जोड़ा और उसे पुनः जीवित कर दिया।
इसके बाद सभी देवताओं ने बालक को प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया और वे गणेश, गजानन, विनायक और गणपति कहलाए।
2. ब्रह्म वैवर्त पुराण की कथा (श्री कृष्ण के अंश से जन्म)
यह कथा शिव पुराण की कथा से भिन्न है।
इस कथा के अनुसार, माता पार्वती ने एक पुत्र की प्राप्ति के लिए एक वर्ष तक पुण्यक व्रत किया।
इससे प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में प्रकट होंगे।
एक दिन जब पार्वती स्नान कर रही थीं, तब बालक गणेश उनके पास प्रकट हुए।
भगवान शिव ने इस बालक के दर्शन के लिए सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शनिदेव अपनी वक्र दृष्टि के कारण बालक को देखने से मना कर रहे थे।

पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर शनिदेव ने जैसे ही बालक की ओर देखा, उसकी वक्र दृष्टि से बालक का सिर धड़ से अलग होकर गोलोक चला गया।
तब भगवान विष्णु ने गरुड़ पर बैठकर हाथी का सिर लेकर आए और उसे बालक के धड़ से जोड़ दिया। इस प्रकार गणेश जी का नाम गजानन पड़ा।
3. वराह पुराण की कथा (शिव द्वारा निर्माण)
इस कथा के अनुसार, देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे एक ऐसे देवता का निर्माण करें, जो उनके कार्यों में आने वाली बाधाओं को दूर करे।
भगवान शिव ने पंचतत्वों से मिलकर एक ऐसे विशिष्ट बालक का निर्माण किया जो अत्यंत रूपवान था।
उस बालक के रूप को देखकर सभी देवता भयभीत हो गए कि कहीं वह सभी का ध्यान अपनी ओर न खींच ले।
देवताओं के भय को जानकर शिवजी ने स्वयं बालक के पेट को बड़ा कर दिया और उसके सिर को गज का रूप दे दिया। इस प्रकार वे गणेश कहलाए।
4. लिंग पुराण की कथा (वरदान से जन्म)
इस कथा में बताया गया है कि देवताओं ने भगवान शिव की उपासना की और उनसे सुरद्रोही दानवों के कार्यों में विघ्न उत्पन्न करने का वर मांगा।
शिव ने ‘तथास्तु’ कहकर देवताओं को संतुष्ट किया और समय आने पर गणपति का प्राकट्य हुआ।
उनका मुख हाथी के समान था और वे त्रिशूल और पाश धारण किए हुए थे। इस प्रकार वे विघ्नहर्ता और विघ्नकर्ता दोनों के रूप में जाने गए।
5. महाभारत की कथा (वेदव्यास और लेखन कार्य)
यह कथा गणेश जी के जन्म की बात नहीं करती, बल्कि उनके स्वरूप और कार्य को दर्शाती है।
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना करने का निर्णय लिया, लेकिन उन्हें एक ऐसे लेखक की आवश्यकता थी जो उनके मुख से निकलने वाले श्लोकों को बिना रुके लिख सके।
उन्होंने गणेश जी से प्रार्थना की। गणेश जी ने एक शर्त रखी कि वे बिना रुके लिखेंगे, और वेदव्यास भी बिना रुके बोलेंगे।
इस प्रकार, गणेश जी ने महाभारत का विशाल महाकाव्य लिखा। इस दौरान गणेश जी के शरीर का तापमान बढ़ने लगा, जिसे शांत करने के लिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप लगाया।
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जब लेखन कार्य समाप्त हुआ और लेप सूख गया, तो गणेश जी का शरीर अकड़ गया। इसलिए उनका एक नाम ‘पार्थिव गणेश’ भी पड़ा।
संकलन ;–
सच्चिदानंद चैतन्य महादेव
अ भा धर्मसंघ
धर्म सम्राट स्वामी श्रीकरपात्री कल्याण संघ सदगुरू धाम
मां रेवा फाउंडेशन
मां रेवा उत्तर तट
सप्तऋषि श्री विद्या गुरु घाट
डहरिया बड़वाह श्रीक्षेत्र–ओंकारेश्वर
खरगौन मध्य प्रदेश 451115
हर हर महादेव
मात श्री नर्मदे हर जय जगन्नाथ महाप्रभु श्री जी
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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