Innovation and Ecology : विकास का नया सूत्र , इंसान, इनोवेशन और इकोलॉजी

जब मशीनें सोचने लगी हैं और प्रकृति बार-बार चेतावनी दे रही है, तब यह सवाल अनिवार्य हो गया है—हम किस दिशा में जा रहे हैं? यह अब केवल चिंतन का विषय नहीं, बल्कि नीति और नेतृत्व की कसौटी बन चुका है। आज जब समाज तकनीकी क्रांति और पारिस्थितिक असंतुलन के दो विपरीत छोरों के बीच खड़ा है। तब एक ऐसा विकास मॉडल जरूरी हो गया है, जिसमें इंसान, इनोवेशन और इकोलॉज तीनों का संतुलन हो। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी है—वह हमारे निर्णयों को प्रभावित कर रही है, हमारी प्राथमिकताएं तय कर रही है, और हमारी सोच को ढाल रही है। इस दौर में हमें ऐसे नेतृत्व की ज़रूरत है जो तकनीक के चमत्कारों को संवेदनशीलता और दूरदृष्टि के साथ दिशा दे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘AI एक्शन समिट’ में जो बात कही थी, वह इसी सोच की पुष्टि करती है—“टेक्नोलॉजी का लोकतंत्रीकरण होना चाहिए। हमें जन-केंद्रित एप्लिकेशन बनाने चाहिए। साथ ही हमें साइबर सुरक्षा, दुष्प्रचार और डीपफेक जैसी चुनौतियों का समाधान भी करना होगा।” राज्य सरकारें इसी दृष्टिकोण को अपनाते हुए तकनीक को एक उपकरण नहीं, बल्कि जन-कल्याण का साझेदार बना रही है। डिजिटल नवाचार का उपयोग अब पारदर्शिता, सहभागिता और संवेदनशील सेवा-प्रणाली के रूप में सामने आ रहा है।भारत का एआई युग : आत्मनिर्भरता की नींव
भारत आज एआई और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की मजबूत नींव रख रहा है। 2024 में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित ‘ इसका प्रमाण है। इस मिशन के तहत ₹10,300 करोड़ के निवेश से देश में एक विश्वस्तरीय एआई कंप्यूटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य है—18,693 GPU से लैस साझा कंप्यूटिंग क्षमता तैयार करना, जो भारत को वैश्विक एआई शक्तियों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर देगी। यह सिस्टम ओपन-सोर्स एआई मॉडल DeepSeek से 9 गुना अधिक सक्षम होगा और ChatGPT जैसी प्रणालियों की दो-तिहाई शक्ति तक पहुंचेगा। यानी यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, भारत के डिजिटल आत्मसम्मान की घोषणा है।
राज्यों का दृष्टिकोण : तकनीक, लेकिन इंसान के लिए-
राज्य सरकारों की सोच है- तकनीक शत्रु नहीं है, उसका उपयोग मानव कल्याण होना चाहिए। ई-गवर्नेंस से लेकर डिजिटल शिक्षा, एआई आधारित स्वास्थ्य सेवाओं और नागरिक सुविधा केंद्रों तक—हर नीति के केंद्र में ‘इंसान’ है, सिस्टम नहीं। राज्यों में तकनीक को ‘डिजिटल एक्सेस’ के बजाय ‘डिजिटल एम्पावरमेंट’ के रूप में देखा जा रहा है। और यही बदलाव राज्यों को एक सॉफ्ट-टेक्नोलॉजिकल स्टेट बना रहा है।
प्रकृति की पुकार : विकास का सही संतुलन
जलवायु परिवर्तन अब एक वैचारिक विमर्श नहीं, व्यवहारिक हकीकत बन चुका है। बाढ़, सूखा, ग्लेशियरों का पिघलना और गर्मियों की क्रूरता… ये सभी संकेत हैं कि प्रकृति हमसे संवाद कर रही है। राज्य सरकारें इस संवाद को समझ रही है। उसके लिए विकास का अर्थ केवल अवसंरचना का विस्तार नहीं, बल्कि इकोलॉजिकल साझेदारी है। राज्यों में चल रहे हरित अभियान, जल संरक्षण योजनाएं, सौर ऊर्जा प्रोत्साहन और ईको-टूरिज्म पहलें इस सोच को ज़मीन पर उतार रहे हैं। राजस्थान अब केवल एक रेगिस्तान नहीं, बल्कि एक हरित चेतना वाला राज्य बन रहा है।
डिजिटल युग में मानवीय जुड़ाव की जरूरत
जहाँ तकनीक ने लोगों को एक-दूसरे से जोड़ा है, वहीं यह आंतरिक अकेलेपन, तनाव और मानसिक असंतुलन की नई चुनौतियां भी लेकर आई है। राज्य सरकारें इसे केवल एक सामाजिक या तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक संकट के रूप में देखती है। इसीलिए युवा नीति के तहत मानसिक स्वास्थ्य अभियान, डिजिटल डिटॉक्स क्लासेस और संस्कार संवाद जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए हैं—ताकि युवा स्मार्टफोन के स्क्रीन से आगे सोच सकें और अपनी जड़ों से जुड़े रहें। आज सवाल यह नहीं कि हमें तकनीक से डरना चाहिए या नहीं, बल्कि यह है कि हम तकनीक को किस नैतिक दायरे में संचालित कर सकते हैं। राजस्थान इस नई चेतना को अपने नीति-निर्माण में शामिल कर रहा है।
एआई नीति, डिजिटल नैतिकता पर संवाद, साइबर संस्कार और वैश्विक स्तर पर संयम के सिद्धांतों की पैरवी—इन सभी से राजस्थान एक डिजिटल नेतृत्व मॉडल की ओर बढ़ रहा है, जहाँ तकनीक की ताक़त पर नियंत्रण और इंसानियत को प्राथमिकता है।
दुनिया अनिश्चितताओं और बदलावों के बीच खड़ी है। जहाँ नेतृत्व केवल प्रशासन नहीं, बल्कि दिशा और दृष्टि देता है। वहीं फिल्म Ex Machina में नाथन का यह संवाद मानवीय अस्तित्व पर एक तीखा व्यंग्य है—”एक दिन, एआई हमें उसी तरह देखेंगे जैसे हम अफ्रीका में जीवाश्म कंकालों को देखते हैं; एक ईमानदार वानर, जो कच्ची भाषा और औजारों के साथ धूल में रह रहा है, विलुप्त होने के लिए तैयार है।” यह पंक्ति संकेत देती है कि भविष्य में एआई हमारी सीमित बुद्धि और क्षमताओं को एक बीते युग की वस्तु की तरह देखेंगे, और हम अपनी ही रचना के सामने अप्रासंगिक हो जाएंगे।
सुशासन का मूल मंत्र है : “विकास केवल ऊंचाई तक पहुंचने का नाम नहीं, उसमें गहराई भी होनी चाहिए—संवेदना की, जिम्मेदारी की और भावी पीढ़ियों के प्रति वचनबद्धता की।” राज्य सरकारें अब चौराहे पर खड़ी नहीं है – राज्यों ने स्पष्ट दिशा पकड़ ली है।यहाँ तकनीक सेवा का माध्यम है, प्रकृति साझेदार है, और आम लोग नीति के सह-निर्माता बनते जा रहे हैं। यह एक ऐसा भविष्य है जहाँ तरक्की का पैमाना केवल रफ्तार नहीं, बल्कि सही दिशा और इंसानियत होगी। छोटा मोटा परिवर्तन किया है बाक़ी सब भूल ठीक है
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News Editor- (Jyoti Parjapati)