Not adopting an attitude : ऑपरेशन सिन्दूर पर भी काँग्रेस जिम्मेदार रवैया नहीं अपना रही

ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार और विपक्ष में घमासान
- नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार और विपक्ष में घमासान जारी है। नौबत आखिर संसद तक आ गई। लोकसभा में अब नरेंद्र मोदी सरकार विपक्ष के एक-एक सवालों के जवाब देगी। कांग्रेस की अगुवाई में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी की गई। मगर, कांग्रेस के एक दिग्गज और विद्वान नेता शशि थरूर को इस मामले में संसद में बोलने तक का मौका नहीं दिया गया। कांग्रेस की वक्ताओं की लिस्ट में थरूर का नाम ही नहीं रखा गया। कुछ तो यहां तक कह रहे हैं कि उन पर इतना दबाव था कि उन्होंने खुद ही सरकार पर लोकसभा में हमला करने से किनारा कर लिया। खैर जो भी मसला हो, मगर इतना तो तय है कि कांग्रेस में कहीं कुछ तो गड़बड़ है, जो वह गांधी परिवार से इतर अपनी ही पार्टी के दिग्गज और पॉपुलर नेताओं को कमतर करने में लग जाती है।
सरकार ने माना था विद्वान, विदेश में रखा था भारत का मान
- केरल की तिरुवनंतपुरम सीट से सांसद शशि थरूर इतने विद्वान माने जाते हैं कि कोई दूसरा सांसद शायद ही उनकी विद्वता पर सवाल उठा सके। नरेंद्र मोदी सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के मामले में विदेश भेजे जाने वाले कई प्रतिनिधिमंडल में से एक की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी। थरूर ने अमेरिका समेत कई देशों में भारत का पक्ष बेहद सावधानी से रखा था।
ऑपरेशन सिंदूर पर अमेरिका में जवाब देकर जीता दिल
- जब थरूर अमेरिका गए तो उनसे यूएस नेशनल प्रेस क्लब में एक सवाल पूछा गया था कि भारतीय सेना के पाकिस्तान के खिलाफ इस कार्रवाई को ऑपरेशन सिंदूर का नाम क्यों दिया गया। इस पर थरूर ने बेहतरीन जवाब दिया था। उन्होंने कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम बहुत सोच-समझकर रखा गया है। उन्होंने कहा कि यह कोई संयोग नहीं है कि सिंदूर का रंग लाल है, जो खून के रंग से बहुत अलग नहीं है और कई मायनों में एक हिंदी मुहावरा है कि ‘खून का बदला खून’। यहां यह ‘सिंदूर का बदला खून’ होगा।
कांग्रेस की लिस्ट में इन नेताओं का नाम चर्चा में, थरूर गायब
- लोकसभा में कांग्रेस की ओर से चर्चा में हिस्सा लेने के लिए गौरव गोगोई, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, दीपेंद्र हुड्डा, प्रणीति शिंदे, सप्तगिरी उलाका और बृजेंद्र ओला शामिल हैं। मगर, इस लिस्ट में थरूर का नाम बाहर रखा गया। ऐसे में क्या कांग्रेस थरूर से डर गई है या उन्हें सरकार का इस मामले में समर्थन के लिए एक तरह से सजा दी गई है।
थरूर अपनी ही पार्टी के निशाने पर आ गए थे
- जब थरूर ने ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन किया था तो उस वक्त जयराम रमेश समेत कई दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को उनका यह कदम रास नहीं आया था। कई लोगों ने तो उन्होंने बीजेपी का चमचा करार दिया था तो कुछ ने उन्हें मोदी का प्रवक्ता करार दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या किसी राष्ट्रहित के मसले पर सरकार का समर्थन करना पार्टी लाइन से बाहर जाना है। ऐसा तो अमेरिका या ब्रिटेन में भी नहीं होता है। क्या यही स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है?
कांग्रेस आलाकमान को क्या दिखाई नहीं देता
- सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को क्या यह बात समझ नहीं आती है कि उनकी पार्टी में चंद दिग्गज नेता ही हैं, जो किसी विषय पर गंभीर चर्चा कर सकते हैं और जिनके पास अच्छी जानकारी है। ऐसे में क्या उन्हें यह नहीं समझ आता है कि अगर पार्टी का यही रवैया रहा और दिग्गज नेताओं की बेकदरी ऐसे ही जारी रही तो पार्टी थरूर जैसे शानदार नेताओं को खो सकती है। बीच में ऐसी खबरें भी उठी थीं कि थरूर बीजेपी में जा सकते हैं।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)