shoulders bowed with urn : सास-ससुर के लिए कांवड़ लेकर आई शबनम,गंगाजल कलश से झुके कंधे ?

सास-ससुर के लिए कांवड़ लेकर आई शबनम,गंगाजल कलश से झुके कंधे

shoulders bowed with urn : सास-ससुर के लिए कांवड़ लेकर आई शबनम,गंगाजल कलश से झुके कंधे ?
shoulders bowed with urn : सास-ससुर के लिए कांवड़ लेकर आई शबनम,गंगाजल कलश से झुके कंधे ?

हरिद्वार से गंगाजल लेकर सास-ससुर के लिए आई शबनम

  • मुजफ्फरनगर:- की गलियों में जब एक मुस्लिम महिला शबनम कांवड़ लेकर पहुंची, तो हर कोई हैरान था। लेकिन जब लोगों ने उसकी कहानी सुनी, तो वह प्रेरणा बन गई। शबनम गाजियाबाद से हरिद्वार पहुंची और 21 लीटर गंगाजल लेकर कांवड़ यात्रा पूरी की। यह कांवड़ किसी साधारण धार्मिक परंपरा का हिस्सा नहीं थी, बल्कि उसने यह कांवड़ अपने सास-ससुर के सम्मान और श्रद्धा में उठाई थी। कांवड़ उठाने का उद्देश्य धार्मिक था, लेकिन उससे भी बढ़कर यह एक आत्मीय रिश्ते का प्रतीक बन गया।
  • शबनम ने बताया कि यह यात्रा उसके लिए बेहद भावनात्मक थी। वह हरिद्वार से गंगाजल लाने के लिए अपने पति पवन के साथ 12 जुलाई को निकली थी। रास्ता लंबा था, कांवड़ भारी थी, लेकिन श्रद्धा और प्रेम के आगे शारीरिक थकान ने हार मान ली। उसका कहना है कि यह गंगाजल वह अपने सास-ससुर मंजू देवी और अशोक कुमार को समर्पित करती है, जिन्होंने उसे बेटी जैसा स्नेह दिया।

2. पति की मृत्यु के बाद मिला सनातन धर्म और नए रिश्तों का सहारा

  • शबनम की कहानी सिर्फ एक धार्मिक परिवर्तन की नहीं है, बल्कि यह उस मानवीयता की भी कहानी है जो मजहब से ऊपर होती है। शबनम बताती हैं कि उनके पहले पति का इंतकाल हो गया था, और उस मुश्किल समय में कोई साथ देने वाला नहीं था। जीवन एक गहरे अंधकार में डूब गया था। ऐसे समय में पवन नाम के एक युवक ने न सिर्फ उन्हें सहारा दिया, बल्कि जीवनसाथी बनकर उन्हें एक नई पहचान और जीवन का उद्देश्य भी दिया।
  • शबनम ने पवन से विवाह के बाद सनातन धर्म को अपनाया। उन्होंने कहा कि यह कोई मजबूरी नहीं थी, बल्कि एक सहज और आत्मीय निर्णय था। उन्हें भोलेनाथ की भक्ति में शांति और जीवन का मार्गदर्शन मिला। उनका यह भी कहना है कि सनातन धर्म ने उन्हें अपनाया, सम्मान दिया और जीवन में फिर से विश्वास और ऊर्जा भर दी। यही कारण है कि आज वह न सिर्फ सनातन धर्म का पालन कर रही हैं, बल्कि गंगाजल जैसी पवित्र कांवड़ उठाकर अपने बुजुर्गों की सेवा में समर्पित हैं।
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3. सास-ससुर के प्रति आस्था और सेवा का भाव बना प्रेरणा

  • शबनम का यह कदम आज के समाज में रिश्तों की गरिमा को नया आयाम देता है। जहां कई बार बहू और सास-ससुर के रिश्तों में तनाव की खबरें सामने आती हैं, वहीं शबनम ने अपनी आस्था और समर्पण से यह साबित कर दिया कि सास-ससुर भी माता-पिता जैसे हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि उनके सास-ससुर ने उन्हें कभी बहू नहीं समझा, हमेशा बेटी जैसा प्रेम और सम्मान दिया। उसी स्नेह और आभार में उन्होंने यह कांवड़ यात्रा सास मंजू देवी और ससुर अशोक कुमार को समर्पित की है।
  • शबनम कहती हैं कि अब उनका जीवन भोलेनाथ की भक्ति और अपने परिवार की सेवा को समर्पित है। वह चाहती हैं कि बाकी लोग भी रिश्तों को मजहब और पहचान से ऊपर उठकर देखें। उनकी यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह उस विश्वास, प्रेम और समर्पण की मिसाल है जो इंसानियत की नींव है।

  • निष्कर्ष:
    शबनम की यह कहानी समाज के लिए एक प्रेरणा है—धर्म और रिश्तों को जोड़ने वाली एक मजबूत डोर। जहां धर्मांतरण अक्सर विवाद का कारण बनता है, वहीं शबनम ने इसे प्रेम, विश्वास और समर्पण से एक सकारात्मक पहचान में बदल दिया है। उनकी कांवड़ यात्रा न केवल धार्मिक आस्था की प्रतीक है, बल्कि यह बताती है कि परिवार और रिश्ते ही असली पूजा हैं।

 

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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