Stay of arrest : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 498A में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक ?

Stay of arrest : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 498A में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक

Stay of arrest : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 498A में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक ?
Stay of arrest : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 498A में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक ?

नई दिल्ली, 24 जुलाई 2025:- सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (दहेज उत्पीड़न) के तहत दर्ज मामलों में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। यह फैसला उन हजारों परिवारों के लिए राहत की सांस लेकर आया है, जो इस कानून के कथित दुरुपयोग की वजह से कानूनी और सामाजिक समस्याओं का सामना कर रहे थे। अदालत ने साफ कहा कि अब FIR दर्ज होते ही पुलिस किसी की भी तुरंत गिरफ्तारी नहीं करेगी, बल्कि पहले जांच और सुलह की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

अब दो महीने तक नहीं होगी गिरफ्तारी, पहले होगी परिवार कल्याण समिति की रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अब 498A के तहत दर्ज मामलों में गिरफ्तारी तभी हो सकेगी जब परिवार कल्याण समिति (Family Welfare Committee) द्वारा मामले की जांच कर रिपोर्ट दी जाए। FIR दर्ज होने के बाद कम से कम दो महीने का समय इस प्रक्रिया के लिए तय किया गया है, जिसके दौरान गिरफ्तारी पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा।

यह समिति पति-पत्नी और संबंधित पक्षों को बुलाकर मामले को समझेगी और सुलह की संभावनाओं को तलाशेगी। यदि समिति को लगे कि मामला झूठा या द्वेषपूर्ण है, तो वह अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट करेगी कि किसी की गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है। वहीं, अगर मामला गंभीर है और सुलह की कोई संभावना नहीं है, तब ही समिति पुलिस या मजिस्ट्रेट को कार्रवाई के लिए अधिकृत करेगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों को मिली मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में जारी किए गए दिशा-निर्देशों को भी मान्यता दी है। हाईकोर्ट ने कहा था कि 498A जैसे कानून का उद्देश्य महिलाओं की रक्षा करना है, न कि निर्दोष लोगों को सज़ा दिलवाना। अदालत ने यह भी कहा कि अब तक ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां आपसी रंजिश के चलते झूठी FIR दर्ज कराई गई और पूरा परिवार बिना जांच के कानूनी पचड़ों में फंसा दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने इन तथ्यों को संज्ञान में लेते हुए माना कि इस कानून का दुरुपयोग समाज में असंतुलन पैदा कर रहा है और निर्दोष लोग मानसिक, आर्थिक और सामाजिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। इसलिए, अब परिवार कल्याण समिति की रिपोर्ट को आवश्यक बना दिया गया है ताकि दोनों पक्षों को न्याय मिल सके।

फैसले का समाज में स्वागत, कानूनी विशेषज्ञों ने बताया संतुलित कदम

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को समाज के विभिन्न वर्गों और कानूनी विशेषज्ञों ने संतुलित व समयानुकूल कदम बताया है। एक ओर जहां यह फैसला महिलाओं को न्याय दिलाने की प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं उत्पन्न करता, वहीं दूसरी ओर यह झूठे मामलों में फंसे निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को राहत देता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता इसे “न्यायिक विवेक का परिचायक” मानते हैं। उनके अनुसार, इस फैसले से न केवल पुलिस जांच में पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि परिवारों के टूटने की आशंका भी कम होगी। इससे न सिर्फ न्यायिक प्रणाली पर अनावश्यक दबाव घटेगा, बल्कि समाज में आपसी समझ और संवाद को भी बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था में एक नया अध्याय जोड़ता है। दहेज प्रथा के खिलाफ संघर्ष करते हुए भी न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया है कि कोई भी निर्दोष व्यक्ति कानून के दुरुपयोग का शिकार न हो। परिवार कल्याण समिति की भूमिका इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि यह न केवल तथ्यों की जांच करेगी, बल्कि दोनों पक्षों को एक मंच पर लाकर सुलह की संभावना भी तलाशेगी।

अब देखना यह होगा कि इस फैसले के बाद राज्य सरकारें और पुलिस प्रशासन किस प्रकार समिति के गठन और कार्यान्वयन को सुचारु रूप से संचालित करते हैं। एक बात स्पष्ट है – यह फैसला भारतीय समाज में विवाह-संस्थाओं की स्थिरता को बनाए रखने की दिशा में एक ठोस और सकारात्मक प्रयास है।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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