The Inside Story : इजराइल में बुरी तरह क्यों घिर गए बेंजामिन, नेतन्याहू के गिरते ग्राफ की इनसाइड स्टोरी

एक ऐसा देश जो दो साल से युद्ध की आग में जल रहा हो, और सड़कों पर लाखों लोग अपने ही प्रधानमंत्री के खिलाफ उतर आएं. वो प्रधानमंत्री जिसकी नीतियों ने पूरे गाज़ा को तबाह कर दिया है, जहां मासूम बच्चे मलबे में दबे हैं और लाखों घर उजड़ चुके हैं, फिर भी वो दावा करते हैं कि ये ‘अस्तित्व की लड़ाई’ है!
गाज़ा पर इज़राइली हमलों के खिलाफ दुनियाभर में प्रदर्शन तेज़ हो रहे हैं. इज़राइल और विदेशों में सड़कों पर लाखों लोग पीएम नेतन्याहू के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं.
क्या ये विरोध उनकी सत्ता को हिला देंगे? क्या उनकी गलत नीतियों ने इज़राइल को ही दुनिया में अलग-थलग कर दिया है? क्या इज़राइल वाकई अपने ‘अस्तित्व की लड़ाई’ लड़ रहा है, या ये एक राजनीतिक खेल बन चुका है?
अगस्त-सितंबर 2025 में, गाजा में बढ़ते हमलों के बीच दुनिया भर में, यहां तक कि इज़राइल में भी, नेतन्याहू के खिलाफ विरोध प्रदर्शन उफान पर हैं.
ये शायद ये विरोध प्रदर्शन नेतन्याहू के लिए अब एक खतरा बन गए हैं? शायद इसीलिए नेतन्याहू और उनके मंत्री अब इसे ‘इज़राइल के अस्तित्व की लड़ाई’ बता रहे हैं, लेकिन क्या ये सिर्फ इज़राइल का दावा है, या हकीकत कुछ और है? 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद शुरू हुए इज़राइल-हमास युद्ध ने गाजा को तबाह कर दिया है.
इज़राइली दूतावास के एक प्रवक्ता ने टाइम्स ऑफ इंडिया के 22 अगस्त 2025 के संपादकीय ‘हेल गाजा’ पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “किसी भी राष्ट्र को क्या करना चाहिए अगर उसके शहरों पर हमला हो, नागरिक मारे जाएं, महिलाओं का बलात्कार हो और बच्चों को बंधक बनाया जाए? इज़राइल के लिए ये कोई काल्पनिक सवाल नहीं, बल्कि हकीकत है.”
प्रवक्ता ने जोर दिया कि हमास एक आतंकवादी संगठन है जो इज़राइल के विनाश की मांग करता है, और इज़राइल सिर्फ आतंकवाद से लड़ रहा है, न कि किसी धर्म या लोगों से, लेकिन अगस्त-सितंबर 2025 में ये इज़राइली युद्ध एक नए मोड़ पर पहुंच गया, जहां इज़राइल के अंदर और बाहर विरोध की लहरें उठीं. आइए समझते हैं, कैसे मौजूदा हालात नेतन्याहू के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं.
इज़राइल का अस्तित्व संकट: हमास के खिलाफ लड़ाई
इज़राइल के नजरिए से ये युद्ध अस्तित्व का सवाल है. 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़राइल पर हमला किया, जिसमें 1,200 से ज्यादा इज़राइली मारे गए और 250 से ज्यादा बंधक बनाए गए. इज़राइल का कहना है कि हमास का चार्टर ही इज़राइल को नष्ट करने का एजेंडा रखता है. अगस्त 2025 में इज़राइल ने गाजा सिटी पर कब्जा करने की योजना को मंजूरी दी, जिसे ‘ऑपरेशन गिडियन चैरियट्स II’ नाम दिया गया.
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 10 अगस्त 2025 को कहा, “हमारे पास कोई चॉइस नहीं है, हमें हमास को पूरी तरह हराना होगा.” उन्होंने दावा किया कि ये योजना युद्ध को जल्दी खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है, भले ही ये गाजा सिटी और आसपास के इलाकों में विस्तार करे.
इज़राइली दूतावास प्रवक्ता ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “ये जमीन या सीमाओं का विवाद नहीं, बल्कि एक विचारधारा के खिलाफ अस्तित्व की लड़ाई है जो विनाश चाहती है.” नेतन्याहू ने 21 अगस्त 2025 को कहा, “गाजा को हमास से मुक्त करना होगा, और उसके बाद एक गैर-हमास, गैर-फिलिस्तीनी अथॉरिटी के तहत शांतिपूर्ण प्रशासन स्थापित होगा.”
लेकिन ये दावा विवादास्पद है. इज़राइल का कहना है कि युद्ध में 75% गाजा पर कंट्रोल हो चुका है, लेकिन हमास अभी भी मजबूत है.
विशेषज्ञों का मानना है कि हमास को पूरी तरह खत्म करना नामुमकिन है, क्योंकि ये एक विचारधारा है. फिर भी, इज़राइल का तर्क है कि आत्मरक्षा का अधिकार संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत है, और ये लड़ाई नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी है. मगर सवाल ये है कि क्या ये ‘अस्तित्व की लड़ाई’ अब इज़राइल के लिए ही खतरा बन रही है?
अगस्त-सितंबर 2025 में विरोध प्रदर्शन
पिछले दो महीनों से हालात नेतन्याहू के खिलाफ नज़र आने लगे हैं. इज़राइल में गाजा सिटी पर कब्जे की योजना के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो गया है. बीते 18 अगस्त को तेल अवीव में 400,000 से ज्यादा लोग सड़कों पर उतरे, जो युद्ध शुरू होने के बाद सबसे बड़ा प्रदर्शन था.
प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि नेतन्याहू फौरन युद्धविराम करें और बंधकों को आज़ाद कराएं. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बंधकों के परिवारों ने कहा, “जीवन बदले से पहले आता है.”
28 अगस्त को ‘डे ऑफ डिसरप्शन’ में हाईवे ब्लॉक कर दिए गए, और हजारों लोगों ने गाजा सिटी पर हमले रोकने की मांग की. गार्जियन की 26 अगस्त की रिपोर्ट में बताया गया कि इज़राइल में सेना के रिजर्विस्ट भी सेवा देने से इनकार कर रहे हैं. 88 साल की एक प्रदर्शनकारी, एडा गोरनी ने कहा, “बस हो गया, नेतन्याहू की नीतियां गलत हैं.”
दुनिया भर में भी इज़राइली हमलों का विरोध उफान पर है. लंदन, न्यूयॉर्क और पेरिस में फिलिस्तीन समर्थक सड़कों पर उतरे, जहां इज़राइल के हमलों को ‘जेनोसाइड’ कहा जा रहा है. यूरोपीय कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने 10 सितंबर 2025 को कहा, “ईयू इज़राइल को द्विपक्षीय सहायता रोक देगा.”
ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर ने 8 अगस्त को इज़राइली योजना को ‘गलत’ बताया. इज़राइल में भी, पूर्व पीएम एहुद ओल्मर्ट ने कहा, “युद्ध खत्म करना ही बंधकों को बचाएगा.” ये विरोध नेतन्याहू की सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं, क्योंकि सर्वे पोल्स दिखाते हैं कि ज्यादातर इज़राइली युद्धविराम चाहते हैं.

नेतन्याहू के लिए समस्याएं: आंतरिक और बाहरी दबाव
मौजूदा हालात नेतन्याहू के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर रहे हैं. इज़राइल में उनकी कोलिशन सरकार अल्ट्रा-राइट पार्टियों पर टिकी है, जो युद्ध जारी रखने की मांग करती हैं. लेकिन इज़राइल में बढ़ते विरोध से उनकी लोकप्रियता गिर रही है. 26 अगस्त 2025 को सिक्योरिटी कैबिनेट मीटिंग में युद्धविराम प्रस्ताव पर बहस हुई, लेकिन नेतन्याहू ने इसे खारिज कर दिया. विपक्षी नेता यैर गोलन ने कहा, “नेतन्याहू झूठ बोलते हैं.”
बंधकों के परिवार, जैसे एनाट एंग्रेस्ट ने 7 सितंबर 2025 को चेतावनी दी, “अगर कुछ होता है, तो आप भुगतान करेंगे – ये एक मां की कसम है” इज़राइली सरकार पर बाहरी दबाव भी बढ़ा है.
यूएन सिक्योरिटी काउंसिल की 10 अगस्त 2025 की इमरजेंसी मीटिंग में ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ने इज़राइली योजना को ‘अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन’ बताया.
यूएन के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा, “गाजा में भुखमरी शुद्ध और सरल है.” हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 18 अगस्त 2025 को कहा, “हमास को नष्ट करना ही बंधकों को वापस लाएगा.”
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि नेतन्याहू युद्ध को लंबा खींचकर सत्ता में बने रहना चाहते हैं. इज़राइल में रिजर्विस्टों यानी रिज़र्व सैनिकों का युद्ध से इनकार और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की धमकी से नेतन्याहू की सरकार अब लड़खड़ा रही है, तो क्या ये दबाव उन्हें युद्धविराम के लिए मजबूर करेंगे?
विशेषज्ञों और राजनेताओं के हालिया बयान
हाल के महीनों में कई प्रमुख आवाजें उठी हैं. नेतन्याहू ने 10 अगस्त 2025 को कहा, “अगर हम कुछ नहीं करेंगे, तो बंधकों को नहीं ला पाएंगे.” इन हालात में भी नेतन्याहू की हिम्मत देखिए कि उन्होंने वैश्विक आलोचना को ‘झूठों का अभियान’ बताया है.
इज़राइल के पूर्व सैन्य खुफिया अधिकारी माइकल मिल्स्टीन ने 20 अगस्त 2025 को कहा, “नेतन्याहू अपनी कोलिशन बचाने के लिए चरमपंथियों के आगे झुक रहे हैं, भले ही इज़राइल अलग-थलग पड़ जाए.”
बंधक परिवारों की फोरम से उरी एल एवेन सापिर ने कहा, “हमास को नष्ट करने के नाम पर बंधकों को बलिदान न करें.” विपक्ष से एहुद ओल्मर्ट ने कहा, “युद्ध खत्म करना ही बंधकों और पीड़ितों को बचाएगा.”
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, यूएन के आयरिन खान ने कहा, “ये दावे बिना सबूत के हैं.” ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर ने 10 अगस्त 2025 को चेतावनी दी, “ये योजना गलत है, इज़राइल को फौरन पुनर्विचार करना चाहिए.”
अमेरिकी विशेषज्ञों ने कहा कि ट्रंप ही नेतन्याहू पर दबाव डाल सकते हैं. ये तमाम बयान दिखाते हैं कि विवाद कितना गहरा है – एक तरफ अस्तित्व की लड़ाई, दूसरी तरफ मानवीय संकट.
तो, इज़राइल का ये ‘अस्तित्व संकट’ क्या वाकई गाज़ा में भारी तबाही, भुखमरी और इंसानी जानों पर सवार होकर इज़राइली जीत की तरफ बढ़ रहा है, या नेतन्याहू की सत्ता की भूख में उल्टा फंस गया है? दुनियाभर में अगस्त-सितंबर 2025 के विरोध प्रदर्शन बता रहे हैं कि अब बदलाव की हवा बहने लगी है.
News Editor- (Jyoti Parjapati)
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