The need for balance : आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से जुड़ा वायरल वीडियो: पशु-प्रेम और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन की ज़रूरत ?

आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से जुड़ा वायरल वीडियो: पशु-प्रेम और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन की ज़रूरत

The need for balance : आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से जुड़ा वायरल वीडियो: पशु-प्रेम और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन की ज़रूरत ?
The need for balance : आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से जुड़ा वायरल वीडियो: पशु-प्रेम और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन की ज़रूरत ?

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा वीडियो: चिंता और बहस का विषय

  • हाल ही में एक ऐसा वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर तेज़ी से वायरल हो रहा है, जिसमें कथित रूप से आवारा कुत्तों के आक्रामक व्यवहार को दिखाया गया है। वीडियो में यह स्पष्ट नहीं है कि यह घटना किस स्थान की है, लेकिन इसकी तीव्रता और संवेदनशील विषय ने समाज में एक नई बहस छेड़ दी है।
    इस वीडियो के माध्यम से यह संदेश दिया जा रहा है कि कुछ लोग जो पशु-प्रेम के नाम पर अपने घरों के बाहर आवारा कुत्तों को रोजाना दूध, ब्रेड, बिस्कुट आदि खिलाते हैं, वे अनजाने में आसपास के लोगों—विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों—के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं।
    वीडियो में दिखाए गए दृश्य भयावह हैं और यह बात सामने लाते हैं कि कैसे ये आवारा कुत्ते कभी-कभी पड़ोस में रहने वाले मासूम बच्चों पर भी हमला कर सकते हैं। इस तरह की घटनाएं केवल डर ही नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी और कानून व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती हैं।

पशु-प्रेम की सीमाएं और ज़िम्मेदारियां: कहां खींचें रेखा?

  • पशु प्रेम एक मानवीय भावना है जो संवेदनशीलता, करुणा और सहानुभूति को दर्शाता है। लेकिन जब यह भावना सामाजिक सुरक्षा और जनहित के विरुद्ध जाने लगे, तो इस पर पुनर्विचार करना आवश्यक हो जाता है। आवारा कुत्तों को खाना खिलाना एक सहानुभूतिपूर्ण कार्य ज़रूर हो सकता है, लेकिन अगर इससे सामाजिक सुरक्षा खतरे में पड़े, तो यह सवाल उठाना लाज़िमी हो जाता है कि क्या यह तरीका सही है? कई बार देखा गया है कि कुछ पशु-प्रेमी नियमित रूप से दूध, रोटी, बिस्कुट आदि खिलाकर अपने घरों के बाहर कुत्तों को एकत्रित कर लेते हैं। धीरे-धीरे ये कुत्ते उस स्थान को अपने स्थायी ठिकाने के रूप में मान लेते हैं और रक्षात्मक हो जाते हैं। जब कोई अजनबी या बच्चा उस इलाके से गुजरता है तो वे आक्रामक प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं। यह जरूरी है कि पशु प्रेम के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी और दूसरों की सुरक्षा को भी समान महत्व दिया जाए। यदि कोई व्यक्ति आवारा पशुओं की सेवा करना चाहता है, तो इसके लिए स्थानीय प्रशासन या पशु कल्याण समितियों के साथ मिलकर संगठित और नियंत्रित व्यवस्था बनाई जा सकती है।

प्रशासनिक पहल और कानूनी दृष्टिकोण: नियमों की ज़रूरत

  • भारत में आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है और इसके साथ ही इनके काटने के मामलों में भी वृद्धि दर्ज की गई है। नगर निगम और स्थानीय प्रशासन कई जगहों पर इन कुत्तों की नसबंदी (Sterilization) और टीकाकरण जैसे उपाय कर रहा है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, आवारा कुत्तों को मारा नहीं जा सकता, लेकिन उन्हें नियंत्रित करना, नसबंदी कराना और आबादी को सीमित करना अनिवार्य है।इस संदर्भ में प्रशासन और पशु प्रेमियों को मिलकर एक संतुलित योजना बनानी होगी, जिसमें आवारा कुत्तों को संगठित स्थानों पर भोजन और देखभाल दी जा सके, न कि रिहायशी इलाकों में जहां उनकी उपस्थिति असुरक्षा का कारण बनती है। इसके अतिरिक्त, स्थानीय निकायों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी को भी अपने घर के बाहर इस प्रकार से कुत्तों को इकट्ठा करने की अनुमति न दी जाए जिससे आमजन को खतरा हो। इसके लिए विशेष निगरानी और कानूनों की सख्त पालना आवश्यक है।

4. समाज को चाहिए जागरूकता और संतुलन: न पशु-विरोध, न अंध-प्रेम

  • इस वायरल वीडियो को केवल पशु विरोधी भावना की तरह नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सामाजिक चेतना और संतुलन की दृष्टि से समझा जाना चाहिए। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि जानवरों के साथ करुणा दिखाने का मतलब यह नहीं है कि हम मानव समाज के लिए जोखिम खड़ा कर दें। जो लोग अपने घरों के बाहर आवारा कुत्तों को नियमित रूप से खाना खिलाते हैं, उन्हें चाहिए कि वे यह कार्य किसी सुरक्षित स्थान जैसे कि सामुदायिक पार्क, पशु शरणालय या नगर निगम द्वारा निर्दिष्ट क्षेत्र में करें। पशु प्रेमियों को भी यह संदेश दिया जाना चाहिए कि केवल भोजन देना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनकी देखभाल, चिकित्सा और नसबंदी जैसी जिम्मेदारियों को निभाना भी उतना ही आवश्यक है। इसी में समाज का और पशुओं दोनों का हित निहित है।
  • निष्कर्ष:
    सोशल मीडिया पर वायरल हो रही यह वीडियो केवल एक डरावनी घटना नहीं, बल्कि समाज को चेताने वाला एक गंभीर संकेत है। यह दिखाता है कि अगर हम सामाजिक जिम्मेदारी को नजरअंदाज कर केवल भावना में बहकर कार्य करेंगे, तो उसके परिणाम भयावह हो सकते हैं। पशु प्रेम को समाज के नियमों और सुरक्षा के साथ संतुलित करना आवश्यक है। वरना, मासूम बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा को खतरा बना रहेगा और समाज में पशु-प्रेम के प्रति गलत धारणा भी विकसित हो सकती है।
    अब समय है कि हम सभी मिलकर करुणा, जिम्मेदारी और व्यवस्था—तीनों को साथ लेकर चलें।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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