Vansh Gupta : 51 लीटर जल लेकर पहुंचे गागलहेड़ी के वंश गुप्ता ?

Vansh Gupta : 51 लीटर जल लेकर पहुंचे गागलहेड़ी के वंश गुप्ता

Vansh Gupta : 51 लीटर जल लेकर पहुंचे गागलहेड़ी के वंश गुप्ता ?
Vansh Gupta : 51 लीटर जल लेकर पहुंचे गागलहेड़ी के वंश गुप्ता ?

 

  • 51 लीटर गंगाजल के साथ पहुँचे गागलहेड़ी के वंश गुप्ता: शिवभक्ति में तप और आस्था का अद्भुत संगम
    श्रावण मास में भगवान शिव के प्रति आस्था चरम पर होती है, और इसी आस्था की मिसाल बने हैं गागलहेड़ी कस्बे के वंश गुप्ता। उन्होंने शिवरात्रि के पावन अवसर पर हरिद्वार से 51 लीटर गंगाजल उठाकर कांवड़ यात्रा पूर्ण की है। यह केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि भक्ति, संकल्प, तप और सनातन संस्कृति की हुंकार है। वंश गुप्ता पिछले दो वर्षों से लगातार कांवड़ लेकर हरिद्वार से अपने गंतव्य तक यात्रा कर रहे हैं, और इस वर्ष उन्होंने अपने संकल्प को और भी कठिन बनाते हुए भारी जलधारी कांवड़ उठाई। 17 जुलाई को हरिद्वार से जल लेकर निकले वंश मंगलवार को अपने कस्बे गागलहेड़ी पहुंच गए। अब वह महाशिवरात्रि पर अपने स्थानीय शिवालय में 51 लीटर गंगाजल से भगवान शिव का जलाभिषेक करेंगे। उनकी इस तपस्या ने क्षेत्र में शिवभक्ति का नया उत्साह भर दिया है।

आस्था से ओतप्रोत है कांवड़ यात्रा का हर कदम

  • कांवड़ यात्रा कोई सामान्य यात्रा नहीं होती, यह एक आध्यात्मिक यात्रा होती है जिसमें हर कदम भगवान शिव की भक्ति में डूबा होता है। वंश गुप्ता की यह यात्रा भी इसी भक्ति की मिसाल है। उनका कहना है कि कांवड़ यात्रा में शरीर थक सकता है, लेकिन मन और आत्मा में जो शक्ति मिलती है, वह अवर्णनीय है। हरिद्वार से गागलहेड़ी तक का यह सफर, वह भी 51 लीटर जल के साथ, किसी कठिन तपस्या से कम नहीं। तपती धूप, लंबा रास्ता, शरीर की थकान – ये सभी चुनौतियां वंश की आस्था के सामने नगण्य साबित हुईं। उनका कहना है कि भगवान शिव की कृपा से हर कठिनाई आसान लगती है और यही शिवभक्ति की सच्ची परिभाषा है।

कांवड़ यात्रा: सनातन धर्म की जीवंत परंपरा

  • वंश गुप्ता ने कहा कि कांवड़ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि यह सनातन धर्म की जड़ें मजबूत करने वाली परंपरा है। हजारों वर्षों से यह परंपरा जीवित है और आज भी उतनी ही श्रद्धा और उमंग के साथ निभाई जाती है। वंश का मानना है कि यह यात्रा हिन्दू संस्कृति की उस आत्मा को जीवंत करती है, जिसमें त्याग, सेवा, संयम और भक्ति निहित हैं। उन्होंने बताया कि जब हजारों-लाखों कांवड़िए गंगाजल लेकर नंगे पाँव सड़कों पर चलते हैं, तो वह दृश्य केवल एक उत्सव नहीं बल्कि सनातन संस्कृति की जीवंत घोषणा होती है। यही कारण है कि वे हर साल इस यात्रा में भाग लेते हैं और आने वाले वर्षों में भी इसे जारी रखने का संकल्प ले चुके हैं।

युवाओं को दी प्रेरणा: आस्था से जुड़ें, संस्कृति से जुड़ें

  • वंश गुप्ता जैसे युवाओं की भागीदारी कांवड़ यात्रा को और भी खास बनाती है। वह न केवल खुद भक्ति में लीन हैं, बल्कि उन्होंने अन्य युवाओं को भी इस पवित्र परंपरा से जोड़ने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि आज के दौर में जब आधुनिकता के साथ कई लोग अपनी जड़ों से दूर हो रहे हैं, ऐसे में कांवड़ यात्रा जैसे आयोजन युवाओं को अपनी संस्कृति और धर्म से जोड़ने का सबसे प्रभावी माध्यम हैं। वंश की यह बात सही प्रतीत होती है कि जब युवा वर्ग धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ेगा, तभी समाज में संतुलन और नैतिकता बनी रहेगी। उन्होंने बताया कि उन्हें यात्रा के दौरान कई युवा साथी मिले, जो पहली बार कांवड़ उठा रहे थे, और इस अनुभव ने उनके जीवन को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध कर दिया।

निष्कर्ष: भक्ति, परंपरा और तपस्या का संगम है कांवड़ यात्रा

  • गागलहेड़ी के वंश गुप्ता की 51 लीटर जलधारी कांवड़ यात्रा ना केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी प्रेरणा है, जो जीवन में कठिनाइयों के चलते अपने संकल्पों से पीछे हट जाते हैं। वंश की यह यात्रा यह सिद्ध करती है कि जब इरादे मजबूत हों और आस्था अटूट हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। कांवड़ यात्रा के माध्यम से उन्होंने न केवल भगवान शिव को प्रसन्न किया, बल्कि समाज को भी यह संदेश दिया कि सनातन धर्म की परंपराएं आज भी जीवंत हैं और उनमें आत्मिक बल है। वंश गुप्ता जैसे शिवभक्त निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ियों को धर्म, आस्था और आत्मिक शांति का मार्ग दिखाने में सहायक सिद्ध होंगे।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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