Is there any change in Bihar: क्या बिहार में बदलाव की आहट हैं प्रशांत किशोर ?

Is there any change in Bihar: क्या बिहार में बदलाव की आहट हैं प्रशांत किशोर

 

Is there any change in Bihar: क्या बिहार में बदलाव की आहट हैं प्रशांत किशोर
Is there any change in Bihar: क्या बिहार में बदलाव की आहट हैं प्रशांत किशोर

 

  • बिहार के लोग जब इस बार राज्य के चुनाव में वोट डालेंगे तो उनके सामने जनसुराज पार्टी के रूप में एक तीसरा विकल्प भी होगा. तकरीबन 35 सालों से लालू यादव और नीतीश कुमार के शासन में रहा बिहार क्या प्रशांत किशोर के लिए बदलेगा? पटना। बिहार के लोग जब इस बार राज्य के चुनाव में वोट डालेंगे तो उनके सामने जनसुराज पार्टी के रूप में एक तीसरा विकल्प भी होगा. तकरीबन 35 सालों से लालू यादव और नीतीश कुमार के शासन में रहा बिहार क्या प्रशांत किशोर के लिए बदलेगा? बिहार के सीवान जिले का मैरवां ब्लॉक. उमस भरी गर्मी के बीच दिन ढलने की तैयारी में है. मुख्य मार्ग पर जगह-जगह खड़े लोग बता रहे हैं, वे यह सुनने आए हैं कि बिहार कैसे बदलेगा? इसी बीच दिख जाते हैं धीरे-धीरे बढ़ते काफिले में फूलों से लदी एक गाड़ी पर खड़े हो लोगों का अभिवादन करते जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर (पीके). सफेद कुर्ता-पजामा पहने, कंधे पर लाल बॉर्डर वाला पीला गमछा रखे पसीने से लथपथ प्रशांत लोगों से बार-बार सभास्थल की ओर बढ़ने का आग्रह कर रहे हैं. हालांकि लोगों की आकुलता काफिले की रफ्तार को धीमा कर दे रही है इसी जद्दोजहद के साथ मंच पर पहुंचे पीके, जहां जमा थी हर वय के पुरुषों-महिलाओं की भीड़. मंच पर पहुंचते ही उन्होंने लोगों से जय बिहार का नारा लगवाया. जवाब में लोगों की आवाज सुन ठेठ भोजपुरी में कहा, “नेता लोगों ने इतना खून चूस लिया है कि मुंह से आवाज कैसे निकलेगा.” फिर दिया अपना परिचय, “मैं ही हूं प्रशांत किशोर.” इसके बाद पीके ने तीन साल पहले सब कुछ छोड़ बिहार के गांवों-गलियों में भटकने का कारण बताया.
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  • हिंदी और भोजपुरी मिश्रित संबोधन में पीके ने कहा, “तीन साल पहले हमने महसूस किया कि नेता के जीतने से जनता का जीवन नहीं बदलता है. जीतने वाला तो निकल जाता है, लेकिन आप और आपके बच्चे जहां थे, वहीं रह जाते हैं. इसलिए सोचा, नेता को सलाह देने से उनकी जिंदगी तो बदल गई, अब बिहार की जनता को सलाह देकर उनकी जिंदगी बदलने में मदद करूं. इसी प्रयास में आपके सामने हूं.” प्रशांत किशोर इन दिनों अपनी बिहार बदलाव यात्रा पर हैं. बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए वे अपनी यात्रा में वे पूरे राज्य में लोगों से मिल रहे. पीके उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे कि बिहार की सूरत-सीरत को कैसे संवारा जा सकता है दो साल पहले भी प्रशांत किशोर ने 17 जिलों के साढ़े पांच हजार गांवों में पांच हजार किलोमीटर की जन सुराज पदयात्रा की थी. दो अक्टूबर, 2024 को जन सुराज अभियान,जन सुराज पार्टी बन गई जो इस बार के विधान सभा चुनाव में खम ठोकने की तैयारी में है. भारत की राजनीति में अब तक सलाहकार की भूमिका में रहे प्रशांत किशोर अब खुद जमीन पर उतर कर राजनीति में जुट गए हैं. यात्रा में मिल रहे लोगों से पीके साफगोई के साथ कहते हैं, “हम नेता नहीं है. वोट मांगने नहीं आये हैं. कांग्रेस के बाद लालू-नीतीश को वोट देने के बावजूद आपका और आपके बच्चों का जीवन नहीं सुधरा. आखिर क्यों.” पीके बिहार में घूम घूम कर लोगों से यही कह रहे हैं “जब तक आप अपने बच्चों का चेहरा देखकर वोट नहीं देंगे, तब तक ना तो पढ़ाई की स्थिति सुधरेगी और ना ही रोजगार के अभाव में यहां से पलायन रुकेगा.” लोगों के दिलो-दिमाग पर वह इन दो चीजों की छाप छोड़ने की भरसक कोशिश करते हैं.
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  • बार-बार लोगों से हां या ना में अपने प्रश्नों का जवाब मांगते हैं. मैरवां में मौजूद लोगों से जब उन्होंने पूछा कि कितने लोगों ने अपने बच्चों की पढ़ाई और उनके रोजगार के नाम पर वोट दिया है, वहां चुप्पी छा गई. लोगों की चुप्पी पर पीके ने कहा, “आपने तो वोट दिया है मंदिर-मस्जिद के नाम पर, पांच किलो अनाज के लालच में, सिलेंडर के नाम पर और बिजली मिलने के नाम पर तो ये सभी चीजें आपको मिल रहीं. अयोध्या में रामलला का मंदिर बन गया, जाति जनगणना की बात हो ही रही. जब आपने आज तक आपने बच्चों की पढ़ाई और रोजगार के नाम पर वोट ही नहीं दिया, तो लालू-नीतीश या किसी और को गाली क्यों देते हो.” लोगों को उनकी गलती का अहसास कराते पीके भीड़ में पीछे की कुर्सी पर बैठे जीरादेई के मनोहर पंडित भोजपुरी में कहते हैं, ‘बात तो ठीक ही कह रहे हैं. गांव के बच्चों के शरीर पर पूरा कपड़ा और पैर में चप्पल तो नहीं ही रहता है.” वहीं खड़े एक व्यक्ति ने कहा, “सच है कि कभी इतनी गंभीरता से नहीं सोचा. गांव-समाज का जो माहौल रहता है, उसी के अनुसार तय कर लेते हैं.” उधर मंच से प्रशांत किशोर कह रहे हैं, “आप महंगाई और गरीबी का वास्ता देते हैं. प्रधानमंत्री मोदी जी तो आपका वोट लेकर अपनी सरकार बनाते हैं और विकास गुजरात का करते हैं. यहां तो फैक्ट्री नहीं लगाते. तब तो आपका बच्चा दस-बारह हजार की नौकरी करने गुजरात जाता है. पूरा बिहार का बच्चा अनपढ़ और मजदूर बन गया है.” लोगों से सीधे संवाद का सरल तरीका भीड़ का मनोविज्ञान समझने और अपनी बात समझाने में माहिर पीके लोगों को उनकी गलतियों और राजनीतिक चयन के तरीके पर सवाल उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. वे पूरे जोश में लोगों से पूछते हैं कि आपके बच्चों की चिंता है कि नहीं? तो लोग कहते हैं, हां है.
Is there any change in Bihar: क्या बिहार में बदलाव की आहट हैं प्रशांत किशोर
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  • यह जवाब सुनते ही पलटकर पीके कहते हैं, “मैरवां में पूरा गांव, समाज सब झूठ बोल रहा है. जिन नेताओं ने आपका ये हाल किया है चार महीने बाद आप उन्हीं नेताओं को वोट देंगे जाति के नाम पर, हिंदू-मुसलमान का नारा लगा कर मंदिर-मस्जिद के नाम पर, लालू के डर से बीजेपी और बीजेपी के डर से लालू को.” तेजप्रताप के प्रेम प्रकरण से कितनी मुश्किल होगी आरजेडी की राह प्रशांत बच्चे की चिंता के संदर्भ में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का उदाहरण देते हुए उनकी प्रशंसा करते हैं. पीके ने कहा, “अभी भी वे अपने नौवीं फेल बेटे को राजा बनाना चाहते हैं. यही है अपने बच्चों की वास्तविक चिंता. आप कभी अपने बच्चों को राजा बनाने की चिंता कर लो.” पीके ने यह भी कहा, “मोदी का 56 इंच का सीना तो आपकी समझ में आता है, लेकिन अपने बच्चों का सीना सिकुड़ कर 15 इंच का हो रहा, यह आपको नहीं समझ में आता है, तो भोगेगा कौन. सौ बिहारी मिलकर भी आज एक गुजराती के बराबर नहीं कमा रहा है. एक गुजराती सौ बिहारी को अपना नौकर बनाकर रखा हुआ है. आप अपना नहीं, अपने बच्चों का चेहरा जरूर देखिए.” साथ ही वे यह भी कहते हैं, “बिहार के आदमी को सुधरना नहीं है. जब तक आप नहीं सुधरेंगे, तब तक बिहार नहीं सुधरेगा.” एक-एक वोट की अहमियत पीके अपनी सभाओं में पहुंची भीड़ को उनके एक-एक वोट की अहमियत समझाने की भरसक कोशिश करते हैं. उन्होंने मैरवां में लोगों से कहा, “अगली बार जब वोट देने जाइए तो संकल्प लीजिए कि जिन नेताओं ने पूरे बिहार को लूटा और मजदूर बना दिया चाहे
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  • वह आपके दल का हो या जाति का, आपके गांव का हो या शहर का, उसको वोट नहीं देना है. जीवन में एक बार वोट अपने-अपने बच्चों की पढ़ाई और रोजगार के लिए देना है.” प्रशांत किशोर को सुनने आ रही भीड़ पर उनकी बातों का कितना असर हो रहा, यह तो ईवीएम खुलने के बाद ही पता चल सकेगा. किंतु, सी-वोटर के हालिया सर्वेक्षण के ट्रेंड यह जरूर बता रहे कि सीएम उम्मीदवार के लिए वे लोगों की दूसरी पसंद बन गए हैं. जून में वे 18.2 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद बन चुके हैं. राजनीतिक समीक्षक सौरव सेनगुप्ता कहते हैं, “जहां तक मुझे याद है, किसी राजनेता ने आज तक बिहार के गांव-कस्बे में इतना लंबा समय नहीं गुजारा है. वे अपनी पदयात्रा के दौरान लोगों की नब्ज समझ चुके हैं. इसलिए वोट नहीं मांगते, दुर्दशा के कारणों पर फोकस करते हैं. हरेक भाषणों में एक ही बात दोहराते हैं, ताकि लोगों के जेहन में वह बैठ सके. जाति-धर्म के मोह से निकल एक बार अपने बच्चों के चेहरे पर लोगों ने वोट दे दिया तो बदलाव तय है.” प्रशांत किशोर का वादा चुनाव में मूल समस्याओं की ओर ध्यान दिलाते हुए प्रशांत यह बताना नहीं भूलते कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो सुधार कैसे होगा. उनका कहना है, “इस बार जब जनता की सरकार बनाएंगे तो नाली-गली बने चाहे नहीं बने, स्कूल-अस्पताल बने या न बने, लेकिन साल भर के अंदर सभी के लिए दस से बारह हजार रुपये मासिक के रोजगार की व्यवस्था यहां जरूर कर दी जाएगी. उन्हें घर से बाहर नहीं जाना होगा.” प्रशांत किशोर ने 60 साल से अधिक उम्र वाले बुजुर्गों को हरेक माह दो हजार रुपये की सम्मान राशि देने का भी वादा किया है.
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  • हालांकि उनका मुख्य फोकस बिहार की शिक्षा पर है. लोगों से उनका कहना है, “जब तक सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधर नहीं जाती तब तक 15 साल से कम उम्र के आपके बच्चे को प्राइवेट इंग्लिश स्कूल में भेजिए, खर्च सरकार की ओर से दिया जाएगा.” सेनगुप्ता कहते हैं, “तीन साल पहले के प्रशांत किशोर आज भी वही हैं. आज भी पढ़ाई, रोजी-रोजगार और पलायन की ही बात कर रहे. हां, उनकी बातों की धार जरूर तेज हो गई है, जो लोगों को कुरेद रही है कि गलती नेता की नहीं, उनकी ही है.” एक हद तक वे लोगों को यह समझाने में कामयाब होते दिख रहे हैं. वे वादा भी कर रहे तो पढ़ाई, रोजगार और गरीबी की. प्रशांत किशोर की सभाओं में भीड़ उमड़ रही है. चुनाव रणनीतिकार के रूप में उन्होंने जो अनुभव अर्जित किया है वह भी उनके काफी काम आ रहा है. चुनाव लड़ने के लिए धन की व्यवस्था भी उन्होंने क्राउड फंडिंग के जरिए करने का एलान किया है. लंबे समय से जाति और धर्म की लड़ाई में बंटा समाज उन पर भरोसा करे या ना करे, बिहार में एनडीए और महागठबंधन की लड़ाई के सामने उन्होंने एक विकल्प जरूर रख दिया है।

 

 News Editor-(Jyoti Parjapti)

 

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