Case was cancelled : पत्रकारों को मिली इंसाफ की जीत, हाईकोर्ट ने दर्ज एफआईआर को बताया द्वेषपूर्ण, मुकदमा किया रद्द ?

पत्रकारों को मिली इंसाफ की जीत,
हाईकोर्ट ने दर्ज एफआईआर को बताया द्वेषपूर्ण, मुकदमा किया रद्द,
न्याय मिलने के बाद केक काटकर जश्न मनाते हुए केराकत के पत्रकार,
- केराकत, जौनपुर:- पत्रकारों की आवाज़ को दबाने के लिए दायर किया गया फर्जी मुकदमा आखिरकार न्याय की कसौटी पर खरा नहीं उतर सका। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो साल पुराने उस विवादास्पद मुकदमे को खारिज कर दिया है, जिसमें गौशाला की अव्यवस्था पर खबर छापने वाले चार पत्रकारों – पंकज, आदर्श, अरविंद और विनोद – के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया था।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एफआईआर पुलिस व प्रशासन की द्वेषपूर्ण मानसिकता का नतीजा थी, न कि किसी वैधानिक अपराध का।
गौरतलब है कि 24 मार्च 2023 को पेसारा गांव की एक जर्जर गौशाला की बदहाली को लेकर प्रकाशित समाचार से बौखलाए ग्राम प्रधान ने अधिकारियों की मिलीभगत से केराकत थाने में पत्रकारों के खिलाफ वसूली व एससी-एसटी एक्ट जैसी संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। पीड़ित पत्रकारों ने जब उच्चाधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई, तो उन्हें अनसुना कर दिया गया। - अंततः पत्रकारों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका (संख्या 2569/2024) दाखिल की, जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने न सिर्फ गिरफ्तारी पर रोक लगाई, बल्कि मामले की गंभीरता को देखते हुए संपूर्ण एफआईआर को खारिज करने का आदेश भी दे दिया। कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि प्राथमिकी का उद्देश्य सिर्फ पत्रकारों को प्रताड़ित करना था।
- एससी-एसटी विशेष न्यायालय ने भी की कार्रवाई निरस्त
हाईकोर्ट के निर्णय के अनुपालन में विशेष न्यायाधीश, अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण न्यायालय ने मुकदमे की संपूर्ण दांडिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। - भारतीय प्रेस परिषद और पत्रकार समाज की एकजुटता
मामले ने पत्रकारिता जगत को झकझोर दिया था। पत्रकारों ने डीएम की प्रेस वार्ता का बहिष्कार किया, जिससे प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मच गया। भारतीय प्रेस परिषद ने भी स्वतः संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश शासन व पुलिस विभाग को कड़ी टिप्पणी के साथ पत्र भेजा था, जिसमें कहा गया कि यह मुकदमा पत्रकारों को डराने-धमकाने के उद्देश्य से दर्ज किया गया प्रतीत होता है। - “न्यायपालिका और संविधान पर रहा अटूट विश्वास” – विनोद कुमार
पीड़ित पत्रकार विनोद कुमार ने बताया, “मैं दलित हूं, इसके बावजूद मुझे गैर-दलित दिखाकर एससी-एसटी एक्ट में फंसाया गया। आर्थिक तंगी और मानसिक उत्पीड़न के बावजूद मुझे न्यायपालिका और बाबा साहब के संविधान पर पूरा भरोसा था। अंततः न्याय मिला और अब मैं अधिकारियों के खिलाफ मानहानि व अन्य कार्रवाई की तैयारी में हूं, ताकि किसी और पत्रकार को ऐसी पीड़ा न झेलनी पड़े।”
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