No Fuel Campaign : नो हेलमेट, नो फ्यूल अभियान तेज़, दो दिन में 900 चालान

“नो हेलमेट, नो फ्यूल” अभियान: सुरक्षा बनाम सज़ा की बहस
- सहारनपुर:- जनपद में सड़क सुरक्षा को लेकर चलाया जा रहा “नो हेलमेट, नो फ्यूल” अभियान इन दिनों सुर्खियों में है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के निर्देशन में चलाए जा रहे इस अभियान के तहत बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चालकों को पेट्रोल नहीं दिया जा रहा और उनके खिलाफ चालान की कार्रवाई भी की जा रही है। बीते दो दिनों में लगभग 900 लोगों के चालान किए गए हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि पुलिस इस नियम को सख्ती से लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सहारनपुर पुलिस लगातार जागरूकता फैलाने में लगी हुई है, जहां यातायात नियमों के पालन, सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम और हेलमेट के महत्व को लेकर वीडियो, पोस्टर और स्लोगन साझा किए जा रहे हैं।
इस अभियान का मूल उद्देश्य
- सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में कमी लाना और लोगों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक बनाना है। हेलमेट पहनने से सिर की गंभीर चोटों से बचाव संभव है और जीवन की रक्षा हो सकती है। सरकार और पुलिस प्रशासन का मानना है कि जब तक नागरिकों पर नियमों का सख्ती से पालन नहीं करवाया जाएगा, तब तक लोग स्वयं से सुरक्षा उपायों को नहीं अपनाएंगे। इसी सोच के तहत “नो हेलमेट, नो फ्यूल” जैसा अभियान ज़ोर-शोर से लागू किया गया है।
- हालांकि, इस अभियान के बीच एक बड़ा सवाल जनमानस के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है—क्या केवल चालान काटना ही समाधान है? क्या पुलिस प्रशासन लोगों को हेलमेट पहनने के लिए प्रोत्साहित करने के अन्य उपाय नहीं कर सकता? आम जनता का यह मत सामने आ रहा है कि चालान की राशि से सरकार हेलमेट खरीदकर वितरित कर सकती है, जिससे हर नागरिक के पास हेलमेट उपलब्ध हो सके और वह स्वेच्छा से इसका उपयोग करे। विशेष रूप से निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए हेलमेट खरीदना एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ हो सकता है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
जनता यह भी तर्क देती है कि
- यदि सरकार मुफ्त राशन, मुफ्त शिक्षा और मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं दे सकती है, तो सड़क सुरक्षा जैसे गंभीर विषय पर भी नागरिकों को मूलभूत सुरक्षा उपकरण जैसे कि हेलमेट उपलब्ध करवा सकती है। इसके अलावा, हेलमेट वितरण के माध्यम से पुलिस और जनता के बीच विश्वास का संबंध और मज़बूत हो सकता है, जो कानून व्यवस्था बनाए रखने में सहायक होता है।
- पुलिस प्रशासन यदि इस अभियान को केवल दंडात्मक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि सामाजिक दायित्व के रूप में अपनाए, तो इसके परिणाम और भी सकारात्मक हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थलों पर हेलमेट जागरूकता शिविर लगाए जा सकते हैं। NGOs और कॉर्पोरेट्स के सहयोग से सामूहिक रूप से हेलमेट वितरण अभियान चलाया जा सकता है। स्थानीय व्यापारियों, पेट्रोल पंप मालिकों और सिविल सोसाइटी के साथ मिलकर ऐसा मॉडल तैयार किया जा सकता है, जहां सस्ता या मुफ्त हेलमेट उपलब्ध हो और नागरिकों को प्रोत्साहन के रूप में दिया जाए।
यह भी महत्वपूर्ण है कि
- चालान की राशि का पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित हो। यदि पुलिस प्रशासन यह दिखा सके कि जो जुर्माना वसूला गया है, उसका कुछ हिस्सा सड़क सुरक्षा को बेहतर बनाने में लगाया जा रहा है—जैसे कि हेलमेट वितरण, सड़क चिन्हों की मरम्मत या सड़क सुरक्षा से जुड़े शैक्षणिक कार्यक्रम—तो जनता का भरोसा अभियान में और भी बढ़ेगा।
- इसमें कोई संदेह नहीं कि हेलमेट पहनना जीवन रक्षक है, और नागरिकों को स्वेच्छा से इसका पालन करना चाहिए। लेकिन प्रशासन को भी यह समझने की आवश्यकता है कि जागरूकता और सुविधाओं का विस्तार, नियमों की कठोरता से कहीं अधिक प्रभावी हो सकता है। जहां एक ओर नियमों का पालन ज़रूरी है, वहीं दूसरी ओर प्रशासन की यह भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह लोगों को उन नियमों को अपनाने के लिए आवश्यक संसाधन और सहयोग प्रदान करे।
- अंततः, “नो हेलमेट, नो फ्यूल” अभियान एक सराहनीय पहल है, लेकिन इसका दीर्घकालिक प्रभाव तभी संभव है जब यह अभियान लोगों में भय की भावना से नहीं, बल्कि सुरक्षा और जिम्मेदारी की समझ से जुड़ा हो। जनता और प्रशासन मिलकर यदि इस दिशा में प्रयास करें, तो न केवल सहारनपुर बल्कि पूरे देश में सड़क सुरक्षा की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है।
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News Editor- (Jyoti Parjapati)
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