Caste Census : देश में पहली बार मुसलमानों की होगी जाति जनगणना ?

देश में पहली बार मुसलमानों की होगी जाति जनगणना
भारत में मुसलमानों की 40 जातियां हैं और उनकी भी अलग-अलग गणना की जाएगी
पसमांदा समाज और मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति पर चोट
भारत में पहली बार जनगणना के साथ मुस्लिमों की भी जातिवार गणना की जाएगी
इसमें पसमांदा मुसलमानों की सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति के ठोस आंकड़े सामने आएंगे
भाजपा लंबे समय से मुस्लिम समाज में जातीय पहचान को सामने लाने की मांग करती रही
- भारत में पहली बार जनगणना के साथ मुस्लिमों की भी जातिवार गणना की जाएगी। इससे पसमांदा मुसलमानों की सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति के ठोस आंकड़े सामने आएंगे। भाजपा लंबे समय से मुस्लिम समाज में जातीय पहचान को सामने लाने की मांग करती रही है। यह फैसला मुस्लिम वोटबैंक की एकता को तोड़ने और पसमांदा वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व देने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
- नीलू रंजन, जागरण। नई दिल्ली। जनगणना के साथ होने वाली जातिवार गणना में हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिमों में जातियों की गणना की जाएगी। अभी तक जनगणना के साथ मुस्लिमों की गणना एक धार्मिक समूह के रूप में की जाती थी।
- जातिवार गणना के बाद मुस्लिम समाज में विभिन्न जातियों और उनके सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति के ठोस आंकड़े सामने आएंगे। एकजुट मुस्लिम वोटबैंक को तोड़ने की दिशा में इसे अहम माना जा रहा है।
कैबिनेट के फैसले से बदल सकते हैं राजनीतिक समीकरण
ध्यान देने की बात है कि गुरूवार को कैबिनेट की बैठक में पहली बार जनगणना के साथ जातिवार गणना कराने का फैसला किया गया है। जाहिर है मुस्लिम समाज में विभिन्न जातियों की सही संख्या पहली बार सामने आएगी। इसके दूरगामी राजनीतिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। दरअसल अभी तक जातिवार जनगणना की मांग ओबीसी वोट को ध्यान में रखकर होती रही है।
- दावा किया जाता है कि मुस्लिम समाज में भी 85 फीसद जनसंख्या पसमांदा मुसलमानों की है, जो पिछड़े हुए हैं। लेकिन सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र में उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है। लेकिन ठोस आंकड़े नहीं होने के कारण उनकी आवाज अनसुनी कर दी जाती है। देश के सभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड में भी एक भी पसमांदा मुसलमान सदस्य नहीं है।
भाजपा की रणनीति और असम का उदाहरण
जातिवार जनगणना के आंकड़े सामने के बाद पसमांदा या अन्य जातियों के मुसलमान भी अपनी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व की मांग कर सकते हैं। भाजपा लंबे समय से जातिवार गणना में मुस्लिम जातियों को शामिल करने का मुद्दा उठाती रही है। पिछले साल असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने मुसलमानों की जातिवार गणना कराई थी। इसकी रिपोर्ट के आधार पर असम के मूल मुसलमानों को एसटी का दर्जा भी दिया गया।
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