Response to criticism : लाल किले की प्राचीर से 12 साल बेमिसाल राष्ट्रनिर्माण की यात्रा और विपक्ष की आलोचना पर जवाब ?

Response to criticism : लाल किले की प्राचीर से 12 साल बेमिसाल राष्ट्रनिर्माण की यात्रा और विपक्ष की आलोचना पर जवाब

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Response to criticism : लाल किले की प्राचीर से 12 साल बेमिसाल राष्ट्रनिर्माण की यात्रा और विपक्ष की आलोचना पर जवाब ?

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जब देश के प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से अपने 12वें भाषण को संबोधित किया, तो यह सिर्फ एक भाषण नहीं, बल्कि 140 करोड़ देशवासियों की आकांक्षाओं, उपलब्धियों और आत्मविश्वास की गूंज थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 12 वर्षों के नेतृत्व को ’12 साल बेमिसाल’ कहने का कारण सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि उनके कार्यों, नीतियों और वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती साख में साफ देखा जा सकता है। यह बात उन लोगों के लिए भी एक सीख होनी चाहिए, जो कभी ‘लाल किला बेच दिया’ जैसे आरोप लगाकर राष्ट्रवाद को अपमानित करने की कोशिश करते हैं।

अगर वे राष्ट्रप्रेम का चश्मा लगाकर देखें, तो स्पष्ट हो जाएगा कि इस एक नेता ने पिछले एक दशक में देश को जिस दिशा में आगे बढ़ाया है, वह कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की 60 वर्षों की राजनीति से कहीं अधिक प्रभावशाली और परिणामदायक रही है। प्रधानमंत्री ने देश की राजनीति को वंशवाद से हटाकर विकासवाद पर केंद्रित किया, हर नागरिक को समान अवसर देने की दिशा में कई ऐतिहासिक फैसले लिए। देश के कोने-कोने तक सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुँचाईं। इन प्रयासों का परिणाम यह है कि आज भारत वैश्विक मंच पर एक मजबूत, आत्मनिर्भर और निर्णायक राष्ट्र के रूप में खड़ा है।

2014 के बाद जिस प्रकार देश की आर्थ‍िक नीतियों को सुदृढ़ किया गया, जिस तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं के तहत लाखों युवाओं को रोजगार और आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ने के अवसर मिले, वह उदाहरण बन चुका है। देश की अर्थव्यवस्था को चार चांद लगे हैं। जी-20 सम्मेलन की सफल मेजबानी, अंतरिक्ष में चंद्रयान और गगनयान जैसे मिशन, वैश्विक मंचों पर भारत की निर्णायक भूमिका इस बात का प्रमाण हैं कि भारत अब केवल एक विकासशील देश नहीं, बल्कि विश्व नेतृत्व की दौड़ में शामिल हो चुका है।

विपक्षी पार्टियों की भूमिका पर सवाल उठाना भी आज लाजमी है। 2013 के बाद से इन दलों की राजनीति का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ सत्ता की कुर्सी तक सीमित रह गया है। न तो उनके पास कोई ठोस नीति है, न ही जनता को जोड़ने का कोई स्पष्ट एजेंडा। कभी ‘चौकीदार चोर है’, तो कभी ‘ईवीएम में गड़बड़ी’ का राग अलापकर वे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही संदेह के घेरे में लाने की कोशिश करते रहे हैं। अब जब देश की जनता ने बार-बार उन्हें नकारा है, तब वे ‘वोटों की चोरी’ का नया बहाना बना रहे हैं, जिससे उनकी हताशा साफ झलकती है।

आज जनता जागरूक है। उसे अच्छे और बुरे शासन का अंतर समझ में आ चुका है। जो लोग 60 साल सत्ता में रहकर सिर्फ अपने परिवार और घर भरते रहे, वे आज खुद को ‘सेवक’ कहने वाले नेता को चोर कहकर जनता की समझ पर सवाल उठा रहे हैं। क्या इन विपक्षी नेताओं को कभी आत्मावलोकन करने की फुर्सत मिलेगी? क्या वे कभी जनता के पास जाकर यह बताने की हिम्मत जुटा पाएंगे कि उन्होंने इतने वर्षों में जनता के लिए क्या किया?

मध्यप्रदेश का उदाहरण ही लें। वहां के एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने अपने मुख्यमंत्री काल में प्रदेश को 8 से 10 घंटे बिजली और पानी के लिए तरसाया। उद्योग ठप रहे, किसान परेशान रहे और युवा पलायन के लिए मजबूर हुए। अब वही नेता आज की व्यवस्था को कोसते हैं, जो 24 घंटे बिजली, सिंचाई की सुविधा और विकास की नई धार दे रही है। विरोध करना लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन विरोध का आधार तथ्य और तर्क पर आधारित होना चाहिए, न कि कुंठा और हताशा से प्रेरित।

देश ने 2014 के बाद एक नई दिशा पकड़ी है – आत्मविश्वास, स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की दिशा। सरकार ने बिना भेदभाव के गरीबों को आवास, गैस कनेक्शन, शौचालय, जल आपूर्ति और स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाएं दी हैं। जो काम 60 वर्षों में नहीं हुए, वे पिछले 10 वर्षों में धरातल पर उतर चुके हैं। जनता इसे देख रही है और समझ भी रही है। यही कारण है कि हर चुनाव में विकास की राजनीति को जीत मिल रही है और नकारात्मकता व भ्रम फैलाने वालों को लगातार पराजय का सामना करना पड़ रहा है।

इस पूरे परिप्रेक्ष्य में विपक्ष को अब आत्ममंथन करने की जरूरत है। केवल आलोचना करना, गालियां देना, अपमान करना और फर्जी आरोप लगाना अब काम नहीं आने वाला। जनता सब देख और समझ रही है। अब वह विकास चाहती है, जवाबदेही चाहती है और ऐसा नेतृत्व चाहती है जो सिर्फ बातें न करे बल्कि जमीन पर काम करके दिखाए। देश का जो गौरव और सम्मान आज वैश्विक मंचों पर बढ़ा है, वह सिर्फ एक नेता की मेहनत और ईमानदारी का परिणाम नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों की सामूहिक आकांक्षा और विश्वास का प्रतीक है।

अतः यह समय विपक्ष के लिए आत्मचिंतन और जनता के बीच जाकर जवाब देने का है, न कि झूठे आरोप और कुर्सी की लड़ाई में देश को बदनाम करने का। देश के मतदाता अब मूर्ख नहीं हैं, वे विकास को पहचानते हैं और अपने वोट से जवाब देना जानते हैं। राजनीति का भविष्य अब ईमानदार और विकासशील नेतृत्व के हाथों में है, और यह देश के लिए सबसे शुभ संकेत है।

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News Editor- (Jyoti Parjapati)

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